कहानी- एक रस्म प्यार की 1 (Story Series- Ek Rasm Pyar Ki 1)
भइया भावविभोर हुए जा रहे थे और मेरे लिए हंसी रोकना मुश्किल हो रहा था. ये चल क्या रहा था? पूरी नाटक-नौटंकी के बाद जब हमें अंदर बैठक में लाया गया, तो वहां भाभी को गुड़िया की तरह सजाकर बैठाया गया था और उनके इर्दगिर्द घेरा बनाकर बैठी कम से कम बीस लड़कियां खी.. खी.. कर रही थीं!" जीजाजी आ गए... जीजी शरमा रही हैं..."
ये बात तो सच है कि शादी दो लोगों का नहीं, दो परिवारों के बीच का संबंध होता है... और वो संबंध भी इस तरह होता है कि दोनों परिवारों का एक-एक सदस्य थककर रो देता है, लेकिन ना ही उत्साह कम होता है, ना रस्में! ऐसी ही एक रस्म में मुझे भी पीसा जा रहा था. मेरी नई नवेली भाभी मायके गई थीं और उनको लाने के लिए भइया के साथ मुझे भी गांव भेजा रहा था.. ज़बर्दस्ती!
मैं हाथ-पैर जोड़कर मां से विनती करने में लगा हुआ था, "भइया चले जाएंगे ना भाभी को लिवाने.. मुझे क्यो जाना है? प्लीज़ मां, समझो ना, पढ़ाई का भी नुक़सान होगा." लेकिन इन सारी दलीलों से मां को क्या फ़र्क पड़ता था. मां तो मेरा बैग लगाने लगी थीं,
"जाओगे कैसे नहींं, रीत, रिवाज, रस्में सब निभाई जाती हैं... इसी बहाने गांव की होली देख आओ..."
मां ने हड़काकर बैग तो पकड़ा दिया था मुझे और मैं बिना मन के निकल पड़ा था.
भइया की शादी में जो भगदड़ देखी थी, उसके बाद कोई शौक रह नहीं गया था मुझे वहां जाने का. बाप रे! क्या गांव था और क्या गांव के लोग. हर बात पर मुहूर्त, नेग, ये वाले गीत, वो वाले गीत, घंटों चली शादी की रस्मों से, उस माहौल से मैं झुंझला गया था. अब दोबारा उसी माहौल में जाना, सोचकर ही अजीब लग रहा था.
घंटे भर में हमारी गाड़ी भाभी के घर या कह लें हवेली के सामने पहुंच चुकी थी. कितना डरावना लग रहा था सब कुछ... लगभग बीस आदमी चमकीली लाठियां लिए खड़े थे, ये बड़ी-बड़ी मूंछोंवाले और उनके पीछे चार-पांच औरतें पूजा की थाली लिए खड़ी थीं. भइया ने पैर गाड़ी से नीचे उतारा नहीं कि स्वागत के लिए सब उमड़ पड़े थे.
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भइया भावविभोर हुए जा रहे थे और मेरे लिए हंसी रोकना मुश्किल हो रहा था. ये चल क्या रहा था? पूरी नाटक-नौटंकी के बाद जब हमें अंदर बैठक में लाया गया, तो वहां भाभी को गुड़िया की तरह सजाकर बैठाया गया था और उनके इर्दगिर्द घेरा बनाकर बैठी कम से कम बीस लड़कियां खी.. खी.. कर रही थीं!
"जीजाजी आ गए... जीजी शरमा रही हैं..." जैसी बातों का शोर और इतनी भीड़ को देखकर मैं बेहाल हुआ जा रहा था कि तभी एक जाना-पहचाना चेहरा मेरी ओर आता दिखाई दिया, भाभी की बहन विनीता.
"हाय, कैसी हैं आप?"
मैंने मुस्कुराते हुए हाथ आगे बढ़ाया जिसका जवाब उसने दोनों हाथ जोड़कर 'नमस्ते' से दिया. मैंने झेंपते हुए हाथ जोड़ दिए. इससे मैं भइया की शादी में भी मिला था, लेकिन उस दिन मेकअप की कई पर्तों के बीच वाली विनीता और आज की साधारण-सा सूट पहने, एक लंबी चोटी की हुई विनीता में बहुत अंतर था. कुछ पलों के लिए मैं इस सादगी पर अटक कर रह गया था...
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
[caption id="attachment_153269" align="alignnone" width="196"]लकी राजीव[/caption]
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