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कहानी- आंखें बोलती हैं… 3 (Story Series- Aankhen Bolti Hain… 3)
"जल्दी चलो यहां से...” सुनकर सरस ने बिना आव-ताव देखे मोटरसाइकिल मसूरी की तरफ़ दौड़ा दी.
मसूरी रोड़ पर वे काफ़ी दूर निकल आए थे, "इतनी चुप क्यों हो... फोन पर तो धमकी दे देकर मेरी जान सुखा देती थी.”
"मैंने कब धमकी दी, पर आज तुम्हारी आवाज़ बदली-बदली सी क्यों लग रही है..."
... शनिवार-रविवार गुज़ारने तो और भी मुश्किल हो जाते हैं. हताश-सा वह बिस्तर पर लेट गया. फोन बज रहा था, पर उसने नहीं उठाया. रुहानी आजकल उस पर बहुत हावी होने लगी है. बात-बात पर नाराज़ हो जाती है. मम्मी-पापा की डांट खाओ... रुहानी की डांट खाओ... खाओ-खाओ सबकी खाओ... वह ग़ुस्से में बड़बड़ाया और कोहनी से आंखें ढंककर सोने की कोशिश करने लगा.
आख़िर समय बीता. कोरोना का प्रकोप कुछ कम हो गया था. जगह-जगह से मास्क पहनना कंपलसरी करके लोग बाहर आने-जाने लगे थे. सरस की जान में जान आई.
इतने महीनों में सरस ने अपनी दाढ़ी बढ़ा ली थी. रविवार था. घर में दोस्त से मिलकर आने को कहकर सरस मास्क और हेलमेट पहनकर, काला चश्मा लगा मोटरसाइकिल से बाहर निकल गया. बहुत दिनों बाद इस तरह से अपनी मोटरसाइकिल से जाना उसे बहुत भला लग रहा था. मेन राजपुर रोड़ पर आकर उसने अपनी मोटरसाइकिल पैसिफिक माॅल की तरफ़ मोड़ दी, जिसके सामने उसे रुहानी खड़ी मिलनेवाली थी. उसके बाद उनका प्लान मसूरी की तरफ़ जानेवाली सड़क पर काफ़ी दूर जाकर पहाड़ी के पास किसी पेड़ के झुरमुट में बैठकर मीठे-मीठे गीत गाने का था. अपने इस नए लुक के बारे में उसने अभी तक रुहानी को नहीं बताया था.
जब वह माॅल के सामने पहुंचा, तो मेन रोड़ पर कुछ लड़कियां अलग-अलग खड़ी नज़र आईं. सभी लड़कियों ने अपना पूरा सिर व चेहरे को सूती दुपट्टे से ढंका हुआ था. मुख पर मास्क था. आंखों पर काला चश्मा, जीन्स टी-शर्ट पहने लगभग सभी एक जैसी लग रही थीं.
रुहानी को देखे एक लंबा समय बीत गया था. रुहानी बता रही थी कि आजकल उसका थोड़ा वज़न बढ़ गया है. इसलिए वह ठीेक से अंदाज़ा नहीं लगा पा रहा था. कहीं किसी ग़लत लड़की के पास मोटरसाइकिल रोककर खड़ा हो गया, तो जूते न पड़ जाएं. कुछ सोचकर उसने थोड़ा हटकर मोटरसाइकिल खड़ी की और एक पैर नीचे रख खड़ा हो गया. वह ख़ुद न सही, रुहानी तो उसे पहचान ही लेगी. वह इस पल भूल ही गया था कि दाढ़ी, चश्मे, मास्क व हेलमेट में वह ख़ुद भी पहचाना नहीं जा रहा.
तभी धम्म से रुहानी मोटरसाइकिल के पीछे बैठती हुई बोली, "जल्दी चलो यहां से...” सुनकर सरस ने बिना आव-ताव देखे मोटरसाइकिल मसूरी की तरफ़ दौड़ा दी.
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मसूरी रोड़ पर वे काफ़ी दूर निकल आए थे, "इतनी चुप क्यों हो... फोन पर तो धमकी दे देकर मेरी जान सुखा देती थी.”
"मैंने कब धमकी दी, पर आज तुम्हारी आवाज़ बदली-बदली सी क्यों लग रही है... फटा बांस आज सुरीला कैसे हो गया?” सुनकर रुहानी हंसती हुई बोली.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
सुधा जुगरान
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