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कहानी- कुछ तो लोग कहेंगे 4 (Story Series- Kuch Toh Log Kahenge 4)

उफ़! आंटी की बातें याद करने लगती हूं, तो वहीं उलझकर रह जाती हूं. सच कितना सुकून मिलता है उनसे बतियाकर... स्वाति ने चाय का पानी चढ़ा दिया था और अदरक कूटने लगी थी. अंकल को कभी देखा नहीं है, पर आंटी की बातें सुन-सुनकर ऐसा लगता है वे आसपास ही हैं. हमें देख रहे हैं, सुन रहे हैं और आंटी को ख़ुश देखकर ख़ुश हो रहे हैं.   ... "खुले नहीं हैं मेरे पास, रख लो." ऑटोवाले का हिसाब करती नीरजा आंटी का स्वर कानों में पड़ा, तो विचारों में खोई स्वाति की तंद्रा भंग हुई. "चलिए, मैं आपके थैले ऊपर पहुंचा देता हूं." अरे आंटी तो शॉपिंग करके लौट भी आईं और मैं अभी तक यहां बाल ही सुखा रही हूं. "चाय चढ़ा रही हूं आंटी. सामान रखवाकर जल्दी आना." स्वाति ने गमले से तुलसी के पत्ते तोड़े और रसोई की ओर बढ़ गई. तुलसी-अदरक की गाढ़ी चाय के बगैर आंटी को तृप्ति नहीं होती. अंकल के क़िस्से सुनाते हुए आंटी ने बताया था, "यह ग्रीन टी का चोंचला तो मैं सवेरे-सवेरे तुम्हारे अंकल के साथ पूरा कर लेती थी. फिर ऑफिस जाते वक़्त वे ऊंचे स्वर में सुना जाते थे- निकल रहा हूं मैं! अपनी रबड़ी चाय चढ़ा लो और काम पर लग जाओ... कभी हल्का-सा सिरदर्द या बदनदर्द होता, तो तुरंत मेरे लिए चाय चढ़ा आते. तुम्हारी दवा बनने रख दी है... बस एक चाय को छोड़कर हमारी बाकी सभी पसंद मिलती थी. हम दोनों को ही घूमना, खाना-पीना ख़ूब पसंद था. बाज़ार ख़रीदारी करने जाना मतलब खाने की छुट्टी या तो वहीं खा आते या बंधवाकर साथ ले आते. मुझे हमेशा सजा-संवरा देखना उन्हें भाता था..." उफ़! आंटी की बातें याद करने लगती हूं, तो वहीं उलझकर रह जाती हूं. सच कितना सुकून मिलता है उनसे बतियाकर... स्वाति ने चाय का पानी चढ़ा दिया था और अदरक कूटने लगी थी. अंकल को कभी देखा नहीं है, पर आंटी की बातें सुन-सुनकर ऐसा लगता है वे आसपास ही हैं. हमें देख रहे हैं, सुन रहे हैं और आंटी को ख़ुश देखकर ख़ुश हो रहे हैं. यादों की जुगाली के साथ-साथ ख़ूब दूधवाली चाय गाढ़ी होनी आरंभ हुई ही थी कि नीरजा आंटी एक पैकेट थामे रसोई में आ पहुंचीं. "एक प्लेट और कटोरी दे. गरम गरम सींक कबाब और चिकन टिक्का लाई हूं. कबाब कॉर्नर के पास से गुज़रो, तो आदमी खाली हाथ लौट ही नहीं पाता." कटोरी में चटनी और प्लेट में प्याज के लच्छे सजाती आंटी ने गरमागरम स्नैक्स प्लेट में निकाल लिए थे. "वैसे तो उसकी सारी प्रीपरेशन अच्छी है, पर तेरे अंकल को और मुझे ये दोनों चीज़ें ज़्यादा पसंद रही हैं. और ताज्जुब की बात तो देख विनी और दामादजी को भी ये ही दोनों चीज़ें सबसे ज़्यादा पसंद हैं." कहते हुए आंटी ने एक कबाब तोड़कर, चटनी में डुबोकर आधा स्वाति के और शेष अपने मुंह में रख लिया. "हूं वेरी टेस्टी! तो इसमें से आधे विनी दीदी और जीजाजी के लिए रख देती हूं. बहुत सारे हैं." स्वाति निकालने लगी, तो आंटी ने उसका हाथ रोक दिया. "पागल हुई है? ये तो तेरे पति और बच्चों के लिए है. उसका पैकेट तो मैं घर छोड़कर आई हूं. तू चाय छानकर ला. मैं तब तक विनी को फोन कर बता देती हूं कि शाम को ऑफिस से लौटते वक़्त इधर होकर जाए... हां विनी..." मोबाइल पर बात करती आंटी लॉबी में निकल आई थीं. यह भी पढ़ें: लाइफस्टाइल ने कितने बदले रिश्ते? (How Lifestyle Has Changed Your Relationships?) रसोई में चाय छानती स्वाति के हाथ पर गरम गरम चाय की कुछ बूंदें छलक गईं, तो वह चिल्ला उठी. आंटी हड़बड़ाहट में भागती हुई रसोई में घुसी और स्वाति का हाथ आटे के डिब्बे में डाल दिया. "इससे फफोले नहीं पड़ेंगें और जलन भी तुरंत शांत हो जाएगी." अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Anil Mathur अनिल माथुर   अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

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