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कहानी- आम की बर्फी 2 (Short Story- Aam Ki Barfi 2)

"मैं लौटने नहीं, रहने आई हूं. सर्वेंट क्वार्टर साफ़ कर वहां रह लूंगी. सब काम कर दूंगी. आप चाहें, तो खाने-पीने के पैसे काट लेना. घर बैठे भूखों मरने की नौबत आ गई है, इसलिए हमने साथ रहने का मोह त्यागकर जहां काम मिल जाए, वहीं रह जाने का निर्णय लिया है..."

        उनके घर पहुंचते ही मैंने सबसे पहले भगवान को प्रसाद चढ़ाया था. उनके आने के अगले दिन से ही फ्लाइट, ट्रेन सब बंद हो गए थे. कर्पयू, महाकर्पयू, एक के बाद एक लॉकडाउन... यह सोचकर ही रूह कांप उठती है कि यदि उस दिन बच्चे न आ पाए होते तो? राजन और दोनों बच्चों का आधे से ज़्यादा समय वर्क फ्रॉम होम में निकल रहा था, पर वीकेंड और शेष समय भी हम क्वालिटी टाइम एंजॉय कर रहे थे. खटक रही थी तो केवल एक बात. जनता कर्पयू वाले दिन से ही सुमित्राबाई का आना बंद हो गया था, इसलिए घर का काम अप्रत्याशित रूप से बहुत ज़्यादा बढ़ गया था. राजन के साथ साथ अंकुर और शिप्रा भी अपनी ओर से मेरी मदद का पूरा प्रयास कर रहे थे, पर सच्चाई यही थी कि मेरी बढ़ती उम्र बढ़ते कार्यभार का बोझ वहन नहीं कर पा रही थी. तन-मन की शिथिलता में मैं कई बार कामना करती कि काश सुमित्रा आकर पूर्ववत सब काम संभाल ले, तो मैं अपने और बच्चों के लिए कुछ वक़्त निकाल सकूं. विशेषतः शिप्रा को कुछ उसका मनपसंद बनाकर खिला सकूं. यह भी पढ़ें: लाइफस्टाइल ने कितने बदले रिश्ते? (How Lifestyle Has Changed Your Relationships?) आज सवेरे-सवेरे अचानक दरवाज़े पर सुमित्रा को खड़े देखा, तो एकबारगी तो मेरी बांछें खिल उठीं. फिर लगा शायद पैसे मांगने आई होगी. "पिछले महीने दिए तो थे पैसे." मेरे मुंह से निकल गया. "पैसे मांगने नहीं आई." "अभी काम नहीं करवाना. लॉकडाउन ख़त्म होने दो." राजन ने उसे रवाना करना चाहा, तो कपड़े से कसकर बंधे मुख में से एकमात्र नज़र आती उसकी आंखें पनीली हो उठीं. "मैं लौटने नहीं, रहने आई हूं. सर्वेंट क्वार्टर साफ़ कर वहां रह लूंगी. सब काम कर दूंगी. आप चाहें, तो खाने-पीने के पैसे काट लेना. घर बैठे भूखों मरने की नौबत आ गई है, इसलिए हमने साथ रहने का मोह त्यागकर जहां काम मिल जाए, वहीं रह जाने का निर्णय लिया है. कारखाने खुल गए हैं, तो पति और बेटा वहां चले गए और मैं आप लोगों के भरोसे यहां आ गई और कहीं काम करने नहीं जाऊंगी." उसने हाथ जोड़ दिए थे. यह भी पढ़ें: घर को मकां बनाते चले गए… रिश्ते छूटते चले गए… (Home And Family- How To Move From Conflict To Harmony)   अब हमने ध्यान दिया उसके कंधे पर एक थैला भी था. मतलब वह अपने कपड़े वगैरह लेकर आई थी. मैंने और राजन ने एक-दूसरे की आंखों में झांका. हमेशा की तरह राजन मेरे मन की बात समझ गए और अंदर चले गए. मैंने साबुन, सर्फ, सेनीटाइज़र आदि लाकर सुमित्रा को पकड़ाए. वह समझ गई. पनीली आंखें ख़ुशी से चमक उठीं.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...

Anil Mathur अनिल माथुर अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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