“कुछ महीनों पहले तक एक रोटी भी हजम नहीं होती थी. अब गर्म-गर्म इसके हाथ से दो खा लेती हूं.” वह बोली, तो पल्लव के चेहरे पर संतोष झलक आया. जिस प्रकार एक मां अपने नन्हें बेटे को रोटी खिलाकर संतोष से भरती है, कुछ वैसे ही भाव उनकी आंखों में थे. प्लेट उठाते हुए बोले, “आप इनसे बातें कीजिए. तब तक मैं चाय बना लाता हूं.” उसे असहज देख वह बोले, “इस घर की रवायतें आम घरों से अलग हैं. मुझे काम करते देख आप अचंभित न हों.” वह रसोई में चले गए.
... “जी, आज आपकी वाइफ के हाथों की चाय ही पीने आई थी, नहीं जानती थी कि आप भी घर पर होंगे.” “अक्सर रहता हूं. दरअसल मां की तबीयत ठीक न होने से ऑफिस का काम घर से करता हूं... और हां, मेरी वाइफ नहीं है. चाय मेरे हाथ की ही पीनी पड़ेगी.” “ओह!” उसके मुंह से बेसाख्ता निकला, तो वह झट से बोले, “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है... बस हम साथ नहीं रहते हैं.” सुनकर वह चौंकी. “आप थोड़ी देर मेरी मां के पास बैठ सकती हैं. उन्हें भी अच्छा लगेगा.” उसने एक कमरे की ओर इशारा किया. अधलेटी मुद्रा में उनकी बूढ़ी मां को देख वह उनके पैरों पर झुक गई. सम्मान से अभिभूत उन्होंने मुस्कुराकर पर बड़े कष्ट के साथ हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया. फिर बोली, “पल्लव ने बताया था तुम गिर गई थी. अब कैसी हो?” “ठीक हूं.” उसने जवाब दिया. आपसी बातचीत में उन्होंने बताया कि उन्हें एक्यूट गठिया, अस्थमा और डायबिटीज़ है. दो-चार औपचारिक प्रश्नोत्तर के बाद उन दोनों के बीच चुप्पी छा गई. उसने आसपास देखा. बैठक से लेकर आसपास हर चीज़ बड़ी सुव्यवस्थित थी. एकबारगी लगा ही नहीं कि इस घर में गृहिणी नहीं है. कमरे से रसोई दिखाई पड़ रही थी. वहां से जो उसने देखा, तो विश्वास ही नहीं हुआ. बड़ी कुशलता से पल्लव रोटी बना रहे थे. एक प्लेट में रोटी-सब्ज़ी मां के कमरे में लेकर गए. सब्ज़ी की रंगत बता रही थी कि वह स्वादिष्ट है. वह बड़े इसरार से अपनी मां को खाना खिलाते रहे. यह भी पढ़ें: पुरुषों को इन 5 मामलों में दख़लअंदाज़ी पसंद नहीं (Men Hate Interference In These 5 Matters) “कुछ महीनों पहले तक एक रोटी भी हजम नहीं होती थी. अब गर्म-गर्म इसके हाथ से दो खा लेती हूं.” वह बोली, तो पल्लव के चेहरे पर संतोष झलक आया. जिस प्रकार एक मां अपने नन्हें बेटे को रोटी खिलाकर संतोष से भरती है, कुछ वैसे ही भाव उनकी आंखों में थे. प्लेट उठाते हुए बोले, “आप इनसे बातें कीजिए. तब तक मैं चाय बना लाता हूं.” उसे असहज देख वह बोले, “इस घर की रवायतें आम घरों से अलग हैं. मुझे काम करते देख आप अचंभित न हों.” वह रसोई में चले गए. बूढ़ी मां भी बातचीत की इच्छुक नहीं दिखीं. सो कानों से सुननेवाली मशीन निकालकर रख दिए और आंखें मूंद लीं. पल्लव चाय लाया, तो वह बैठक में आ गई फिर पूछा, “क्या खाना आप बनाकर लाते थे?” उसके ‘हां’ में सिर हिलाते ही वह विस्मय से बोली, “अभी-अभी तो आपने क्रेडिट अपनी वाइफ को दिया. ऐसा क्यों?” “यह एक पहेली है. फिर कभी सुलझाइएगा.” “आपकी वाइफ..?” उसने प्रश्न जान-बूझकर अधूरा छोड़ा, तो वह बोला, “मेरी बीमार मां को देखा है आपने. उन्हें तनाव-कलह घुटन से बीमारियों की सौग़ात मिली. कोशिश में लगा हूं कि वह पहले सी हो जाएं और मुझे उनका सहारा मिले.” प्रश्न से इतर जवाब पाकर उसकी बढ़ी दुविधा देख उन्होंने खुलासा किया, “हममें निभती नहीं.” ‘हम’ में पल्लव और उसकी पत्नी थे. जिस घर में पत्नी होते हुए न हो, उस घर में पति में कोई तो खामी होगी यह आम धारणा कुछ समय पश्चात टूटी. प्रेस की रिपोर्टर होने के नाते खोजी प्रवृत्ति स्वाभाविक थी. सो आस-पड़ोस से पल्लव के बारे में पता करने पर उसके बचपन से लेकर शादी, फिर शादी से औंधे मुंह गिरने और गिरकर संभलने तक के सफ़र के बारे में कुछ ये ज्ञात हुआ कि पल्लव की पत्नी कनुप्रिया शादी से पहले किसी और से प्यार करती थी. यह भी पढ़ें: शादी से पहले और शादी के बाद, इन 15 विषयों पर ज़रूर करें बात! (15 Things Every Couple Should Discuss Before Marriage) ये बात उसके घरवाले जानते थे, लड़का सही नहीं था, इसलिए जबरन बेटी का गठबंधन पल्लव से छिपाकर कराया. कनुप्रिया की खुन्नस पति और सास पर उतरी. विवाहपूर्व वाला प्रेम संबंध बदस्तूर जारी रहा. मायकेवालों ने बेटी को समझाने की बजाय उसकी कुचेष्टाओं को छिपाने के लिए पल्लव पर अनेक दोष मढ़े... यहां तक कि उस पर घरेलू हिंसा के झूठे इल्ज़ाम लगाए.अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें
मीनू त्रिपाठी
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