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कहानी- असंतुलित रथ की हमसफ़र 3 (Story Series- Asantulit Rath Ki Humsafar 3)

‘‘ट्रेन का लेट होना, सुनसान स्टेशन पर तुमसे मिलना, उसके चंद घंटों के भीतर मेरा बेरोज़गार से एक प्रतिष्ठित विद्यालय का प्रवक्ता बन जाना सब कुछ पूर्व निर्धारित-सा लगता है. कल जब पहली बार तुम्हें देखा था, तो न जाने क्यूं दिल ने कहा था कि तुम वही हो जिसकी मुझे तलाश है.   ... ‘‘व्हाट बट?’’ ‘‘अगर इस विद्यालय में दो वेकेन्सी होतीं, तो तुम्हारा भी अपॉइंटमेंट हो जाता. फिर हम दोनों का साथ बना रहता.’’ रवीश के स्वर में बिछड़ने का दर्द उभर आया. "काश, ऐसा हो पाता.’’ दीपा ने निस्वास छोड़ी. ‘‘अगर तुम चाहो, तो यह साथ बना रह सकता है.’’ रवीश के चेहरे पर दृढता के चिह्न उभर आए. ऐसा लग रहा था कि वह कोई निश्चय करके आया है. ‘‘वो कैसे?’’ ‘‘मुझसे शादी कर लो दीपा.’’ रवीश ने सीधे उसकी आंखों में झांकते हुए तीर छोड़ दिया. ‘‘वो...ऽ...कैसे... ये...ऽ... लेकिन...ऽ... सब...ऽ... क्या... मैं...ऽ...’’ दीपा के कांपते होंठों से कुछ अस्पष्ट से शब्द निकले. वह तय ही नहीं कर पा रही थी कि उसे क्या कहना चाहिए. रवीश की अप्रत्याशित बाण वर्षा से वह कर्तव्यविमूढ़-सी हो गई थी. "क्या मैं तुम्हें नापसंद हूं या तुम किसी और को पसंद करती हो?’’ रवीश ने एक बार फिर उसकी आंखों में झांका. ‘‘यह बात नहीं है?’’ दीपा सिहर उठी. ‘‘तो फिर?’’ ‘‘इतना बड़ा फ़ैसला कोई इतनी जल्दी कैसे कर सकता है?’’ दीपा कसमसाई. ‘‘तुम्हारा कहना भी ठीक है.’’ रवीश ने सिर हिलाया. फिर बोला, ‘‘ट्रेन का लेट होना, सुनसान स्टेशन पर तुमसे मिलना, उसके चंद घंटों के भीतर मेरा बेरोज़गार से एक प्रतिष्ठित विद्यालय का प्रवक्ता बन जाना सब कुछ पूर्व निर्धारित-सा लगता है. कल जब पहली बार तुम्हें देखा था, तो न जाने क्यूं दिल ने कहा था कि तुम वही हो जिसकी मुझे तलाश है. तब कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका, लेकिन आज कह सकता हूं कि किसी भी लड़के को तुम्हारी जैसी सुंदर और उच्च शिक्षित लड़की को जीवनसाथी के रूप में पाकर गर्व होगा. मैं अपना फ़ैसला सुना चुका हूं, अब तुम्हारे फ़ैसले का इंतज़ार है.’’ ‘‘रवीश, समझने की कोशिश करो. मैं इतनी जल्दी कोई फ़ैसला नहीं कर सकती.’’ न चाहते हुए भी दीपा के स्वर में झुंझलाहट-सी उभर आई. ‘‘मैं समझ सकता हूं यह सब इतना आसान नहीं है.’’ रवीश ने सिर हिलाया फिर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे साथ बरेली चलता हूं. रास्ते में जी भर कर सोच लेना. उसके बाद अगर कहोगी, तो तुम्हारे घरवालों से मिल लूंगा और अगर मना करोगी, तो स्टेशन से ही वापस लौट आउंगा.’’ ‘‘ठीक है.’’ दीपा ने हामी भरी. उसे इस प्रस्ताव में कोई बुराई नज़र नहीं आई. वैसे भी कल के सफ़र में रवीश अपनी शराफ़त का परिचय दे चुका था. यह भी पढ़ें: क्या आपका अतीत आपको आगे नहीं बढ़ने दे रहा है? बीते कल के इमोशनल बैगेज से ऐसे छुटकारा पाएं (Is Your Emotional Baggage Holding You Back? 10 Hacks To Get Rid Of Emotional Baggage) अगली सुबह की ट्रेन से दोनों बरेली चल दिए. रवीश ने बताया था कि नौकरी लगते ही उसके घरवाले दहेज के लालच में किसी कम पढ़ी-लिखी लड़की से उसकी शादी करने की तैयारी में हैं. ऐसी लड़की से वह मानसिक तालमेल नहीं बैठा पाएगा, इसीलिए वह दीपा जैसी शिक्षित लड़की से जल्द-से-जल्द शादी करना चाहता है. दीपा उस रात सो नहीं पाई थी. उधेड़बुन में करवटें बदलती रही. रास्ते में भी वह मौन ही रही. रवीश ने भी उसे नहीं टोंका, वह उसे जी भर कर सोच लेने का अवसर देना चाहता था. ट्रेन के बरेली प्लेटफार्म पर प्रवेश करते समय भी जब दीपा का मौन नहीं टूटा, तो रवीश का दिल धड़कने लगा. पता नहीं दीपा का निर्णय क्या हो?.. अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Sanjeev Jaiswal 'Sanjay' संजीव जायसवाल ‘संजय’   अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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