Close

कहानी- एक फांस 1 (Story Series- Ek Phans 1)

“तुम्हें याद है हमारी पहली मुलाक़ात भी इसी तरह हुई थी. लाइब्रेरी में दोनों के हाथ इसी तरह एक ही क़िताब पर पड़े थे.” बातों-बातों में उन्नत ने कहा. “हां, और तब भी तुमने इतनी ही शिष्टता से कहा था ‘आप ही ले लीजिए.’ मुझे तो पहली मुलाक़ात में ही तुम अच्छे लगे थे.” शिखा के स्वर में प्रशंसा थी. “अच्छे लगे थे? तभी तुम मेरी हर बात काटती रहती थीं? मुझसे झगड़ने का हमेशा बहाना ढूंढ़ती रहती थीं?” उन्नत की आंखों में उलाहना थी. “हे भगवान! तुम अभी तक उतने ही बुद्धू हो. मैं झगड़ने का नहीं, बल्कि तुम्हें सताने का बहाना ढूंढ़ती थी.’’ उन्नत की फ्लाइट कोहरे के कारण लेट हो गई थी. अब फ्लाइट रात में साढ़े तीन बजे आएगी, तब तक जागना ही पड़ेगा. यही सोचकर उसने बेमन से शेल्फ पर रखी मैग्ज़ीन उठाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि मैरून रंग के ओवरकोट में एक गोरा और स्निग्ध हाथ भी उसी मैग्ज़ीन पर आ लगा. “ओह! आई एम सॉरी, आप ले लीजिए.” उन्नत संस्कारवश बोला. “इट्स ओके, आप ही ले लें.” कहते हुए महिला ने उसकी ओर देखा, तो दोनों चौंक पड़े. “अरे! तुम यहां कैसे?” दोनों के मुंह से एक साथ निकला. दोनों ये जानकर बहुत ख़ुश हुए कि उनकी फ्लाइट का समय आसपास का ही था. उन्हें जागने का ख़ुशनुमा बहाना मिल गया था. फिर तो एयरपोर्ट का वह अकेला, कोज़ी कोना उस रुपहले पर्दे की तरह हो गया, जिसमें कोहरा छंटते ही फ्लैशबैक में यादों की जमी पर्तें खुलती चली जाती हैं. विश्‍वविद्यालय के पांच साल दोनों सबसे अच्छे दोस्त रहे थे. उन्नत का गिटार पर उसकी फ़रमाइशी धुनें बजाते-बजाते उंगलियां घायल कर लेना, वाद-विवाद में प्रथम आना, नोट्स के लिए ठिठुरती ठंड में शर्मा सर के घर जाना और उसके एक बार कहने पर वो नोट्स पहले उसे दे देना, शिखा को सब याद था. शिखा का उसकी उंगलियां देखकर दवाई लगाते हुए रो पड़ना, उसके एक बार कहने पर गाजर का हलवा बनाकर लाना, प्रतियोगी परीक्षाओं के नोट्स शेयर करना, उन्नत को सब याद था. “तुम्हें याद है हमारी पहली मुलाक़ात भी इसी तरह हुई थी. लाइब्रेरी में दोनों के हाथ इसी तरह एक ही क़िताब पर पड़े थे.” बातों-बातों में उन्नत ने कहा. यह भी पढ़ेपति-पत्नी के बीच हों झगड़े तो करें वास्तु के ये उपाय (Vastu Tips For Married Couple) “हां, और तब भी तुमने इतनी ही शिष्टता से कहा था ‘आप ही ले लीजिए.’ मुझे तो पहली मुलाक़ात में ही तुम अच्छे लगे थे.” शिखा के स्वर में प्रशंसा थी. “अच्छे लगे थे? तभी तुम मेरी हर बात काटती रहती थीं? मुझसे झगड़ने का हमेशा बहाना ढूंढ़ती रहती थीं?” उन्नत की आंखों में उलाहना थी. “हे भगवान! तुम अभी तक उतने ही बुद्धू हो. मैं झगड़ने का नहीं, बल्कि तुम्हें सताने का बहाना ढूंढ़ती थी. तुम्हारी आदत थी, टॉपिक छेड़ दो, तो घंटों बोलते थे और न छेड़ो तो चुप! अपने आप से तो कभी कोई बात सूझती ही नहीं थी तुम्हें. फिर भी कुछ बातें तो कभी बोले ही नहीं, चाहे कितनी कोशिश कर ली मैंने.” बातूनी शिखा एक झटके में सहजता से बोल गई, पर उन्नत ने चौंककर बात पकड़ ली, “बुद्धू मतलब? क्या नहीं बोला मैं?” इस पर शिखा सकपका गई और बात टालने की कोशिश करने लगी, पर उन्नत बात पकड़कर बैठ गया. जिस लड़की को उसने दिल में बिठाकर रखा, हमेशा सम्मान दिया, वो उसे बुद्धू कह रही थी. जल्द ही शिखा को कुछ याद आ गया और उसने बात संभालने की कोशिश की, “तुमने कई बार कहा कि तुम अकेले में कुछ कहना चाहते हो, पर जब अकेले में मैंने याद दिलाया, तो कुछ कहा ही नहीं.” मगर उन्नत के दिल पर जमी हिमालय-सी ब़र्फ को ऊष्णता मिल चुकी थी. वो पिघल चली, “क्या कहता मैं? जब तुम्हें टायफॉइड हुआ था, तो सारी-सारी रात जागकर तुम्हारे सब्जेक्ट के नोट्स क्यों बनाता था? और उन्हें तुम तक पहुंचाने के लिए दिसंबर के महीने में सुबह-सुबह आधे घंटे पहले घर से क्यों निकलता था? जब तुमने वाद-विवाद के लिए सरकारी क्षेत्र को चुना और कहा कि तुम किसी सरकारी कर्मचारी से ही शादी करोगी, तो अचानक मैं निजी क्षेत्र में जाने के निर्णय को बदलकर सरकारी प्रतियोगिताओं की तैयारी क्यों करने लगा?” बहुत-सी ऐसी बातें गिनाने के बाद वो बोला, “कुछ बातें कहने की नहीं, समझने की होती हैं, मिस बुद्धिमान! और हां, मैंने नहीं कहा था, तो तुम ही कह देतीं.” इतनी बातें सुनकर शिखा भी प्रवाह में आ चुकी थी. वो भी चहककर बोली, “अरे वाह! मैंने भी तो बहुत तरी़के से कहा, पर खुलकर कैसे कहती? आख़िर लड़की थी मैं.” उन्नत भी उसी प्रवाह में बोल गया, “वाह जी वाह! हर क्षेत्र में बराबरी का दावा और प्यार का इज़हार करना हो तो...” वे दोनों इस समय एक-दूसरे की आंखों में देख रहे थे. मगर एकदम खुले शब्दों में दिल की बात ज़ुबां पर आते ही दिमाग़ ने ब्रेक लगाए, मगर जैसे तेज़ गति से चलती गाड़ी ब्रेक लगने के बाद भी थोड़ा खिसककर अक्सर दुर्घटना कर ही बैठती है, वैसे ही ज़ुबां तो चुप हो गई, पर दोनों की आंखें बहुत कुछ बोलती रहीं. आज इतने सालों बाद ये पता चलने पर कि जिसे उन्होंने टूटकर चाहा, उनका वो पहला प्यार भी उन्हें ही प्यार करता था. वे हतप्रभ भी थे, ख़ुश भी और दुखी भी. “काश! हम तब ये सब समझ पाते, कह पाते.” उन्नत कुछ देर बाद एक ठंडी सांस लेकर बोला. “और काश! अब न समझते, अब न कहते. ये सोचकर जीना कितना आसान था कि मेरा प्यार एकतरफ़ा था.” ये कहते हुए शिखा की पलकें भीग गईं. उन्नत एक झटके से वर्तमान में लौटा, तो समझ नहीं पा रहा था कि बात को कैसे संभाले. “मुझे माफ़ कर दो. मेरा मतलब वो नहीं था. मैं सचमुच में शर्मिंदा हूं.” उसने नज़रें झुका लीं. उसके बाद बहुत देर तक उन दोनों के बीच का मौन मुखर रहा. फिर सन्नाटे के शोर को चुप कराने के लिए शिखा ने ही बात शुरू की, “तुम्हारी पत्नी कैसी है? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?” यह भी पढ़ेइन 9 आदतोंवाली लड़कियों से दूर भागते हैं लड़के (9 Habits Of Women That Turn Men Off) “वो बहुत अच्छी है...” बात एक बार फिर चल निकली, पर इस बार बात का विषय उम्र का दूसरा पड़ाव था. दोनों ने ही बताया कि वे अपने जीवन से ख़ुश और जीवनसाथी से संतुष्ट हैं. अपनी फ्लाइट का एनाउंसमेंट सुनकर उन्नत भावुक हो गया, “फिर कब मुलाक़ात होगी?” “पता नहीं, शायद कभी न हो. लेकिन एक बात कहना ज़रूरी है, जो शायद फोन पर न कह पाऊं. मैंने कहा था न कि अब हम दिल की बात न कहते, तो अच्छा ही होता, पर अब लगता है कि ये ठीक ही हुआ. ऐसी कौन-सी कमी थी मुझमें, जो मेरे प्यार ने मुझे स्वीकार नहीं किया. ये सोच ही शायद वो ख़लिश थी, जिसके कारण मैं अपने अतीत को याद नहीं करना चाहती थी, पर आज वो फांस भी निकल गई.” उन्नत भी ऐसा ही महसूस कर रहा था. bhavana prakash

भावना प्रकाश

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORiES

Share this article