सचमुच जीवन में अपने सबसे क़रीबी लोगों के लाइक्स और कमेंट हमें कभी नहीं मिलते और हम सोचते हैं कि ये लोग हमें पसंद नहीं करते, जबकि सच तो यह है कि इन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि जो हमारे हैं या यह कहें कि जो हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं, उन्हें क्या लाइक और डिस्लाइक करना. लाइक्स या कमेंट्स तो दूसरे करते हैं, अपने तो बस अपने होते हैं. उनके लिए तो आप, आप हैं, नाम या शोहरत हो न हो, क्या फ़र्क़ पड़ता है. ये लाइक्स-वाइक्स तो बस परछाईं है, जिसे पकड़ा नहीं जा सकता और रिश्ते परछाईं नहीं होते…
न ही यह प्रसिद्धि कोई ठोस उपलब्धि है, इस इंटरनेट के समंदर में इस तरह के न जाने कितने खेल चल रहे हैं, जिसमें भटक-भटककर लोग अपना नकली सैटिस्फैक्शन ढूंढ़ रहे हैं.
रात के दो बज चुके थे, भूख अपना एहसास करा रही थी, थकान उस पर हावी थी. उसने कान से हेड फोन निकाल दिया, उसे लगा चक्कर आ जाएगा.
उसकी सांसें डूबती-सी लगीं, आदमी अपने जुनून और महत्वाकांक्षा में क्या से क्या हो जाता है और अपने नाम-शोहरत के पीछे अपना जीवन तक खो देता है. न जाने उसे क्यों लग रहा था कि उसका दिल सिकुड़ता जा रहा है, कहीं उसे कार्डियक अरेस्ट तो नहीं हो रहा? अरे, अरे, ये हो क्या रहा है? सच है, उसने अपना ध्यान ही नहीं रखा था.
इन एक लाख फॉलोअर्स और दस हज़ार लाइक्स का क्या होगा?
इससे पहले कि वह नेट बंद कर देता, उसने देखा बहुत देर से कोई कॉल उसका वेट कर रही है.
वह चौंका, अरे! यह तो उसकी वाइफ और बेटी की कॉल थी. पचास मिस कॉल्स... ओह माई गॉड! वह अपने पेज में, अपने गाने में, अपने स्पीकर में, अपने सपने में इस तरह उलझा था कि उसे अपने सबसे क़रीबी लोगों की कॉल ही नहीं सुनाई दे रही थी. उसने किसी तरह झट-से कॉल बैक की, पहली रिंग पूरी भी नहीं बजी थी कि फोन उठ गया. उधर से जैसे किसी के रोने की आवाज़ आ रही थी, फोन उठते ही आवाज़ जैसे मोबाइल से दूर हो गई. बस, मोबाइल पर आसुंओं की बौछार हो जैसे... ढेर सारी शिकायतें, ढेर सारी डांट और ढेर सारी फ़रमाइशें. उसे लगा कोई कह रहा हो, “पापा-पापा... आप ठीक तो हैं ना पापा... पूरी रात हो गई, आप कहां थे पापा. आप फोन क्यों नहीं उठा रहे थे? पापा, मम्मी का बुरा हाल है रो-रोकर, प्लीज़ पापा आप कुछ बोलते क्यों नहीं?”
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यह उसके बेटी की आवाज़ थी. सुनते ही जैसे उसे सुकून मिल गया, जैसे जीवन में सबसे बड़ी दवा यही हो.
“अरे! हां बेटी, मैं... मैं ठीक हूं.” उसकी सांसें नियंत्रित हो रही थीं. उसने बगल में रखे पानी के बॉटल से घूंट-घूंटकर पानी पीया. “बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं. यह शायद नेटवर्क की प्रॉब्लम है, तुम कॉल कर रही होगी, मुझे कोई कॉल नहीं मिली. अभी देखा तो एक साथ इतनी सारी मिस कॉल दिखा रहा था.”
तब तक उधर से आवाज़ आने लगी. बेटी बोली, “लो पापा, मम्मी से बात कर लो.”
अब बस बात क्या होनी थी, पर इस समय वो सारी की सारी डिस्लाइक्स जैसे बहुत ही अच्छी लग रही थीं. उन एक लाख फ्रेंड्स और दस हज़ार लाइक्स से कहीं क़ीमती.
हां, अपने ही लोगों के लाइक्स और कमेंट्स नहीं होते अपने पेज पर, तो क्या वो हमें डिस्लाइक करते हैं?
“अरे! सुन रहे हो या फिर सो गए. पिछले तीन घंटे मेरे कैसे कटे हैं मैं ही जानती हूं. तुम्हारा क्या है, लगे होगे कहीं इधर-उधर. कितनी बार तो कहा है टाइम से खा लिया करो और हां, एक सिम और ले लो, ये नेटवर्क की प्रॉब्लम तो छोटी जगह पर रहेगी ही ना. ये नौकरी भी न जाने तुम्हें कहां-कहां भटका रही है.”
उसकी आंखें भी भर आई थीं, “बस, अब सो जाओ. तुम भी तो जाग रही हो. कितनी रात हो गई है और हां, मैं आ तो रहा हूं इस संडे को.”
“हां प्लीज़, जल्दी आ जाओ. आज तो मैं सचमुच बहुत डर गई थी.” तभी बेटी ने फोन ले लिया, “पापा, आप भी सो जाइए और इतना काम मत किया कीजिए कि हम लोगों को ही भूल जाएं.”
उसे लगा बेटी बड़ी बात कर रही है. ओह! उसने सोचा ही नहीं कि बच्चे देखते ही देखते बड़े हो जाते हैं और हमें समझाने की स्टेज पर पहुंच जाते हैं. वह बोला, “कैसी बातें कर रही है. कोई अपने बच्चों और परिवार को भी भूलता है क्या. आज नेटवर्क प्रॉब्लम थी बस और कोई बात नहीं है. अब तू भी सो जा और मम्मी का ध्यान रख.” इतना कहकर उसने मोबाइल काट दिया.
सचमुच जीवन में अपने सबसे क़रीबी लोगों के लाइक्स और कमेंट हमें कभी नहीं मिलते और हम सोचते हैं कि ये लोग हमें पसंद नहीं करते, जबकि सच तो यह है कि इन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि जो हमारे हैं या यह कहें कि जो हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं, उन्हें क्या लाइक और डिस्लाइक करना. लाइक्स या कमेंट्स तो दूसरे करते हैं, अपने तो बस अपने होते हैं. उनके लिए तो आप, आप हैं, नाम या शोहरत हो न हो, क्या फ़र्क़ पड़ता है.
ये लाइक्स-वाइक्स तो बस परछाईं है, जिसे पकड़ा नहीं जा सकता और रिश्ते परछाईं नहीं होते, वो अपनों के बिना सोते नहीं हैं, खाना-पीना नहीं खाते हैं, चैन से सांस नहीं लेते हैं. हां, किसी पेज पर जाकर इमोजी नहीं बनाते, न ही लाइक्स का थम्स अप दिखाते हैं. वह भीतर तक डर गया. आज अगर बेटी का फोन न आता तो...
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ये जो बढ़ती हुई दिल की धड़कनें थीं, किसी अस्पताल तक भी न पहुंचने देतीं... किसी भी भारी आवेग में सबसे बड़ी दवा अपनों का सहारा ही तो है. उसे लगा अगर उसने यह लाइक्स का चक्कर नहीं छोड़ा, तो कहीं असली ज़िंदगी से डिस्लाइक न हो जाए.
अब वह शांत था, बिल्कुल शांत. उसे अब अपनी ज़िंदगी या अपने भीतर के राइज़िंग स्टार के राइज़ न कर पाने से शिकायतें कम हो रही थीं. वह अपने पारिवारिक रिश्तों की रोशनी में इस लाइक्स की दुनिया के ऊपर से उठ रहे पर्दे को देख पा रहा था. उसे लगा अगर उसने एमसीए करके कम्प्यूटर डाटा एनालिस्ट का जॉब न पकड़ा होता, तो आज न जाने कहां धक्के खा रहा होता. न घर-परिवार होता, न ही प्यारी-सी बेटी. हां, लाइफ में लाइक्स की भरमार होती, पर तब तक पता नहीं वह अपने ही पेज पर ये लाइक्स देख भी पाता या नहीं.
मुरली मनोहर श्रीवास्तव
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