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कहानी- मुझे सब था पता मैं हूं मां 2 (Story Series- Mujhe Sab Tha Pata Main Hu Maa 2)

जो लोग आराम पसंद भी होते हैं और महत्वाकांक्षी भी, उन्हें अगर सही दिशा न मिले, तो कुंठित या आपराधिक होने की संभावना सबसे अधिक होती है. तू उनमें से ही थी. तब तक हमने तेरी हर इच्छा पूरी की थी, पर उस दिन मुझे उन सच्चाइयों का एहसास हुआ जिन्हें मेरी मां अक्सर दोहराया करती थीं. सफलता या उपलब्धियां मां बच्चे को दिला नहीं सकती, स़िर्फ उन्हें अर्जित करना सिखा सकती है. तुम अपनी जीत पर ख़ुश थीं. मुझे हर समय दुलराती रहतीं, मुझसे बात करने की कोशिश करती रहतीं. पर मुझे बात करने से, अपना दर्द बांटने से एलर्जी हो गई थी. और तब शुरू हुए तुम्हारे ताने. मेरे अंकों में अप्रत्याशित गिरावट पर तुमने कोई हौसला नहीं दिया. तुम्हारे दिल की बात ज़ुबां पर आ ही गई. तुमने साफ़ कह ही दिया कि मैं किसी भी क़ाबिल नहीं हूं. वो नश्तर दिल में जा धंसा और लहूलुहान आत्मा का एक ही संकल्प बन गया कि तुम्हें ग़लत साबित करके दिखाना है और देखो मैंने कर दिखाया. मैं आगे और सक्षम होकर दिखाऊंगी और तुम्हें ग़लत साबित करती रहूंगी. बस, एक इच्छा बची है, एक दिन तुम अपनी सारी नाइंसाफ़ियों के लिए सफ़ाई दो. तुम्हारी सफल बेटी आकांक्षा मेल में बचपन से आज तक का सारा ग़ुस्सा उतार तो दिया आकांक्षा ने, लेकिन बिदा के समय मां की सूजी आंखें देखकर सेंड पर क्लिक नहीं किया गया. एक तो वैसे ही मां की ख़ुद को संभालने की हर कोशिश बेकार हो रही थी. उस पर दिल दुखानेवाला ये ख़त कैसे भेज देती. प्यार भी तो मां से उतना ही है, जितना ग़ुस्सा है मन में. सोचा, जब मां का क्षणिक प्यार ख़त्म हो जाएगा और वो डांट लगाएंगी, तो भेजेगी. यह भी पढ़ेकिस उम्र में क्या सेक्स एजुकेशन दें? (Sex Education For Children According To Their Age) कमरे पर पहुंचकर सारा सामान सेट करते-करते भूख लग गई थी. मुंह में मां के बनाए लड्डू भरकर लैपटॉप खोला, तो मां का मेल आया हुआ था. मेरे जिगर का टुकड़ा, मेरी दिली आकांक्षा, सदा ख़ुश रहो तुमने उड़ान भरने के लिए इतना ऊंचा आकाश जीता है. मेरी बरसों की तपस्या सफल हुई है. तुम सोच रही होगी कि इतना बड़ा वरदान पाकर भी मैं इतनी उदास क्यों हूं? क्या बताऊं, लग रहा है जैसे अपने शरीर का एक अंग काटकर कहीं और रखने जा रही हूं. ऐसा सूनापन, ऐसी कचोट तब महसूस की थी, जब पहली बार तुझे प्लेस्कूल छोड़कर आई थी. इतने सुरक्षित वातावरण में, स़िर्फ दो घंटे के लिए तुझे छोड़ने पर दिल संभलने नहीं आ रहा था तो आज! आज तो मन में हज़ार चिंताएं हैं. गिनी-चुनी सब्ज़ियां अच्छी लगती हैं तुझे. दूध, फल, मेवे कुछ भी तो ख़ुद से खाने की आदत नहीं डाल पाई तेरी. ठीक से रज़ाई ओढ़ना तक नहीं सिखा पाई. तू बात-बात पर चिढ़ जाती है और जल्दी निराश हो जाती है. कैसे ध्यान रख पाएगी अपने शरीर और मन का! दिल को किसी करवट चैन नहीं है. मां का दिल अपने बच्चे को दुनिया की हर ख़ुशी दे देना चाहता है, उसे हर ख़तरे से, हर दर्द से दूर रखना चाहता है, इसीलिए उसे अपनी नज़रों से दूर करने में डरता है, पर संभालना होगा मुझे अपने दिल को. जानती हूं, तेरी भलाई के लिए ज़रूरी है. अगर हम पौधे को गमले से निकालकर यथार्थ की क्रूर ज़मीन में रोपने का जोख़िम नहीं उठाएंगे, तो वो अपने संपूर्ण विकास को कभी नहीं पाएगा. और ये तो प्यार नहीं है. जानती हूं, तू पिंजरे से आज़ाद हुए पंछी की तरह उत्साहित है. तुझे तेरे प्रिय खिलौने बिना किसी रोकटोक के मिले हैं. ख़ुश है न! ईश्वर करे, हमेशा ऐसे ही ख़ुश रहे, पर बेटा, पिंजरे के पंछी के पास एक ही ग़म है, ग़ुलामी. दाने-पानी की खोज की परेशानी, धूप-घाम की तकली़फें, शिकारियों के ख़तरे का तनाव तो आज़ादी पाने के बाद ही समझ आता है. पता नहीं इन सारे संघर्षों के लिए तैयार करने की कोशिश कितनी सफल रही है. जानती हूं, तुझे मुझसे बहुत शिकायतें हैं. ये शिकायतें मेरी इन्हीं कोशिशों के कारण हैं. तू चाहती थी न कि मां कभी तो सारी नाइंसाफ़ियों के लिए दुखी हो, सफ़ाई दे. ख़ुश हो ले, आज जब तू मां की देखभाल से दूर हो रही है, तो तेरी उन सारी शिकायतों का जवाब देना चाहती हूं. तेरी ज़रूरत की सारी चीज़ें पैक कर दी हैं. कुछ आंसू छिपा कर रखे थे. ख़त के साथ भेज रही हूं, इस उम्मीद के साथ कि ये संवादहीनता की उस दीवार को पिघला देंगे, जो तूने कैशोर्य से हमारे बीच खींच दी है. याद है मुझे तू बहुत छोटी थी, तो तू भी हर बच्चे की तरह अध्यापिकाओं के मुंह से चंद प्रशंसा के वाक्यों के लिए तरसती थी. प्रतियोगिताओं में भाग लेने का बहुत शौक था तुझे. एक बार तूने मुझसे अपने नाम का मतलब पूछा. मैंने बताया कि जब कोई चाह बहुत गहरी हो जाती है, तो उसे आकांक्षा कहते हैं. फिर तुझसे तेरी आकांक्षा पूछने पर तूने कहा, मुझे प्रिंसिपल मैम कोई पुरस्कार दें और सारा स्कूल मेरे लिए ताली बजाए, मैं बहुत भावुक होकर तुझे देखती रह गई. बेटा, तेरा व्यक्तित्व मस्तमौला था. जो लोग आराम पसंद भी होते हैं और महत्वाकांक्षी भी, उन्हें अगर सही दिशा न मिले, तो कुंठित या आपराधिक होने की संभावना सबसे अधिक होती है. तू उनमें से ही थी. तब तक हमने तेरी हर इच्छा पूरी की थी, पर उस दिन मुझे उन सच्चाइयों का एहसास हुआ जिन्हें मेरी मां अक्सर दोहराया करती थीं. सफलता या उपलब्धियां मां बच्चे को दिला नहीं सकती, स़िर्फ उन्हें अर्जित करना सिखा सकती है. मैं तुझमें वो श्रम-निष्ठा विकसित करने में लग गई, जिससे तेरी आकांक्षाएं पूरी हो सकें. यह भी पढ़ेकैसे बचें फर्ज़ी डिग्रियों के मायाजाल से? (How To Avoid Fake Colleges And Degree Scams?) जब तेरा चुनाव किसी प्रतियोगिता के लिए न होता, तो तेरे मन की मासूम चोटें मां की सहानुभूति का मरहम चाहती थीं, लेकिन मैं जानती थी कि ये मरहम तुझे और आलसी व अपनी कमियों को दूसरों या क़िस्मत के सिर मढ़ने का आदी बना देंगे. तुझे मरहम नहीं, उपलब्धि अर्जित करने के लिए ज़रूरी श्रम की प्रेरणा की ज़रूरत थी. हर प्रकार से समझाकर भी जब कोई असर नहीं हुआ, तो मैंने बच्चों में नैतिक मूल्यों की स्थापना का सबसे पुराना तरीक़ा चुना- कहानियां. इस तरी़के ने कुछ असर दिखाया और तू कम से कम किसी प्रतियोगिता की बात आने पर नियोजित श्रम में रुचि दिखाने लगी. bhavana prakash भावना प्रकाश

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