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कहानी- ख़ामोशी 1 (Story Series- Khamoshi 1)

  “अरे, रोज़ तो बात करते हैं, अब क्या रह गया.” “कुछ बातें फिर भी अनकही रह जाती हैं.” शेखर के साथ-साथ रति भी चौंक पड़ी थी सामने से आई इस आवाज़ से. अपनी लड़ाई में वे यह भी भूल गए थे कि वे अपने घर में नहीं, अपार्टमेंट के कॉरिडोर में खड़े थे. “माफ़ कीजिएगा बीच में बोलने के लिए.” “नहीं, वो हमें ही ध्यान रखना चाहिए था.” शेखर ने रति को घूरते हुए कहा. “शेखर, आज शनिवार है. शाम को कहीं घूमने चलें. “अरे यार घर में ही रहते हैं ना, हर वीकेंड पर कहीं जाना ज़रूरी है क्या?” “चलते हैं ना... मैं भी ऑफिस से जल्दी आ जाऊंगी.” “तुम अपने दोस्तों के साथ चली जाओ.” “शेखर, उनके साथ तो जाती ही हूं, तुम्हें नहीं लगता हमें एक-दूसरे के साथ कुछ समय बिताना चाहिए. अपने रिश्ते को...” “रति, फिल्मी बातें मत करो. हम पूरे समय साथ ही तो होते हैं. अब ऑफिस जाना छोड़कर तुम्हारा दिल बहलाऊं क्या?” “शेखर, कितने दिन हो गए हमने साथ बैठकर ढंग से बात ही नहीं की.” “अरे, रोज़ तो बात करते हैं, अब क्या रह गया.” “कुछ बातें फिर भी अनकही रह जाती हैं.” यह भी पढ़ें: क्या करें जब पति को हो जाए किसी से प्यार? शेखर के साथ-साथ रति भी चौंक पड़ी थी सामने से आई इस आवाज़ से. अपनी लड़ाई में वे यह भी भूल गए थे कि वे अपने घर में नहीं, अपार्टमेंट के कॉरिडोर में खड़े थे. “माफ़ कीजिएगा बीच में बोलने के लिए.” “नहीं, वो हमें ही ध्यान रखना चाहिए था.” शेखर ने रति को घूरते हुए कहा. “आइए न, अंदर बैठ कर बातें करते हैं.” “जी नहीं, हमें ऑफिस के लिए पहले ही देर हो गई है.” “ऐसी बात है, तो मैं रोकूंगा नहीं, पर एक शर्त है. आज शाम की कॉफी आपको हमारे साथ पीनी होगी. मेरी पत्नी लीना आपसे मिलकर ख़ुुश होगी. तो कहिए मिस्टर...” “शेखर मजूमदार और ये है मेरी पत्नी रति.” “अच्छा और मैं अरविंद पाठक.” “तो फिर शाम की कॉफी डेट पक्की...” हा हा हा... हंसी का सम्मिलित स्वर... इस अपार्टमेंट मे आए हुए शेखर और रति को चार महीने हो गए थे. इससे पहले उनका किसी दूसरे पड़ोसी से ठीक से परिचय भी नहीं हो पाया था. जान-पहचान बढ़ाने के लिए दोनों ने यह आमंत्रण स्वीकार कर लिया था. तय समय पर दोनों मिस्टर पाठक के घर पहुंच गए थे. दरवाज़े के बाहर अरविंद और लीना के नाम की नेमप्लेट लगी हुई थी. बेल बजाने पर एक 40-42 साल की महिला ने दरवाज़ा खोला. “जी वो मिस्टर अरविंद...” “आइए, अंदर आ जाइए आप दोनों. विमलाजी आप इन्हें बैठाइए, मैं अभी आता हूं.” अंदर से अरविंदजी की आवाज़ सुनाई दी थी. थोड़ी देर बाद वो ख़ुद आ गए थे हाथों में कॉफी की ट्रे लिए हुए. “गुड इवनिंग शेखर, गुड इवनिंग रति.” “गुड इवनिंग अरविंदजी.” शेखर और रति का सम्मिलित स्वर. “भई लीनाजी की तबियत थोड़ी ठीक नहीं है, तो वो आराम कर रही हैं. उठते ही आप दोनों से परिचय करा दूंगा.” शेखर और रति दोनों को यह बात अटपटी लगी कि मेहमान को घर बुलाकर गृहस्वामिनी स्वयं गायब थीं. अभी दोनों कॉफी पी ही रहे थे कि हंसी की एक तेज़ आवाज़ ने दोनों का ध्यान सामनेवाले कमरे की तरफ़ कर दिया था. “ये कैसा अलार्म है?” रति अपना कौतूहल दबा नहीं पाई थी. “लीना की आवाज़ है. लीना ने अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करके उसे ही अलार्म बना लिया था. पहली बार तो मैं भी चौंक पड़ा था.”        पल्लवी पुंडिर

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