‘ऑल क्रेडिट गोज़ टू माई वाइफ़’ वाली पहेली का हल उसे मिल गया था. विवाह के बाद आम मर्द की तरह पल्लव ने भी पत्नी से घर संभालने अपेक्षा की होगी, पर पत्नी द्वारा पति और परिवार के अस्तित्व को नकार दिया गया. समाज के सामने अपने परिवार को सामान्य दिखाने की चेष्टा में वह ज़िम्मेदारियां ओढ़ता गया. कनुप्रिया द्वारा उपजाई परिस्थितियों के चलते ही उसमें घर-बाहर की ज़िम्मेदारियों को निभाने की ताक़त आई. घर में उसकी कलहभरी उपस्थिति से उसकी सुकूनभरी गैरमौजूदगी भली लगी होगी.
... बदनामी और उपहास से भयभीत मां-बेटे सालों कनुप्रिया और उसके घरवालों की बदमिजाज़ी झेलते रहे. परिवार-समाज के सामने जब मतभेद खुलकर सामने आने लगे, कनुप्रिया की अति बढ़ने लगी, तब तलाक़ द्वारा इस बेमेल विवाह से मुक्ति पाना एकमात्र रास्ता सूझा, पर कनुप्रिया को उनके पैसों की लत लग चुकी थी. पति को छोड़ना घाटे का सौदा लगा, लिहाज़ा पति-सास को धमकाया... न माने तो उन पर दहेज़ का झूठा केस दर्ज करवा लिया. पति और सास स्वयं घरेलू हिंसा के शिकार हैं, यह बात कोर्ट के गले नहीं उतरी. यह सुनी-सुनाई बातें न थीं. अपने घर की छत से उनके आंगन में होनेवाली कलह कई बार देखी तो सिहर गई. यह भी पढ़ें: क्यों नहीं निभ रही शादियां? (Why Marriages Are Breaking?) मायकेवालों के हुजूम में घिरी कनुप्रिया उन्हें खुलेआम चैन से न जीने की चुनौती देती, तो उनकी बूढ़ी मां सूखे पत्ते-सी कांप जातीं. पल्लव जिरह करते, फिर हारकर सिर पकड़कर बैठ जाते. रुपया-पैसा-प्रॉपर्टी... इच्छानुसार न मिलने की स्थिति में उन्हें कई केसों में फंसाने की धमकी दी जाती. ‘ऑल क्रेडिट गोज़ टू माई वाइफ़’ वाली पहेली का हल उसे मिल गया था. विवाह के बाद आम मर्द की तरह पल्लव ने भी पत्नी से घर संभालने अपेक्षा की होगी, पर पत्नी द्वारा पति और परिवार के अस्तित्व को नकार दिया गया. समाज के सामने अपने परिवार को सामान्य दिखाने की चेष्टा में वह ज़िम्मेदारियां ओढ़ता गया. कनुप्रिया द्वारा उपजाई परिस्थितियों के चलते ही उसमें घर-बाहर की ज़िम्मेदारियों को निभाने की ताक़त आई. घर में उसकी कलहभरी उपस्थिति से उसकी सुकूनभरी गैरमौजूदगी भली लगी होगी. मां के असहाय होने पर घर की कमान अपने हाथों में ली होगी. घरेलू कामों को करने में उसे महारत हासिल होती गई. देखा जाए तो घरेलू ज़िम्मेदारियों को ओढ़ने के लिए कनुप्रिया ने ही अपरोक्ष रूप से उन्हें उकसाया. निगेटिव क्रेडिट को प्राप्त करने की उचित पात्र वही तो थी. इस आकलन के बाद उसने ख़ुद में एक अटपटा-सा बदलाव देखा. कभी हर्ष रसोई में अपना हाथ आज़माते, तो वह चिढ़ जाती थी. “किसने कहा तुमसे टोस्ट बनाने को, सारे जला दिए. जो काम आता नहीं है, वो मत किया करो.” “कभी मेरे हाथ का जला टोस्ट ही खा लो.” कहते हुए हर्ष जले टोस्ट का टुकड़ा उसके मुंह में डालते, तो टोस्ट का कड़वापन मन को राहत दे जाता. यह भी पढ़ें: रिश्तों को संभालने की फुर्सत क्यों नहीं हमें (Relationship Problems and How to Solve Them) अतीत के गलियारे से होते हुए उसने कब वर्तमान के दरवाज़े से घर में प्रवेश लिया, जान ही न पाई. नज़र रसोई पर पड़ी. हर्ष चकले से जूझ रहे थे. पर्स एक ओर पटककर वह झुंझलाई. “कितनी बार कहा है. जो काम नहीं आता, उसे मत किया करो. इंतज़ार कर लेते.” हर्ष हमेशा की तरह उसका मनोविज्ञान समझ हंसकर बोले, “इंतज़ार ही तो था कि कब आओ और मेरी कई कोनों वाली रोटी देखकर हंसो.” रोटी के कई कोने और जली हुई रंगत देख वाक़ई उसके चेहरे पर हंसी और गज़ब का चैन छाया, तो हर्ष उस पर रीझ गए. पति-पत्नी के एक-दूसरे के प्रति समर्पण से फिज़ा में अनायास छाया सुकून-फ़िक्र और ढेर सारा प्यार वास्तव में अलहदा था. मीनू त्रिपाठीअधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES
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