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बच्चों में टेक एडिक्शन के साइड इफेक्ट्स

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बच्चों में बढ़ता मोबाइल और कंप्यूटर का इस्तेमाल उन्हें स्मार्ट तो बना रहा है, लेकिन इसके अत्यधिक इस्तेमाल से कई नुक़सान भी हो सकते हैं. इसलिए ज़रूरी है बच्चों को टेक एडिक्शन से बचाना.
क्या है टेक एडिक्शन?
टेक्नोलॉजी यानी मोबाइल, कंप्यूटर, इंटरनेट आज हमारी ज़रूरत बन गए हैं और इस टेक्नोलॉजी ने ज़िंदगी को आसान भी बना दिया है. लेकिन जब यही टेक्नोलॉजी ज़िंदगी की ज़रूरत बन जाए, इतनी ज़्यादा ज़रूरी लगने लगे कि इसके बिना कुछ घंटे बिताना भी मुश्किल हो जाए. ज़्यादातर व़क्त बस मोबाइल या सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ही बीतने लगे, इस वजह से परिवार, रिश्तेदार और सोसायटी से भी कटने लगें, तो समझ जाइए कि आप टेक एडिक्शन का शिकार हो गए हैं.
बच्चे ज़्यादा हो रहे हैं शिकार
हालांकि तय गाइडलाइन के अनुसार 15-16 वर्ष के पहले बच्चों को मोबाइल फोन या कंप्यूटर नहीं देना चाहिए, लेकिन आज की बिज़ी लाइफ की मजबूरी कहें या अपने बच्चों की सुरक्षा की चिंता या बच्चों को टेक्नोफ्रेंडली बनाने की चाहत, पैरेंट्स बहुत ही कम उम्र में बच्चों को मोबाइल-लैपटॉप दे देते हैं और एक बार गैजेट्स हाथ में आ जाएं, तो बच्चे इंटरनेट, ऑनलाइन गेम्स, सोशल नेटवर्किंग को ही अपनी दुनिया बना लेते हैं. हालांकि टेक एडिक्शन कोई मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन इसके कई साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. ये साइड इफेक्ट्स सोशल, बिहेवियरल या हेल्थ से संबंधित हो सकते हैं. 1
टेक एडिक्शन के साइड इफेक्ट्स
बच्चे को क्लासरूम में भी अक्सर नींद आती है. वो हर व़क्त उनींदा-सा रहता है.  अपने असाइनमेंट समय पर पूरे नहीं कर पाता. खान-पान संबंधी उसकी आदतें भी बदल जाती हैं. अब न उसे खाने का ध्यान रहता है, न सोने का. दोस्तों से मिलने की बजाय कंप्यूटर या मोबाइल पर समय बिताना ज़्यादा पसंद करता है. कंप्यूटर या वीडियो गेम के बारे में झूठ भी बोलता है. सोशल होने से कतराता है. फैमिली गेट टुगेदर या आउटडोर स्पोर्ट्स उसे बोरिंग लगने लगते हैं. अगर ऑनलाइन न हो, तो अजीब-सी बेचैनी और चिड़चिड़ाहट उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई देती है. ऑफलाइन रहने पर भी या तो पहले की ऑनलाइन एक्टिविटीज़ के बारे में सोचता रहता है या फिर ऑनलाइन आने पर क्या करेगा, इसकी प्लानिंग करता रहता है. इसके अलावा टेक एडिक्शन से बच्चे को हेल्थ प्रॉब्लम्स भी हो सकती हैं. वो ओबेसिटी, हाइपरटेंशन या इनसोमनिया का शिकार हो सकता है. लगातार स्क्रीन पर देखते रहने से आंखों पर स्ट्रेस पड़ता है. इससे उसकी आंखों की रोशनी बहुत कम उम्र में प्रभावित हो सकती है. बच्चा कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम का शिकार हो सकता है. लगातार कंप्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल के इस्तेमाल से गर्दन और कंधे में दर्द की शिकायत हो सकती है. ग़लत पोश्‍चर से कम उम्र में ही कमरदर्द या पीठदर्द भी हो सकता है. लगातार कीपैड यूज़ करने से उंगलियों और कलाई में दर्द की शिकायत हो सकती है. मोबाइल हो, कंप्यूटर-लैपटॉप या टीवी- बच्चे हेडफोन यूज़ करते ही हैं. हेडफोन के अधिक इस्तेमाल से सुनने की क्षमता पर असर पड़ता है. इससे एकाग्रता में भी कमी आती है.
एक सर्वे के अनुसार, 9 से 12 साल के उम्र के 60% स्टूडेंट दिन में लगभग 3 घंटे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बिताते हैं.   3
तो क्या करें पैरेंट्स?
बच्चे को मोबाइल या कंप्यूटर से पूरी तरह दूर रखना मुश्किल है और ऐसा करना भी नहीं चाहिए. इसलिए पैरेंट्स को कुछ ऐसे तरी़के तलाशने होंगे कि वे मोबाइल या कंप्यूटर यूज़ करने पर कंट्रोल कर सकें. इसके लिए पैरेंट्स ये ट्रिक्स ट्राई कर सकते हैं. बच्चे को मोबाइल, लैपटॉप या कोई और गैजेट्स देने से पहले ही कुछ नियम बना लें और बच्चे से पहले ही कह दें कि उसे इन नियमों का पालन करना ही होगा. ध्यान रहे, किसी भी चीज़ के लिए एकदम बैन न लगाएं, बल्कि इन गैजेट्स के इस्तेमाल के संबंध में अपने बच्चे के लिए एक समय सीमा निर्धारित करें. एक गाइडलाइन बनाएं और बच्चे को समझाएं कि उनकी सुरक्षा के लिए ये गाइडलाइन ज़रूरी है. ♦ बच्चों को देर रात तक मोबाइल, कंप्यूटर या इंटरनेट पर रहनेे की इजाज़त न दें. ♦ उनकी ऑनलाइन एक्टीविटीज़ और फ्रेंड्स पर नज़र रखें. बच्चे के पासवर्ड, स्क्रीन नेम और अन्य अकाउंट इंफॉर्मेशन की जानकारी रखें. ♦ आजकल कई ऐसे सॉफ्टवेयर और ऐप्स उपलब्ध हैं, जो विभिन्न साइट्स और उनके कंटेन्ट को फिल्टर करते हैं. इन्हें अपने कंप्यूटर और मोबाइल में इंस्टॉल करवाएं, ताकि आपका बच्चा कोई गैरज़रूरी साइट न ओपन कर सके. उसे इन टेक्नोलॉजी के अधिक इस्तेमाल से होनेवाले नुक़सान के बारे में भी समझाएं. यक़ीन मानिए एक बार उसे समझ आ जाएगा, तो वो सतर्क रहेगा. आज जबकि दुनिया हाईटेक हो रही है, तो ऐसे में बच्चों को टेक्नोलॉजी से दूर रखना ना तो मुमकिन है और न ही ऐसा करना समझदारी है. ऐसे में पैरेंट्स को ही गाइडलाइन बनानी होगी, बच्चों को टेक एडिक्शन के साइट इफेक्ट्स के बारे में बताना होगा, ताकि बच्चा टेक्नोफ्रेंडली भी बने और उसे किसी तरह का नुक़सान भी न हो.                                                            

- श्रेया तिवारी

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