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कहानी- हरी गोद 3 (Story Series- Hari Godh 3)

“आत्मा की मुक्ति अपने अच्छे-बुरे कर्मों से होती है, किसी कर्मकांड से नहीं और आज एक बात कान खोलकर सुन लो मां, अगर तुमने उमा की प्रेग्नेंसी में किसी भी तरह की कोई भी बाधा खड़ी की या उसे किसी भी तरह का तनाव दिया तो हमारी मुक्ति हो या न हो, तुम्हारी नहीं होगी, क्योंकि फिर मैं तुम्हारे मरने पर ना तो तुम्हारा क्रिया-कर्म करूंगा और न ही पिंडदान.” उमा की पिछली प्रेग्नेंसी में भी देवी ने उन्हें सपने में आकर पोते की ख़बर दी थी, जो बाद में निर्मूल सिद्ध हुई थी. “मैं गीता को फ़ोन कर देती हूं, वो समय पर जांच कर लेगी...” मां की बात सुन मनोज ने निर्विकार भाव से उमा की ओर देखा. उमा के मन की पीड़ा उसकी आंखों में साफ़ छलक रही थी, जिसे समझकर भी वो कुछ न कह सकी. उमा को तीसरा महीना चढ़ चला था. मांजी ने उमा की सोनोग्राफ़ी का अपॉइंटमेंट लिया हुआ था और परिणाम अनुकूल न होने पर गिराने का इंतज़ाम भी पुख्ता था. वैसे तो हमारे देश में लिंग परीक्षण अपराध की श्रेणी में आता है, मगर कुछ अतिरिक्त सुविधा शुल्क देकर कौन-सी ऐसी सुविधा है, जो ख़रीदी नहीं जा सकती है. उमा के साथ क्लीनिक में मनोज को न भेजकर मांजी स्वयं जा रही थीं, क्योंकि उन्हें अपने बेटे पर पूरा भरोसा न था. कहीं उमा की बातों में आकर पलट गया तो उसकी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा. उमा की सोनोग्राफ़ी हो चुकी थी. आशाओं पर एक बार फिर पानी फिर गया था, मगर वो नियति के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं थी. जैसे-जैसे गर्भपात का समय पास आ रहा था, उमा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. उसका अंतर्मन चित्कार रहा था. मत होने दे ये अनर्थ उमा, बहुत हुआ... कब तक यूं अपने ही ख़ून की हत्याओं का पाप ढोती रहेगी? क्या तू शगुना से भी गई-गुज़री है? जब वो अपनी कोख की रक्षा केे लिए सब कुछ त्याग सकती है तो तू क्यों नहीं? क्या होगा? ज़्यादा से ़ज़्यादा, यही न कि तुझे घर छोड़ना पड़ेगा, मगर अपनी बच्ची को कम से कम जीवित तो देख पाएगी. वो नन्हीं-सी जान पूरी तरह से तुझ पर आश्रित है. सोचती होगी कि मैं अपनी मां की कोख में सुरक्षित हूं. मेरी मां है तो कोई मेरा क्या बिगाड़ सकता है? चैन से सोई होगी वो. क्या बीतेगी उस पर, जब जानेगी कि अपनी कोख में सहेजनेवाली मां ही आज प्राणघातिनी बनी हुई है? मत कर ऐसा अन्याय उसके साथ. आज मनोज के प्यार की भी परीक्षा होने दे. हर बार ग़लत ़फैसलों के लिए मातृ-सम्मान के नाम पर मां के साथ खड़ा होनेवाला आदमी क्या एक सही फैसले के लिए तेरे साथ नहीं खड़ा हो सकता? और अगर वो अभी तेरे साथ खड़ा नहीं हो सका, तो फिर ऐसे पति से क्या उम्मीद करना? वो तो जीवन के किसी भी मोड़ पर तेरा साथ छोड़ सकता है. तू इतनी असक्षम भी नहीं कि अपनी बच्चियों का भार न उठा सके. बस, ज़रा-सी हिम्मत कर उमा. “उमा चलिए.” नर्स की आवाज़ सुन उमा का शरीर जैसे काठ का हो गया. जैसे-तैसे वो खड़ी हुई, मगर पांव नहीं हिला पा रही थी. “यह मुझसे नहीं होगा मांजी. मैं यह नहीं करूंगी.” कंठ में फंसा निर्णय पूरे आवेश के साथ बाहर निकला. मनोज जिस क्लेश के आगे नतमस्तक था, वो आज पूरे उफान पर था. “बहुएं घर बसाने के लिए होती हैं, उजाड़ने के लिए नहीं. मेरे वंश का खात्मा करने पर तुली है ये. कहे देती हूं मनोज, या तो इसे समझा ले, वरना इसका हमसे कोई नाता नहीं रहेगा.” मांजी ग़ुस्साई आवाज़ में बोलीं. यह भी पढ़ेलघु उद्योग- पोटैटो वेफर मेकिंग क्रंची बिज़नेस (Small Scale Industries- Start Your Own Potato Wafer-Making Business)   “न रहे तो न सही मांजी. मैं इसके लिए तैयार हूं. मगर इस बार अपनी कोख पर आंच न आने दूंगी. मेरा निर्णय नहीं बदलनेवाला, आगे जैसी आपकी मर्ज़ी. मैं आज ही यहां से अपनी बेटी को लेकर चली जाऊंगी.” उमा की वाणी और भाव दोनों शांत थे. अनवरत् मानसिक द्वंद्वों के तूफ़ान एक निर्णय पर आकर ठहर गए थे. अब वो हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार थी. “कोई कहीं नहीं जाएगा मां. उमा ने जो किया ठीक किया. मैं ख़ुद भी यही चाहता था, मगर न जाने क्यों चाहकर भी साहस नहीं कर पा रहा था. अपनी दो बेटियों की हत्या की ग्लानि अभी तक है मुझे. तीसरी की झेलने की शक्ति नहीं है मुझमें.” हिम्मत करके मनोज बोला. “ये क्या कह रहा है तू? इसके साथ-साथ तेरा भी सिर फिर गया क्या? मरने के बाद कोई क्रिया-कर्म, श्राद्ध करनेवाला भी नहीं होगा तेरा. आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी...” मां की बातें सुन इस बार मनोज की सहनशक्ति जवाब दे गई. “आत्मा की मुक्ति अपने अच्छे-बुरे कर्मों से होती है, किसी कर्मकांड से नहीं और आज एक बात कान खोलकर सुन लो मां, अगर तुमने उमा की प्रेग्नेंसी में किसी भी तरह की कोई भी बाधा खड़ी की या उसे किसी भी तरह का तनाव दिया तो हमारी मुक्ति हो या न हो, तुम्हारी नहीं होगी, क्योंकि फिर मैं तुम्हारे मरने पर ना तो तुम्हारा क्रिया-कर्म करूंगा और न ही पिंडदान.” आज मनोज के दिल में फंसा बरसों का गुबार भी फूटकर बाहर निकल गया. मांजी उसके जवाब से जड़वत् रह गईं. “उमा, अगर तुम्हारे साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार हुआ, तो तुम्हारे साथ मैं भी ये घर छोड़ दूंगा.” मनोज की अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से उमा भावविह्वल हो गई और उससे लिपटकर रो पड़ी. आज उसकी सूनी गोद फिर हरी हो गई थी. आज उसने अपनी कोख के साथ अपने सुहाग पर भी अधिकार पा लिया था. Deepti Mittal       दीप्ति मित्तल

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