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कहानी- एक सपने का सच होना 2 (Story Series- Ek Sapne Ka Sach Hona 2)

मन उखड़ गया था राजेश्‍वरी का. मलय को अगर उसकी ज़िंदगी से जाना था तो पूरी तरह से जाना चाहिए था. आख़िर क्यों कभी याद बनकर तो कभी नाम बनकर उसके भीतर कैद यादों पर दस्तक देता है. मलय- मानो एक सुखद हवा का झोंका जैसा ही था वह... “मेरा नाम राजेश्‍वरी है.” ठंडेपन में इस बार थोड़ी गर्माहट थी. “अच्छा नाम है, संगीत बजता हुआ प्रतीत होता है.” प्रशंसा में बनावट नहीं थी, इसलिए शांत बैठी रही. “मुझे मलय कहते हैं.” उसने ठहरे हुए स्वर में कहा. नाम सुनते ही वह जड़-सी हो गई. उसकी चेतना कहीं खोने लगी. क्यों होता है उसके साथ ऐसा? फिर वही नाम जिसकी याद से भी वह पीछा छुड़ाने के लिए यहां-वहां भटकती रहती है. पर दुनिया में क्या एक ही मलय होगा, न जाने कितने व्यक्ति होंगे इस नाम के और हर किसी की संवेदनाएं अलग होंगी. वही तो इसी नाम के पीछे भागती फिर रही है. “अच्छा चलती हूं.” उसने कुरते पर लगी घास को झाड़ते हुए कहा. इस अप्रत्याशित व्यवहार से मलय घबरा गया. “कहीं कुछ भूल हो गई मुझसे?” “क्यों, क्या मैं यहीं बैठी रहूंगी..?” उसने तेज़ स्वर में जवाब दिया. “मैं भी चलता हूं.” “मेरा पीछा करने की जुर्रत न करना.” “मुझे ज़रूरत नहीं, मैं तो यहां कुछ फ़ोटो खींचने आया था. वह तो खींच चुका हूं.” पहली बार ध्यान गया राजेश्‍वरी का, उसके हाथ में कैमरा था. यानी कि प्रो़फेशनल फ़ोटोग्राफ़र है. “शहर की भागदौड़ से तंग आ जाता हूं तो वीराने में आ जाता हूं. प्रकृति के कुछ चमत्कारिक दृश्यों को कैद कर लेता हूं कैमरे में. बहुत सुकून मिलता है. आप क्या करती हैं?” झिझक थी मलय के स्वर में. “मुझे देर हो रही है.” कार स्टार्ट करते हुए राजेश्‍वरी ने जैसे सूचना दी. अजीब लड़की है, मलय ने सोचा, फिर अपनी मोटरसाइकिल पर हवा से बातें करने लगा. यह भी पढ़ें: करें एक वादा ख़ुद से मन उखड़ गया था राजेश्‍वरी का. मलय को अगर उसकी ज़िंदगी से जाना था तो पूरी तरह से जाना चाहिए था. आख़िर क्यों कभी याद बनकर तो कभी नाम बनकर उसके भीतर कैद यादों पर दस्तक देता है. मलय- मानो एक सुखद हवा का झोंका जैसा ही था वह... ... और उसकी ज़िंदगी जैसे वीराने से ही दोस्ती कर चुकी थी...  मां-पापा का तला़क़ और उसका मां के साथ रहना...विच्छेद उसने भी सहा था. प्यार बंट गया था. उसे पूरा प्यार चाहिए था, पर हमेशा अधूरापन रहा उसकी ज़िंदगी में. मां जीवन स्तर को बनाने की जद्दोज़ेहद में उलझी रहीं और पापा ने दूसरी शादी कर ली. उसे सिखाया गया कि इस दुनिया में अपने आपको स्थापित करने के लिए आत्मनिर्भर बनाना ज़रूरी है. वह उसी प्रयास में जुट गई. उसके बचपन और जवानी की कोमलता ज़िंदगी को समझने की कोशिश में खोती गई. एक कड़वाहट ही भर गई थी उसके अंदर. पढ़ाई पूरी कर एक कंपनी की सीईओ बन गई. अच्छा पैसा, रुतबा और दिन-रात का काम. व्यस्तता उसे चाहिए भी थी. धीरे-धीरे पद का नशा भी उसे घेरने लगा. प्यार की पूर्ति वह इसी तरह करती. यह रूखापन बना ही रहता अगर मलय उसकी ज़िंदगी में नहीं आता. एक सपने का सच हो जाने जैसा था उसका आना. मलय ने राजेश्‍वरी को एहसास दिलाया कि वह कितनी ख़ूबसूरत है. अपनी पेंटिंग्स में वह बस उसे ही उतारता. कलाकार मन की भावुकता राजेश्‍वरी को अजीब लगती, पर मलय के प्यार में वह खोने लगी.        सुमन बाजपेयी

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