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कहानी- मनवा लागे 4 (Story Series- Manwa Laage 4)

“यार शिव, मुझे बड़ी चिंता हो रही है. अब तो बता अचानक ऐसी क्या बात हो गई कि तुझे एकदम रवाना होना पड़ा? तेरे तो न बीवी, न बच्चे! पढ़ाने की आराम की नौकरी है.” “समझ लो, अचानक कोई प्लॉट ध्यान आ गया. अब घर पहुंचते-पहुंचते कहानी पूरी कर लूंगा.” “तुम राइटर लोग भी अजीब हो. ख़ैर, तेरा ख़त उस लड़की और महिला को दे दिया था.” “धन्यवाद दोस्त!” अपनी सीट पर बैठते हुए शिव सोच रहे थे. अभी की तो छोड़ो, इस प्लॉट पर तो वे शायद ही कभी कहानी लिखने का साहस जुटा पाएं. ‘एक लेखक के लिए यह बहुत बड़ा कॉम्प्लीमेंट है कि उसके पाठक उसकी कहानी से इस कदर जुड़ जाएं कि ख़ुद को ही एक पात्र के रूप में देखने लगें. शब्दों के माध्यम से लोगों के दिलों को छूना मुझे भाता है. लिखने में मुझे एक अलग ही आनंद आता है. आपकी भी साहित्य में रुचि लगती है, तो सफल लेखक बनने के लिए आपको एक टिप- दूसरों को इस तरह सुनो कि उन्हें आपको सुनाने में आनंद आए. साथ ही इस तरह अपनी बात रखो कि वे आपको सुनना पसंद करें.’ ‘यह तो कोई और ही बंदा लगता है, पर लिखता वाकई बहुत अच्छा है.’ विभा मन ही मन सोचकर पानी-पानी हुई जा रही थी कि वह भी क्या-क्या समझकर क्या-क्या सोच बैठी. इधर ट्रेन रवाना हुई और उधर लेखक महोदय का मोबाइल बज उठा. “यार शिव, मुझे बड़ी चिंता हो रही है. अब तो बता अचानक ऐसी क्या बात हो गई कि तुझे एकदम रवाना होना पड़ा? तेरे तो न बीवी, न बच्चे! पढ़ाने की आराम की नौकरी है.” “समझ लो, अचानक कोई प्लॉट ध्यान आ गया. अब घर पहुंचते-पहुंचते कहानी पूरी कर लूंगा.” “तुम राइटर लोग भी अजीब हो. ख़ैर, तेरा ख़त उस लड़की और महिला को दे दिया था.” यह भी पढ़े: छोटे-छोटे निवेश से करें बड़ी बचत  “धन्यवाद दोस्त!” अपनी सीट पर बैठते हुए शिव सोच रहे थे. अभी की तो छोड़ो, इस प्लॉट पर तो वे शायद ही कभी कहानी लिखने का साहस जुटा पाएं. दो दिन पहले का घटनाक्रम उनकी आंखों के सामने ताज़ा हो उठा. कॉलेज के फंक्शन से लौटे वे दोस्त के यहां सुस्ता रहे थे कि पता चला उसी कॉलेज की एक लड़की उनसे मिलने आई है. “जी कहिए, तो आपका पैशन भी राइटिंग है?” मिलते ही शिव ने सवाल कर डाला. ज़्यादातर लड़कियां उनसे इसी सिलसिले में मिलने आती थीं. “नहीं, मेरा साहित्य से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है.” “फिर किस नाते आप मुझसे मिलने आई हैं?” शिव का स्वर न चाहते हुए भी थोड़ा कटु हो गया था. कारण उनके आकर्षक, सुदर्शन व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कुछ कॉलेज गर्ल्स उन्हें प्रणय निवेदन कर चुकी थीं. “उम्र में तो आप मेरी बेटी समान हैं.” “तो समझ लीजिए उसी नाते आई हूं शिव दीपकजी.” अब चौंकने की बारी शिव की थी, क्योंकि बहुत कम लोग ही उन्हें उनके असली नाम से जानते थे.      संगीता माथुर
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