रोटी के भूख की तो फिर भी सीमा है, कोई दो, तो कोई चार खा लेगा... बहुत हुआ तो आठ-दस, पर पॉप्युलैरिटी... यह भूख जो असीमित भूख है... लाइक्स, लाइक्स... शायद आदमी इसी तरह की भूख का मारा है... पांच साल तो बीत गए इस दस हज़ार लाइक्स को पाने में... उसे अपने भीतर कमज़ोरी-सी महसूस हुई तो एहसास हुआ, मानसिक भूख के मिटने से पेट की भूख नहीं थमती. पर यह क्या, वह तो अपने सपनों में इस कदर खोया था कि उसे व़क्त का पता ही नहीं चला. यहां इस अकेले कमरे में कौन था जो उसे कहता, खाना खा लो, पानी पी लो, सो जाओ.
यह जो अनलिमिटेड डाटा का मार्केट है, आदमी के दिमाग़ में पैदा हुई इस नाम और शोहरत की भूख को मिटाने के लिए है. ‘नाम और शोहरत’ इसे नापने का कोई पैमाना है क्या?
और फिर शोहरत से बड़ी शोहरत की भूख. हर व़क्त यह ख़्याल कि आह! मुझे कितने लोग जानते हैं, कहीं भी जाऊं, तो बस मुझे पहचाननेवाले लोग मिलें, भीड़ में रहूं तो हाथों हाथ लिया जाऊं, लोग मुझे घेरकर, मेरे बारे में बातें करें, मुझसे मेरी सफलता की कहानी पूछें, मैं किसी दिन स्टेज पर बुलाया जाऊं, मुझे भी सम्मानित किया जाए, मेरे लिए गाड़ियां इंतज़ार करें, लोग फूल-माला लेकर स्वागत-सत्कार करें...
हा-हा... कितने बड़े सपने, कितने बड़े ख़्वाब होते हैं इस छोटी-सी ज़िंदगी के... दस हज़ार, दस लाख, दस करोड़ कोई सीमा ही नहीं है कि हमारी पॉप्युलैरिटी कितनी बढ़ सकती है.
रोटी के भूख की तो फिर भी सीमा है, कोई दो, तो कोई चार खा लेगा... बहुत हुआ तो आठ-दस, पर पॉप्युलैरिटी... यह भूख जो असीमित भूख है... लाइक्स, लाइक्स... शायद आदमी इसी तरह की भूख का मारा है... पांच साल तो बीत गए इस दस हज़ार लाइक्स को पाने में...
उसे अपने भीतर कमज़ोरी-सी महसूस हुई तो एहसास हुआ, मानसिक भूख के मिटने से पेट की भूख नहीं थमती. पर यह क्या, वह तो अपने सपनों में इस कदर खोया था कि उसे व़क्त का पता ही नहीं चला. यहां इस अकेले कमरे में कौन था जो उसे कहता, खाना खा लो, पानी पी लो, सो जाओ.
रात के एक बजे हैं... कोई बात नहीं, पर यह महानगर तो नहीं है कि पिज़्ज़ा ऑर्डर कर देंगे और डिलीवरी बॉय दे जाएगा. इस छोटी-सी जगह में तो बस इलेक्ट्रिक कैटल से चाय बन सकती है, नूडल्स और कुछ बिस्किट हैं. चाय भी ख़ुद उठकर बनानी पड़ेगी.
वह हंसा... नाम, शोहरत के लिए अपने ख़्वाबों की ज़िंदगी पाने के लिए इतना सेक्रिफाइस तो बनता है. उसके मुंह से गालियां निकलते-निकलते बचीं, इंटरनेट का पेज, पेज पर लाइक्स, लाइक्स पर फ्रेंड रिक्वेस्ट और फिर ढेर सारी फॉलोइंग्स... कमाल है, भीड़ है कयामत की और हम अकेले हैं.
ये हज़ारों लाइक्स किसी को एक कप चाय भी नहीं दे सकती. हा-हा-हा... लाखों लोगों के जानने के बाद भी मृदुल उ़र्फ बांके बिहारी उ़र्फ रघुवीर जिसका वीडियो एक लाख लोग देख चुके हैं रात में भूखा है.
उसकी फ्रेंड लिस्ट दस हज़ार से पार है, जिसके पेज पर लाइक्स की बहार है, जिसके फॉलोअर्स चार हज़ार से ज़्यादा हैं... भूखा है, एक छोटे-से कमरे में मैगी खा रहा है. अगर अभी वह पेज पर एक फोटो लगाकर लिख भर दे कि ‘फीलिंग हंग्री’ तो ढेर सारे पिज़्ज़ा और न जाने कितने मील्स के फोटो देखते-देखते उसके पेज पर आ जाएंगे, न जाने कितने दोस्त और फैंस उसे बहुत कुछ ऑफर कर देंगे, बस होगा स़िर्फ इतना कि वह उसे देख तो पाएगा, पर मोबाइल से बाहर निकालकर खा नहीं पाएगा. फोटो को गहराई से सोचें, तो स़िर्फ एक परछाईं भर तो है, दिखती रहेगी, पर पकड़ में कभी नहीं आएगी.
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वह सोचने लगा टु मिनट्स नूडल्स, यह लाइफ, नो... नो... यह लाइक्स भी क्या है... स़िर्फ पानी के बुलबुले या कहें टु मिनट्स नूडल्स की तरह नहीं है क्या? अभी आसमान में थे और अभी नीचे. यह नाम, शोहरत और पहचाने जाने की भूख भी कोई भूख है क्या और इससे भी हमें कुछ हासिल भी हो रहा है. यह शोहरत भी तो किसी आदमी की परछाईं की तरह है, जिसे बस देख सकते हैं, छू नहीं सकते. यह किसी के काम नहीं आ सकती.
आज फुर्सत किसे है किसी के पास कुछ भी देखने-सुनने और पढ़ने की, जिसे देखो, वह बस बोले जा रहा है. दिनभर बस नॉन स्टॉप चपर-चपर फेसबुक पर, ट्विटर पर, व्हाट्सऐप पर, हर व़क्त एक झूठा भ्रम... लाइक्स...
ज़िंदगी जैसे लाइक्स की ग़ुलाम होकर रह गई है. हर दस मिनट में, हर बीप पर हाथ का ख़ुद-ब-ख़ुद मोबाइल पर पहुंच जाना और अपनी पोस्ट को कितने लोगों ने लाइक किया देखना जैसे चौबीस घंटे का शग़ल बन गया है. किसने क्या कमेंट किया उस पर ध्यान टिकाए रखना. कमेंट्स पर हाथ जोड़ना या थैंक्स कहना. अपने थैंक्स को भी दूसरे के देखने के प्रति फॉलो करना. अपने नाम-शोहरत को पॉप्युलैरिटी के पैमाने पर नापना. दोस्तों में इस पॉप्युलैरिटी के सहारे ख़ुद को साबित करने की कोशिश करना. अपने आसपास जो हैं, उन्हें ही अपना न समझना और इंटरनेट पर इकट्ठा नकली इमोजी को असली ज़िंदगी का हिस्सा मान लेना.
यह जो उसके आसपास भीड़ है वह कौन-सी भीड़ है, जो भूख लगने पर उसे एक व़क्त की रोटी नहीं दे सकती, बीमार पड़ने पर डॉक्टर तक नहीं ले जा सकती और कहीं ख़ुदा न खास्ता अपने बाथरूम में गिर पड़े, तो उठा तक नहीं सकती. हां, उसका नाम बहुत है, शोहरत बहुत है, बड़ा आदमी है नेट पर. उसे सब जानते हैं. ज़रा-सा कुछ हो जाए, तो उससे हमदर्दी दिखानेवालों के मैसेज ही इंटरनेट पर रिकॉर्ड तोड़ दें. बीमारी लिखते ही परहेज़ और ठीक होने के लिए क्या करें कि सलाह से पेज भर जाए. और ख़ुदा न खास्ता कुछ हो जाए, तो ओ माई गॉड आरआईपी से पूरा व्हाट्सऐप ग्रुप भर जाए. वह भी कब कितने दिन? बस, एक दिन और जिसके लिए आरआईपी लिखा है, वह देखने के लिए है कहां कि आज कितने उसके चाहनेवाले हैं. हां, कंधा देने के लिए सड़कपर उतरना हो, तो लोग नहीं मिलेंगे.
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माई गॉड... बिहारी को एक शाम खाना नहीं मिला, तो उसके मन में कैसे-कैसे ख़्याल आ रहे हैं, उसके भीतर का राइज़िंग स्टार कहां गया. कहां गई वह बड़ी-बड़ी आदर्शवादी बातें. दरअसल, वह अच्छी तरह जानता था कि इस लाइक्स और इस तरह फेमस होने से कुछ नहीं होनेवाला है. यह सब बस अपने मन का भ्रम है. सब झूठी दुनिया की झूठी ख़ुशियां हैं. इस तरह अनजान लोगों द्वारा जानने या लाइक कर देने से कुछ नहीं होता.
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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