एक दिन मैंने तिलक और आलिया से कहा, “मैं अब नौकरी छोड़ तुम सबके साथ रहना चाहती हूं. अपने घर का ख़याल रखना चाहती हूं. तो क्या मैं वीआरएस (वॉलंट्री रिटायरमेंट स्कीम) के लिए अप्लाई कर दूं.” मेरे इस प्रस्ताव का उन दोनों पर कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा. तिलक ने कहा, “देखो, तुम्हारा करियर है, तुम डिसीज़न लो.” और आलिया का कहना था, “आपके जॉब से मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है. मैं मजे में हूं.”
मैं घंटों तक किसी से बात करने के लिए तरस जाती हूं. आज कई सालों के बाद मुझे ख़ुद के ज़िंदा होने का एहसास होने लगा है. ऐसा लग रहा है, जैसे अभी तक मैं लाश बन ख़ुद को कंधों पर ढोते हुए ला रही हूं. पर अब यह बोझ उठाया नहीं जाता. सारी बेजान चीज़ों के बीच घुटन-सी महसूस होती है. ऐसे में वो दिन याद आते हैं, जब तिलक ऑफ़िस से आने में पांच मिनट भी देर कर देता तो मैं उससे लड़ पड़ती थी और वो मुझे मनाने स्कूटर पर घूमाने ले जाता. हम घंटों एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे रहते- चुपचाप, बिना कुछ बोले. उस शांति में प्रेम था सूनापन नहीं. मुझे पता था कि जीवन के किसी भी मोड़ पर अगर मैं पलटकर देखूं तो मुझे तिलक बांहें फैलाए खड़ा मिलेगा और उसे भी यह यक़ीन था कि जब भी वह थका-हारा घर वापिस आएगा तो मैं अपनी ठंडी छांव में उसे ले लूंगी. पर आज न तो वह छांव है और न ही ऐसा कोई मोड़, जहां मुझे तिलक खड़ा मिलेगा. बस, कुछ है तो सुनसान, खाली रास्ता, जिस पर चलना, चलते रहना अब हमारी मजबूरी है.
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इन सब बातों को सोचकर एक दिन मैंने तिलक और आलिया से कहा, “मैं अब नौकरी छोड़ तुम सबके साथ रहना चाहती हूं. अपने घर का ख़याल रखना चाहती हूं. तो क्या मैं वीआरएस (वॉलंट्री रिटायरमेंट स्कीम) के लिए अप्लाई कर दूं.” मेरे इस प्रस्ताव का उन दोनों पर कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा. तिलक ने कहा, “देखो, तुम्हारा करियर है, तुम डिसीज़न लो.” और आलिया का कहना था, “आपके जॉब से मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है. मैं मजे में हूं.”
इस तरह के अप्रत्याशित जवाब के बाद भी मैंने वीआरएस के लिए अप्लाई किया और साथ ही एक महीने की छुट्टी भी ले ली. घर पर रहने के बाद पता चला कि अब घर को मेरी ज़रूरत नहीं. पति अपने काम में व्यस्त हैं और बेटी दोस्तों और कॉलेज में. रहा सवाल घर का तो उसकी देखभाल नौकर-चाकर कर रहे हैं.
विजया कठाले निबंधे
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