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कहानी- चांद के पार 1 (Story Series- Chand Ke Paar 1)

झील के किनारे कतारों में बने घरों की सुंदरता को अपलक निहारते हुए वो अपनी धुन में आगे बढ़ती जा रही थीं. उन्हें इसका आभास तक नहीं हुआ कि कब आसमान में बादल छा गए और तेज़ हवाओं के साथ बारिश होने लगी. अचानक आई इस मुसीबत से निपटने के लिए वो एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गईं. अपना देश रहता, तो भागकर किसी घर के अहाते में खड़ी हो जातीं, पर इस देश में यह बहुत बड़ा जुर्म है. आए दिन लाल-पीली-नीली बत्तियोंवाली कॉप की गाड़ियां शोर मचाती गुज़रती थीं, पर आज इस मुसीबत की घड़ी में उनका भी कोई पता नहीं है.
“अरे आप तो पूरी तरह से भीग गई हैं…” अचानक उनके ऊपर छतरी तानते हुए किसी ने कहा, तो जया चौंककर मुड़ गईं. सामने 60-65 वर्ष के व्यक्ति को देखकर वे संकुचित हो उठीं.
जया को सियाटल आए आज दो हफ़्ते हो गए थे. जब तक जेटलेग था, दिनभर सोती रहती थीं. जब वो सोकर उठतीं, तो बहू-बेटा, पोता-पोती सभी आ जाते थे, पर रात के 8 बजते ही वे अपने कमरों में चले जाते. वो भी क्या करें, ऑफिस और स्कूल जाने के लिए उन्हें सुबह उठना भी तो पड़ता था. जब जेटलेग जाता रहा, उन सब के जाते ही उतने बड़े घर में वे अकेली रह जातीं. अकेलेपन से ही तो उबरने के लिए 26 घंटे की लंबी यात्रा करके वे अपने देश से इतनी दूर आई थीं. अकेलापन तो बना ही रहा, बस उसमें सन्नाटा आकर जुड़ गया, जिसे उनका एकाकी मन झेल नहीं पा रहा था.
सुई भी गिरे, तो उसकी आवाज़ की गूंज पूरे घर में फैल जाती थी. कितना यांत्रिक जीवन है यहां के लोगों का कि आपस में ही संवादहीनता बिखरी रहती है. नाप-तौलकर सभी बोलते भी तो हैं. उनके उठने से पहले ही बिना किसी शोर के चारों जन अपने अपने गंतव्य की ओर निकल जाते हैं. जाने के पहले बहू अणिमा उनकी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति कर जाती थी. अपनी दिनचर्या के बाद पूरे घर में घूमकर कुछ सामान को वह इधर-उधर ठीक करतीं, फिर घर के सदस्यों की असुविधा का ख़्याल करके यथावत रख देतीं.
हफ़्तेभर की बारिश के बाद बादलों से आंख-मिचौली करता हुआ उन्हें आज सूरज बहुत ही प्यारा लग रहा था. अपने देश के चहल-पहल को याद कर उनका मन आज कुछ ज़्यादा ही उदास था, इसलिए अणिमा के मना करने के बावजूद वे लेक समामिस की ओर निकल गईं. ऊंची-नीची चढ़ाई से थककर कभी वो किसी चट्टान पर बैठकर अपनी चढ़ती-उतरती सांसों पर काबू पातीं, तो कभी आती-जाती गाड़ियों को निहारते हुए आगे बढ़ जातीं. कहीं गर्व से सिर उठाए ऊंचे-ऊंचे पेड़ों की असीम सुंदरता उन्हें मुग्ध कर देती. सड़क के इस पार से उस पार छलांग लगाते हिरणों का झुंड देखकर डर जातीं. झुरमुटों से निकलकर फुदकते हुए खरगोश को देखकर वे किसी बच्ची की तरह ख़ुश हो जातीं.
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झील के किनारे कतारों में बने घरों की सुंदरता को अपलक निहारते हुए वो अपनी धुन में आगे बढ़ती जा रही थीं. उन्हें इसका आभास तक नहीं हुआ कि कब आसमान में बादल छा गए और तेज़ हवाओं के साथ बारिश होने लगी. अचानक आई इस मुसीबत से निपटने के लिए वो एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गईं. अपना देश रहता, तो भागकर किसी घर के अहाते में खड़ी हो जातीं, पर इस देश में यह बहुत बड़ा जुर्म है. आए दिन लाल-पीली-नीली बत्तियोंवाली कॉप की गाड़ियां शोर मचाती गुज़रती थीं, पर आज इस मुसीबत की घड़ी में उनका भी कोई पता नहीं है.
“अरे आप तो पूरी तरह से भीग गई हैं…” अचानक उनके ऊपर छतरी तानते हुए किसी ने कहा, तो जया चौंककर मुड़ गईं. सामने 60-65 वर्ष के व्यक्ति को देखकर वे संकुचित हो उठीं.
“मैं शिव पटना, बिहार से हूं. शायद आप भी भारत से ही हैं. आइए ना सामने ही मेरी बेटी का घर है. बारिश रुकने तक वहीं रुकिए.”
जया मंत्रमुग्ध-सी शिव के साथ चल पड़ीं. पलभर को उन्हें ऐसा लगा कि इस व्यक्ति से उनकी पहचान बहुत पुरानी हो. बड़े सम्मान और दुलार के साथ शिव ने उन्हें बैठाया. जया को टॉवेल थमाते हुए तेज़ी से अंदर गए और दो कप कॉफी बनाकर ले आए.
“अभी घर में बेटी नहीं है, वरना उससे पकौड़े बनवाकर आपको खिलाता. पकौड़े तो मैं भी बहुत करारे बना सकता हूं. साथ छोड़ने से पहले मेरी पत्नी पद्मा ने मुझे बहुत क़ाबिल कुक बना दिया था.” कहते हुए शिव की पलकों पर स्मृतियों के बादल तैर गए.
शिव अपने बारे में कहते गए और मौन बैठी जया आभासी आकर्षण में बंधी उनके दुख-सुख को आत्मसात करती रहीं. अचानक शिव के धारा प्रवाह वार्तालाप पर विराम लग गया. हंसते हुए वे बोले, “आपको तो कुछ बताने का अवसर ही नहीं दिया मैंने, अपने ही विगत को उतारता रहा. क्या करूं, बेटी की ज़िद से आ गया. आराम तो यहां बहुत है, पर किससे बात करूं! यहां तो किसी को फुर्सत ही नहीं है, जो पलभर के लिए भी पास बैठ जाए.
पटना में बातचीत करने के लिए जब कोई नहीं मिलता है, तो नौकर के परिवार से ही इस क्षुधा को शांत कर लेता हूं. जाते-जाते पद्मा ने उन सबको कह दिया था कि बाबूजी को भले ही नमक-रोटी दे देना खाने के लिए, लेकिन बातचीत हमेशा करते रहना. बालकनी में उनका किचन बनवाकर फ्लैट का एक रूम रामू को दे दिया था, जिसमें वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता है.” शिव कुछ आगे कहते कि जया ने रोक लगाते हुए कहा, “मेरी समझ से बारिश रुक गई है और मुझे चलना चाहिए.”
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“क्यों नहीं, चलिए मैं आपको छोड़ आता हूं. इसी बहाने आपका घर भी देख लूंगा. जब भी अकेलापन महसूस करूंगा, आपको परेशान करने चला आऊंगा…” कहते हुए शिव साथ हो लिए. जया भी उन्हें मना नहीं कर सकीं.
रेणु श्रीवास्तव
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