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कहानी- गुलमोहर और बोगनवेलिया 3 (Story Series- Gulmohar Aur Boganveliya 3)

“हां, मैं एक सफल करियर बनाना चाहती थी, सच है. नौकरी भी करती थी, इसलिए शादी भी थोड़ी देर से ही की थी मैंने. शादी के बाद भी नौकरी कर ही रही थी, लेकिन जब तीन साल बाद तुम्हारा जन्म हुआ, तो मातृत्व का जो अवर्णनीय सुख मिला, उसके आगे करियर, सफलता जैसे शब्द बेमानी लगने लगे. तब मेरा ही फैसला था कि मैं जॉब नहीं करूंगी, क्योंकि मैं हर एक पल तुम्हें बढ़ते देखना, तुम्हारे साथ ही रहना चाहती थी. पिताजी ने तो बहुत चाहा था कि मैं बंधन में न रहकर अपने अस्तित्व का विकास करके सपने पूरे करूं, लेकिन मैं ही तुमसे कुछ घंटे भी अलग रहने का सोच नहीं पाई.” फिर कहने लगीं, “तुम अपने मन से ही रिश्ते का और पिताजी का बस एक ही रूप देखती रही. तुमने बस यही देखा कि पिताजी बहुत डिमांडिंग हैं. यह नहीं देख पाई कि वे उससे भी अधिक केयरिंग थे. बहुत छोटी थी तुम जब एक बार मैं गिर पड़ी थी. रीढ़ की हड्डी में चोट आने की वजह से डॉक्टर ने मुझे ज़रा भी हिलने-डुलने को मना किया था. तब पूरा एक महीना तुम्हारे पिताजी ने ऑफिस से छुट्टी ली और मेरी देखभाल की. मैं तो बाथरूम तक भी नहीं जा सकती थी. सोचो अगर तुम्हारे पिताजी नहीं होते, तो मेरा क्या होता?” वीथी आश्‍चर्य से सुन रही थी पुरुष के इस रूप के बारे में. “दरअसल, सच तो यह है कि तुम्हारे पिताजी डिमांडिंग नहीं, बल्कि डिपेंडेंट हैं. बच्चे की तरह ही वो अपनी ज़रूरतों के लिए मुझ पर निर्भर हैं.” मां ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा. “और यह मत भूलो कि स़िर्फ उनकी वजह से ही मैं तुम्हारी जैसी प्यारी बेटी को पा सकी. वह पुरुष ही है, जो अपने प्रेम से स्त्री को मातृत्व का सुख देकर उसे पूर्णता प्रदान करता है. ” “लेकिन उन्होंने आपको नौकरी कहां करने दी. घर बिठाकर आपके सारे सपने तो तोड़ दिए न. उच्च शिक्षित हैं आप. पता है मुझे कि आप अपने जीवन में करियर की कितनी ऊंचाई पर पहुंचना चाहती थीं.” वीथी ने अपनी आख़िरी शंका भी प्रकट कर ही डाली. “हां, मैं एक सफल करियर बनाना चाहती थी, सच है. नौकरी भी करती थी, इसलिए शादी भी थोड़ी देर से ही की थी मैंने. शादी के बाद भी नौकरी कर ही रही थी, लेकिन जब तीन साल बाद तुम्हारा जन्म हुआ, तो मातृत्व का जो अवर्णनीय सुख मिला, उसके आगे करियर, सफलता जैसे शब्द बेमानी लगने लगे. तब मेरा ही फैसला था कि मैं जॉब नहीं करूंगी, क्योंकि मैं हर एक पल तुम्हें बढ़ते देखना, तुम्हारे साथ ही रहना चाहती थी. पिताजी ने तो बहुत चाहा था कि मैं बंधन में न रहकर अपने अस्तित्व का विकास करके सपने पूरे करूं, लेकिन मैं ही तुमसे कुछ घंटे भी अलग रहने का सोच नहीं पाई.” मां की आंखों में वीथी के लिए ढेर सारा प्यार और ममता छलक रही थी. वीथी पुरुष के इस नए स्नेही रूप का विश्‍लेषण करने लगी. मन की ग्रंथियां खुल रही थीं. पूर्वाग्रह और मन पर जमी ग़लत धारणाओं की काई धीरे-धीरे उतरने लगी थी. कारण क्या था मां का अपनी जॉब छोड़ने का और वह जीवनभर पिताजी को दोषी मानती रही. “तो अब बुआ को फोन लगाऊं?” मां ने दस मिनट के मौन के बाद पूछा. “बुआ को नहीं मां, कोई और है जो...” कहते हुए वीथी ने वरुण से हुई पूरी बात बता दी. “यह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है. देखाभाला, सभ्य, सुसंस्कृत लड़का है. हमें स्वीकार है, लेकिन अब तुम यहां क्या बैठी हो, जाओ उसे फोन करके ख़ुशख़बरी सुनाओ कि तुम शादी के लिए राज़ी हो.” मां ने मुस्कुराते हुए कहा. यह भी पढ़े: बेहतर करियर के लिए समझदारी से चुनें लाइफ पार्टनर (Choose Your Spouse Wisely For Better Career) “फोन पर नहीं मां, मैं उससे मिलकर ही सुनाऊंगी. उस दिन ‘ना’ कहकर उसके चेहरे पर एक उदासी-की स्याही फैला दी थी. अब ‘हां’ बोलकर उसके चेहरे पर छाई ख़ुशी की चमक भी देखना चाहती हूं.” वीथी ने कहा. “ठीक है.” मां बोली. फिर संजीदा स्वर में बोली, “हां, थोड़े समझौते करने पड़ते हैं रिश्तों को निभाते हुए, लेकिन ये स़िर्फ स्त्री को ही नहीं, पुरुष को भी करने पड़ते हैं. बस फ़र्क़ है, तो ये कि वो कभी जताते नहीं. परंतु बदले में जो प्यार, जो साथ, जो सुख मिलता है न, वो अनमोल होता है.” तभी अंदर से पिताजी ने मां को आवाज़ लगाई. “जाइए, आपके डिपेंडेंट बुला रहे हैं.” वीथी ने हंसते हुए मां को छेड़ा. “बदमाश कहीं की.” मां ने हंसते हुए उसके सिर पर एक चपत लगाई. और चार दिन बाद वीथी वरुण के साथ बैठी थी उसी पार्क में और उसकी हां सुनने के बाद वरुण उसे छेड़ रहा था, “लेकिन रिश्ते तो बड़े डिमांडिंग होते हैं न, सारी उम्र ख़र्च हो जाती है.” तिरछी नज़र से उसे देखते हुए वरुण बोला. “रिश्ते डिमांडिंग तो होते हैं, लेकिन केयरिंग भी तो होते हैं. अब मैं समझ गई हूं.” वीथी ने उसका हाथ थामते हुए कहा. वरुण ने भी प्यार से उसका हाथ थपथपा दिया. “चलो एक चीज़ दिखाता हूं.” कहकर वरुण उसे थोड़ी दूरी पर ले गया. “वो देखो, गुलमोहर के पेड़ का सहारा लेकर तुम्हारी बोगनवेलिया कितनी ऊंचाई तक पहुंचकर खिल रही है. गुलमोहर से भी ऊंची. मैं वादा करता हूं तुम्हारे लिए हमेशा गुलमोहर का पेड़ बना रहूंगा. सहारा दूंगा, साथ दूंगा और तुम अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ ख़ूब फलना-फूलना.” वरुण ने उसके कंधे पर हाथ रखा, तो वीथी ने उसके कंधे पर सिर रख दिया. सामने हरे-भरे गुलमोहर से लिपटी, इठलाती बोगनवेलिया अपनी डालियां फैलाए आसमान में झूम रही थी. डॉ. विनीता राहुरीकर

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