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कहानी- दूरियों से नज़दीकियों तक  (Short Story- Duriyon Se Najdikiyon Tak)

अनुष्का चाहती थी कि मीतू स्वयं इस विषय में बात करें, परंतु मीतू तो मानो चुप सी थी. अगले दो दिन तक जब मीतू कॉलेज ना गई, तो अनुष्का के दिमाग़ में कुछ ठनका और तीसरे दिन दफ़्तर से आते हुए अनुष्का मीतू की मनपसंद कचौड़ी पैक करवाती लाई. जानती थी कि आज सासु मां को कीर्तन पर जाना है और मीतू घर पर अकेली होगी.

"भाभी! आप भी ना हर रोज़ देर करवा देती हैं. कितनी बार कहा है मेरा सूट समय पर प्रेस कर दिया करो और यह क्या आज भी इतना घी वाला परांठा..? कभी तो पोहा बना दिया करो ना प्लीज़." ग़ुस्से से मीतू बोली और हर बार की तरह अनुष्का ने कोई जवाब नही दिया और जल्दी-जल्दी मीतू का सूट प्रेस करके देने लगी.
अभी अनुष्का के विवाह को मात्र चार महीने हुए थे और उम्र में उससे छोटी ननद मीतू को तो अपनी भाभी को सम्मान देना तो आता ही नहीं था. हैरानी तब होती थी, जब सासु मां भी मीतू के दुर्व्यवहार पर अपने कान बंद कर लेती थीं.
शिकायत करती भी तो अनुष्का किससे करती. जानती थी कि प्रेम विवाह किया था क़ीमत तो उसे और समीर को चुकानी ही होगी.
एक ही दफ़्तर में काम करनेवाले समीर और अनुष्का कब एक-दूसरे को चाहने लगे पता ही ना चला और दोनों की दूरियां नज़दीकियों में बदल गई. परंतु कहते हैं ना कि सब कुछ अच्छा हो, तो ज़िंदगी में मज़ा कहां आता है, सो सासु मां और ननद मीतू को अनुष्का एक आंख न भाई. ठोस कारण कुछ भी नहीं था या शायद अपनी पसंद ना होने की वजह से उन्होंने अनुष्का को अपने नज़दीक आने ही ना दिया.

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बेचारी अनुष्का प्रतिदिन बहुत प्रयास करती उनको ख़ुश रखने का, परंतु सास या ननद कोई न कोई कमी निकाल ही देती थी. वो कहते हैं ना, जब कोई दिल मिलाना ना चाहे, तो सभी गुण अवगुण में बदल जाते हैं.
खैर अनुष्का अपनी तरफ़ से सभी कोशिश कर ही रही थी कि किसी तरह संबंध ठीक हो जाएं.
और अचानक एक दिन दफ़्तर से आते हुए अनुष्का ने देखा की कोई लड़का मीतू का पीछा कर रहा है और मीतू भी घबराई हुई तेज कदमों से घर की ओर बढ़ रही है.
अपने कदमों को तेज करके अनुष्का मीतू के साथ हो ली. पहली बार मीतू कुछ ना बोली और अनुष्का के बात करने पर आराम से बात करने लगी और अनुष्का को देखकर वह मनचला उधर से गायब हो गया.
अनुष्का चाहती थी कि मीतू स्वयं इस विषय में बात करें, परंतु मीतू तो मानो चुप सी थी. अगले दो दिन तक जब मीतू कॉलेज ना गई, तो अनुष्का के दिमाग़ में कुछ ठनका और तीसरे दिन दफ़्तर से आते हुए अनुष्का मीतू की मनपसंद कचौड़ी पैक करवाती लाई. जानती थी कि आज सासु मां को कीर्तन पर जाना है और मीतू घर पर अकेली होगी.
"देखो मीतू, तुम्हारी मनपसंद प्याज़ की कचौड़ी लाई हूं. जल्दी से आ जाओ."
"नहीं भाभी, मेरा दिल नहीं." अनमने भाव से मीतू बोली.
"ऐसे कैसे मन नहीं? पता है आज क्या हुआ एक लड़का मेट्रो से ही मेरे पीछे आ रहा था और जैसे ही उसने मुझ पर ग़लत कमेंट्स किया, मैने झट घूमकर उसका कॉलर पकड़ लिया." अनुष्का बोली.
आश्चर्य से मीतू बोली, "सच भाभी! आपको डर नही लगा?"

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"अरे, इसमें डर कैसा. ग़लत काम करने पर उस लड़के को सज़ा तो मिलनी ही चाहिए थी ना!" अनुष्का ने कहा.
"पर भाभी मेरे साथ ऐसा होने पर मै तो बहुत डर जाती हूं और कुछ कर ही नही पाती." मीतू ने उत्तर दिया.
और देखते ही देखते ना जाने अनुष्का ने कितने ही क़िस्से अपने कॉलेज के मीतू को सुना दिए और साथ ही दोनो ननद-भाभी ने दो-दो प्याज़ की कचौड़ियां भी निपटा दी.
आज पहली बार मीतू ने भाभी के साथ खुलकर बात की थी और ऐसे ही एक पल की, तो अनुष्का को तलाश थी, जिसमें वो मीतू को एहसास करवा सके कि प्रेम विवाह किया तो क्या. परंतु अनुष्का भी एक अच्छी लड़की है.
आज उस एक पल ने ना सिर्फ़ ननद-भाभी की दूरियों को नज़दीकियों में बदल दिया था, बल्कि मीतू को ऐसे मनचलों से निपटने का रास्ता भी मिल गया था.
दोस्तों, दूरियों को नज़दीकियों में बदलने के लिए सिर्फ़ सच्चे मन से किए जानेवाले एक प्रयास की ही आवश्यकता होती है.

- पूजा अरोड़ा

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