प्लास्टिक के केमिकल्स
प्लास्टिक में जो दो हानिकारक केमिकल्स होते हैं, वो हैं बिस्फिनॉल (बीपीए) और प्लास्टिक पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी). बिस्फिनॉल (बीपीए): बीपीए का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए किया जाता है. यह प्लास्टिक फूड कंटेनर्स, वॉटर बॉटल्स और पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल करनेवाले कंटेनर्स में लाइनिंग के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी): यह फूड पैकेजिंग से लेकर, बच्चों के खिलौनों, शावर कर्टन्स, बिल्डिंग मटेरियल्स आदि में इस्तेमाल किया जाता है. प्लास्टिक में मौजूद पीवीसी भ्रूण के विकास को प्रभावित करता है. इससे भ्रूण का रिप्रोडक्टिव सिस्टम प्रभावित होता है. इसलिए गर्भवती व ब्रेस्टफीडिंग महिलाओं को कम से कम प्लास्टिक के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है.बीपीए के साइड इफेक्ट्स
- कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि बीपीए हमारे शरीर में एक हार्मोन की तरह काम करता है, जिससे शरीर में हार्मोंस के असंतुलन की संभावना बढ़ जाती है. - इसका सबसे ज़्यादा असर भ्रूूण व नवजात बच्चों पर पड़ता है. बच्चों में अर्ली प्यूबर्टी का ख़तरा बढ़ जाता है और बड़े होने पर उनमें ब्रेस्ट कैंसर व प्रोस्टेट कैंसर का ख़तरा भी होता है. - इसके कारण छोटी बच्चियों में हाइपर एक्टिविटी या फिर एग्रेसिव बिहेवियर की संभावना भी बढ़ जाती है. - यूरिन में बीपीए की अधिकता के कारण वयस्कों में कार्डियो वैस्कुलर डिसीज़ का ख़तरा अन्य लोगों के मुक़ाबले तीन गुना बढ़ जाता हैै, जबकि टाइप 2 डायबिटीज़ का ख़तरा दोगुना हो जाता है. - कुछ स्टडीज़ में पाया गया है कि बीपीए के कारण ब्रेस्ट, प्रोस्टेट और ओवेरियन कैंसर का ख़तरा भी बढ़ जाता है, पर फ़िलहाल इस विषय पर अधिक रिसर्च जारी है. - प्लास्टिक कंटेनर्स में खाना गर्म करने से प्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स के कुछ तत्व खाने में मिल जाते हैं, जिसके कारण लंबे समय तक इनका इस्तेमाल कैंसर का कारण बन सकता है.पीवीसी के साइड इफेक्ट्स
- ये शरीर में मौजूद एस्ट्रोजेन और थायरॉइड हार्मोंस को प्रभावित करते हैं. - ये बच्चों के विकास को बाधित करते हैं, जिससे बचपन में ही वे कुछ ऐसी समस्याओं के शिकार हो जाते हैं, जो उनके शारीरिक व मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं. - इसका प्रभाव महिलाओं व पुरुषों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम पर पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप पुरुषों में जहां स्पर्म काउंट कम हो जाता है, वहीं महिलाओं में ओवम की क्वालिटी पर असर पड़ता है. - इससे लिवर कैंसर व किडनी ख़राब होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है.प्लास्टिक की दुनिया
प्लास्टिक वॉटर बॉटल: प्लास्टिक से बनी पानी की बॉटल्स में बीपीए मौजूद होता है, जिसके लगातार इस्तेमाल से गर्भवती महिलाओं और भू्रण में क्रोमोज़ोमल एब्नॉर्मलिटीज़ हो सकती हैं. महिलाओं व पुरुषों की फर्टिलिटी को प्रभावित करता है. इन एब्नॉर्मलिटीज़ के कारण बच्चा जन्मजात दोषों का शिकार हो सकता है. बीपीए के कारण होनेवाले सभी साइड इफेक्ट्स प्लास्टिक की बॉटल से पानी पीनेवालों को हो सकते हैं. दूध की बॉटल्स व सिपर्स: पहले जहां दूध की बॉटल्स स्टेनलेस स्टील की होती थीं, आज उनकी जगह प्लास्टिक की बॉटल्स ने ले ली है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एंवायरन्मेंटल हेल्थ साइंसेज़ के अनुसार प्लास्टिक की इन बॉटल्स में बीपीए होता है, जो नवजात बच्चों के विकास को प्रभावित करता है. दूध की बॉटल्स को उबलते पानी में डालकर ना रखें, इससे प्लास्टिक केमिकल्स बाहर निकलने लगते हैं, जो बच्चे के लिए नुक़सानदायक साबित होगा. प्लास्टिक कंटेनर्स: ज़्यादातर माइक्रोवेव कंटेनर्स प्लास्टिक से बने होते हैं और रिसर्चर्स का मानना है कि कंटेनर के गर्म होने पर कुछ तत्व खाने में मिल जाते हैं, जिनका लंबे समय तक इस्तेमाल कई तरह के कैंसर समेत विभिन्न हेल्थ प्रॉब्लम्स का कारण बन सकता है. इनमें भी बीपीए का इस्तेमाल किया जाता है, तो जो भी साइड इफेक्ट्स उससे जुड़े हैं, उनके होने का ख़तरा बढ़ जाता है. फूड पैकेजिंग: फूड पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल होनेवाले प्लास्टिक्स, प्लास्टिक रैपिंग, ग्लोव्स आदि में पीवीसी केमिकल का इस्तेमाल होता है, जो हमारी आर्टरीज़ की वॉल्स को डैमेज करता है, जिससे हार्ट सेल्स के डैमेज होने का ख़तरा बढ़ जाता है.कम करें प्लास्टिक का उपयोग
- बहुत कम लोगों को पता होता है कि लंबे समय तक प्लास्टिक के बर्तनों में उपयोग उन्हें टॉक्सिक बना देता है, इसलिए कोशिश करें कि छह महीने से ज़्यादा कोई भी बर्तन इस्तेमाल न करें. - पैकेज्ड फूड कंटेनर के हानिकारक नुक़सान से बचने के लिए पैकेज्ड फूड का अधिक इस्तेमाल न करें. उसकी बजाय आप घर पर ही खाना बनाएं. - प्लास्टिक के शॉपिंग बैग की बजाय कपड़े या पेपर बैग का इस्तेमाल करें. - प्लास्टिक की पानी की बॉटल का इस्तेमाल न करें. इनकी जगह आप स्टील की बॉटल रखें. - आजकल हर कोई प्लास्टिक के लंच बॉक्स इस्तेमाल करता है, हो सके तो, स्टील टिफिन बॉक्स इस्तेमाल करें. - चाय-कॉफी के लिए प्लास्टिक के ग्लास की बजाय थर्मोकॉल ग्लासेस का इस्तेमाल करें, पर ध्यान रहे कि वो अंदर से प्लास्टिक कोटिंगवाले न हों. - घर में भी बहुत ज़्यादा प्लास्टिक जमा करने से बचें. जो भी प्लास्टिक की चीज़ें ख़त्म हो जाएं, उन्हें रीसाइकल के लिए बेच दें. - अगर हो सके तो स्ट्रॉ का इस्तेमाल न ही करें. - प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें. अगर करना ही पड़े, तो लंबे समय तक न करें, बल्कि तीन-छह महीने में बदलते रहें. - प्लास्टिक की बजाय कांच के डिब्बों का इस्तेमाल करें, हालांकि उन्हें थोड़ा ज़्यादा संभालना पड़ता है, पर कम से कम उनसे आप किसी बीमारी की चपेट में तो नहीं आएंगे. - कुछ कंपनिया ङ्गबीपीए फ्रीफ होने का दावा करती हैं, पर उनकी गुणवत्ता पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता. - एक्सपर्ट्स की मानें, तो सेफ प्लास्टिक जैसी कोई चीज़ नहीं होती, इसलिए प्लास्टिक इस्तेमाल करते समय इस बात का ध्यान रखें कि लंबे समय तक इनका इस्तेमाल आपके लिए नुक़सानदेह होगा. - कुल मिलाकर यह बात साफ़ हो जाती है कि लंबे समय तक प्लास्टिक का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल इंफर्टिलिटी और कार्डियोवैस्कुलर डिसीज़ेज़ का कारण बनता है.बचें इन चीज़ों से
- कुछ लोग सॉफ्ट ड्रिंक्स की बॉटल्स को ही वॉटर बॉटल बनाकर लंबे समय तक इस्तेमाल करते हैं, जबकि वो महज़ एक बार इस्तेमाल करने के लिए बनी होती हैं, जिन्हें दोबारा यूज़ करने के लिए रिसाइकल की ज़रूरत पड़ती है. आपकी यह आदत ख़तरनाक हो सकती है, इसे छोड़ दें. - प्लास्टिक के कंटेनर में खाने की चीज़ें ज़्यादा देर तक स्टोर करके न रखें. - मार्केट में मिलनेवाली पॉलिथीन बैग्स में भरकर फ्रिज में सब्ज़ियां न रखें, उसकी बजाय ज़िप लॉक पाउच का इस्तेमाल करें. - प्लास्टिक में पैक चीज़ें न ख़रीदें, उसकी बजाय काग़ज़ के बॉक्स या ग्लास जार में पैक की हुई चीज़ें ही ख़रीदें. इससे आप प्लास्टिक का इस्तेमाल घटा सकते हैं. - प्लास्टिक के चम्मच, फोर्क, स्पैट्यूला आदि का इस्तेमाल कम से कम करें. - खाना गर्म करने के लिए कभी भी प्लास्टिक कंटेनर्स का इस्तेमाल न करें. - नॉनस्टिक के बर्तनों में कोटिंग के लिए भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए बहुत ज़्यादा नॉनस्टिक बर्तनों के उपयोग से बचें.- रिद्धी चौहान
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