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कहानी- चाभी 3 (Story Series- Chabhi 3)

“अच्छा हुआ मम्मी नहीं हैं यहां पर, वरना उनका तो बहू की आरती तक उतारने का प्लान रहा होगा. इस लतिका को देखती, तो क्या होता?” “अच्छी ग़लतफ़हमी हुई हम सबको. मज़ेदार!” कहते हुए वह मुस्कुराई. “तू मेहमानों को सब अच्छे-से खिला-पिला देना.” सुलोचना उसे सब समझाकर चली गईं. ‘और मेरे काम का क्या होगा. उफ़़्फ्! अब क्या होगा रिनी तेरा. उस पर ये ज़बर्दस्ती के मेहमान. मैडम लतिका की बारात...’ सुबह निहार चाभी देकर ऑफिस निकल गया था, ये कहते हुए कि ‘वैसे तो मैं उन्हें  स्टेशन लेने जाऊंगा, क्योंकि छोटी लतिका को अकेले ला नहीं पाएगी. वो बड़ी चंचल है. पर बाई चांस...” बाई चांस... चंचल लतिका... माय फुट...उसे लतिका से जाने क्यों चिढ़-सी होने लगी थी. चाभी की होल्डर पर लटकाई, पर वो तो गले में ही अटक गई हो जैसे. पौने दो ही बजे होंगे, एक गाड़ी रुकी. फटाफट दरवाज़े खुल गए. एक 17-18 साल की लड़की उतरी. उसकी गोद में एक पमेरियन बिच थी. ज़रूर ये छोटी ही होगी. ड्राइवर उसके कहने पर बैग उतारकर उसके साथ आने लगा. पर लतिका मैडम कहां हैं. ज़रूर मियांजी के साथ आ रही होंगी. इससे पहले वह बेल बजाती, रिनी ने दरवाज़ा खोल दिया. “छोटी?” “हम्म... आप रिनी दी?” “हां... बड़ी प्यारी डॉगी है. काटेगी तो नहीं?” उसने सहलाया था. “मैं चाभी लाई... पर भाभी कहां है तुम्हारी?” “भाभी?” “हां, चंचल लतिका...” डॉगी कूदकर उसके पांव पर कूदने लगी. “अपना नाम सुनकर उछलने लगती है लतिका... स्टॉप! स्टॉप!” “क्या?... ओह! तो लतिका इसका नाम है.” “हां, पर ये मेरी भाभी नहीं.” वह हंसी, तो रिनी भी हैरान-सी हंस पड़ी. “आंटीजी कहां हैं? भैया ने मुझे आप लोगों के बारे में सब बताया था. बड़ी तारीफ़ करते हैं आप लोगों के खाने की, आप लोगों की. बड़े अच्छे लोग हैं, कहते नहीं थकते.” “वो मम्मी को अचानक जाना पड़ गया. उनकी एक मुंहबोली मामी की डेथ हो गई.” “ओह!” “अच्छा हुआ मम्मी नहीं हैं यहां पर, वरना उनका तो बहू की आरती तक उतारने का प्लान रहा होगा. इस लतिका को देखती, तो क्या होता?” यह भी पढ़ेLearn English, Speak English : अंग्रेज़ी में सांत्वना देने के 10+ तरीक़े (Phrases Used To Console And Offer Condolences) “अच्छी ग़लतफ़हमी हुई हम सबको. मज़ेदार!” कहते हुए वह मुस्कुराई. “फ्रेश होकर नीचे आ जाना. मम्मी खाना बनाकर गई हैं.” निहार आया, तो उसके हाथ में दूध की थैली और बड़ा-सा पेडिग्री पैकेट था. “तू चली आई इसे लेकर. मैं तो पहुंच ही रहा था, लतिका का इंतज़ाम कर.” वह भी छोटी के साथ नीचे रिनी के घर आ गया. तीनों ने मिलकर खाना खाया, बर्तन-टेबल साफ़ किए और लतिका का निहार की पत्नी होने की गलतफ़हमी पर वे देर तक ख़ूब हंसते रहे. “मुझे तो कम, पर मम्मी को इतना ग़ुस्सा आता था तुम्हारी लतिका भाभी पर कि ज़रा भी चिंता नहीं है हसबैंड की. उसे छोड़कर बैठी है मस्ती से. कैसे खाता-पीता है, कैसे रहता है, कोई मतलब नहीं उसे? और निहार ने भी कभी क्लीयर नहीं किया.” “कई बार आंटी के ग़ुस्से को देख बताना चाहा, पर बातों का रुख मुड़ जाता. दूसरी बातें होने लगतीं.” तीसरे दिन ही सुलोचना मुन्ना की टैक्सी में कम्मो के साथ वापस आ गईं. लतिका को मिलने को बड़ी बेताब थीं. ‘अच्छी ख़बर लूंगी. अच्छे-ख़ासे लड़के की क्या हालत बनाकर रखी है.’ पर असलियत मालूम होने पर वह भी ख़ूब हंसीं. रिनी ख़ुश थी कि मम्मी ख़ुश हैं, क्योंकि छोटी से उनकी ख़ूब पटती. उन्हें कोई बातें करनेवाला मिल गया था. नई-नई चीज़ें बनातीं, तो ऊपर उसके यहां ज़रूर भिजवातीं. लतिका भी उन सबसे ख़ूब हिलमिल गई थी. छोटी के हॉस्टल जाने का समय आ गया था. छोटी और निहार नीचे ही डिनर पर थे. सुलोचना से रहा नहीं गया, “छोटी, तू चली जाएगी, तो इसका क्या होगा. अब किसके लिए इंतज़ार करेगा? मम्मी-पापा इसका ब्याह क्यों नहीं करा देते. ज़रूरत नहीं समझते क्या? लतिका पर तो हम नाहक ही नाराज़ हुए.” वह यादकर हंसी थीं. “आंटीजी, ज़रूरत तो है ही एक श्रीमती की, जो इनका ख़्याल रखे, इनको संवारे, घर संवारे और चाभी ही नहीं, चाभियों का पूरा गुच्छा कमर में लटकाकर रखे. पर भइया भी हैं न. पता नहीं कैसे चाभी रिनी दी को दे दी, वरना भैया तो इतनी-सी चीज़ भी कभी किसी को नहीं देते. बचपन में तो पेन-पेंसिल क्या रबर, बॉल तक किसी को छूने नहीं देते थे. मुझे भी नहीं. दूसरी भले ख़रीदकर दे दें, पर अपनी नहीं छूने देते थे कभी. आप पर पता नहीं कैसे इतना विश्‍वास कर लिया?” वह निहार को चिढ़ाते हुए हंस पड़ी. “एक आइडिया है.” “क्या?” रिनी कंप्यूटर पर कुछ चेक करते हुए यूं ही बोल गई. “मेरी, आपकी, आंटीजी की, मम्मी-पापा, भइया सबकी चिंता एक साथ दूर हो सकती है.” “क्या? कैसे?” सुलोचना कौतूहल से भर उठीं. छोटी रिनी के कान पर हाथ रखकर फुस़फुसाई, “इनकी सारी चाभियों का गुच्छा आप ही क्यों नहीं रख लेतीं दी? भइया को कोई ऐतराज़ न होगा. आपके लिए उनकी आंखों में प्यार पढ़ लिया है मैंने. मैं पक्का जानती हूं, आपको पसंद करते हैं. आप भी अच्छे से सोच लो. जल्दी नहीं है.” कहकर वो मुस्कुराई, तो रिनी भी मुस्कुरा दी. निहार उन दोनों को हैरानी से देख रहा था. यह भी पढ़े25वें साल में शुरू करें ये 20 ख़ास बदलाव (20 Things You Must Do Before Turning 25) “कोई मुझे भी तो बताओ. क्या ख़ुसर-फुसर लगा रखी है.” सुलोचना अपने मन की बात उनके मुंह से जानने को उत्सुक हो उठीं. “ओ बेचारे भोलूचंद भइया! कुछ नहीं बस, चाभी रखने की ही बात कह रही थी आंटीजी. मैं पूरे टाइम थोड़े ही रहूंगी यहां. हॉस्टल में रहूंगी न. यहां आती-जाती रहूंगी.” “खाली ये बात तो नहीं हो सकती.” सुलोचना अपने अनुभव से मुस्कुराईं. “छोटी, इतना मूर्ख़ तो मैं भी नहीं. सब समझ रहा हूं.” वह मन ही मन मुस्कुराया था. पेट के रास्ते ही सही, उसके भी दिल में घंटी बज चुकी थी. मोबाइल पर कोई गाना सुनता जा रहा था- ‘....मेरे सीने में जो दिल है, आज से तेरा हो गया, आज से मेरी...’ “चाभियां तेरी हो गईं...” छोटी ने हंसते हुए लाइन पूरी कर दी थी.  Dr. Neerja Srivastava डॉ. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

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