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कहानी- गुलाल 1 (Story Series- Gulal 1)

नैतिक की बात सुनकर नित्या ख़ूब हंसी और बोली, “मम्मी सब बताती है... तभी आप मेरे हालचाल नहीं लेते हो... अच्छा वो हैं कहां... अपना फोन क्यों नहीं उठा रही.” “शायद किचन में है... गुझिया बन रही है...” “गुझिया... वाओ... चलो, आप खाना उनके हाथों की गुझिया. मैंने तो ऑनलाइन आर्डर किया है...” “गुझिया भी ऑनलाइन मिल जाती है क्या?..”   स्टडीरूम में जाकर कुछ लिखने की इच्छा से नैतिक ने कलम और डायरी उठाई ही थी कि मोबाइल बज उठा... मोबाइल के स्क्रीन पर चमकते नाम को देख उसने झट से मोबाइल उठाया, "हेलो" कहते ही “हेलो पापा, क्या चल रहा है?..” नित्या का वही जाना-पहचाना जुमला सुनकर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई और वह बोले, “आज पापा के मोबाइल पर कैसे?..” “क्या पापा, किसी के भी मोबाइल पर करूं... बात तो दोनों से ही होती है. अच्छा ज़रा मम्मी से बात करवाओ...” “देखा, आ गई न अपनी असलियत पर... सब समझता हूं... मम्मी का फोन नहीं उठा, तो पापा को फोन किया...” नित्या ज़ोर से हंसते हुए बोली, “हां पापा, सच तो कहा है आपने.. पर इसमें ग़लती भी तो आपकी है न... आपके पास ज़्यादा बातें ही नहीं होती करने को... मम्मी के पास कितनी ढेर सारी बातें है...” नैतिक नित्या की बात सुनकर हंसते हुए बोले, “तुम दोनों की ढेर सारी बातों का सारा ब्योरा मेरे पास पहुंच जाता है...” “अरे कैसे...” “तुम्हारी मम्मी के ज़रिए...और कैसे... तुम नीलेश के साथ ख़ुश हो... तुम्हारी नई जॉब काफ़ी इंट्रेस्टिंग है. नीलेश आजकल बहुत बढ़िया चाय बनाने लगा है... और हां, तुम्हें बहुत अच्छी मेड मिल गई है... सब पता है...” नैतिक की बात सुनकर नित्या ख़ूब हंसी और बोली, “मम्मी सब बताती है... तभी आप मेरे हालचाल नहीं लेते हो... अच्छा वो हैं कहां... अपना फोन क्यों नहीं उठा रही.” “शायद किचन में है... गुझिया बन रही है...” “गुझिया... वाओ... चलो, आप खाना उनके हाथों की गुझिया. मैंने तो ऑनलाइन आर्डर किया है...” “गुझिया भी ऑनलाइन मिल जाती है क्या?..” “हां और क्या... पर सच बताऊं, मैं मम्मी के हाथों की गुझिया बहुत मिस करूंगी...” “और हम तुम्हें बहुत मिस करेंगे...” यह भी पढ़ें: होली में सावधान रहें केमिकल रंगों के अटैक से… (Play Safe Holi) नैतिक ने कहा तो नित्या बोली, “अरे रहने दो पापा... आपको कोई फ़र्क नहीं पड़नेवाला.... आप तो वैसे भी होली नहीं खेलते... हां, मम्मी मेरे बगैर बहुत उदास होंगी... मैं और मम्मी कितनी जमकर होली खेलते थे...” नित्या भावुक हुई तो नैतिक बोले, “मैं रंग नहीं खेलता, पर होली में बिखरे रंग और तुम्हारी उपस्थिति त्योहार को सार्थक बना देती है... इतना तो समझता ही हूं...” अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Meenu Tripathi मीनू त्रिपाठी   अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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