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कहानी- नई किरण 3 (Story Series- Nai Kiran 3)
कावेरी युवावस्था में थी तब सोचती थी कि वृद्ध लोग ऐसे ही होते हैं. वो अपने बच्चों के पास क्यों नहीं जाते. बच्चे तो उन्हें कितना बुलाते हैं. उसी कॉलेज में प्रोफेसर नीलिमा के दोनों बेटे अमेरिका बस गए, तो उनका सदा से बहाना रहा कि नौकरी के चलते भला अमेरिका कैसे जाएं. सटीक भी था, लेकिन रिटायरमेंट के बाद, “हमारा मन कैसे लगेगा, हम तो सोशली इंडिया में ही एडजस्ट है.” और वो यहीं रहीं.
... “हां कावेरी, बूढ़े हो जाएं, तो कोई नज़दीक नहीं आता. बच्चे को गोद लेने को घर में सब लपकते हैं. बूढ़ा खांसी करे, तो हर कमरे से डांटने की आवाज़ आती है और बच्चा खांसी करे, तो सब उसकी फ़िक्र में हाज़िर हो जाते हैं." कावेरी का किशोरावस्था वाला मन माया की दादी की बातें सुनकर मंद-मंद मुस्कुराता भर था.
कावेरी को जब प्रांजल हुआ, तो रात-रातभर सोता नहीं था. कावेरी की सासू मां रातभर कावेरी के साथ जागती थी. कभी उसे गोद में लेती, कभी लोरी देकर सुलाने की कोशिश करती. उधर केशव की दादी दूसरे कमरे में खांसी करती, तो सासू मां झल्ला कर उन्हें डांट देती, “सो जाओ अम्मा! एक तो मुन्ना तंग कर रहा है, उस पर तुम भी नहीं सो रही.” कावेरी को माया की दादी का वृद्ध दर्शन याद आ जाता.
आज कावेरी स्वयं बुढापे के कगार पर खड़ी है. पिछले तीन दिन से इतनी बार बुखार में तप-तप कर ठंडी हुई है. केशव के जाने के बाद रो-रो कर हल्कान हुई जा रही है. मुंह में दो निवाले डालनेवाला भी कोई नहीं है.
दो दिन पहले प्रांजल का औपचारिक फोन आया था, तब बुखार हल्का ही था. उसने प्रांजल को प्रकट ही नहीं होने दिया था, पर आज उसे महसूस होने लगा था कि कोई तो उसे पूछे... कोई तो उसे दवा दे... कोई उसके मुंह में खिचड़ी के दो दाने ही डाल दे... एक कप चाय ही बना दे... पर कौन..? यह एक बड़ा प्रश्न उसके सामने खड़ा था.
कावेरी युवावस्था में थी तब सोचती थी कि वृद्ध लोग ऐसे ही होते हैं. वो अपने बच्चों के पास क्यों नहीं जाते. बच्चे तो उन्हें कितना बुलाते हैं. उसी कॉलेज में प्रोफेसर नीलिमा के दोनों बेटे अमेरिका बस गए, तो उनका सदा से बहाना रहा कि नौकरी के चलते भला अमेरिका कैसे जाएं. सटीक भी था, लेकिन रिटायरमेंट के बाद, “हमारा मन कैसे लगेगा, हम तो सोशली इंडिया में ही एडजस्ट है.” और वो यहीं रहीं.
भले ही वो कहती रहीं कि बेटे बहुत अच्छे हैं रोज़ फोन करते हैं. पति के स्वर्गवासी होने के बाद भले ही नौकर की व्यवस्था कर दी, मंहगे उपहारों से घर भर दिया, पर उनके अकेलेपन को कौन दूर कर पाया?
कावेरी को मोहल्ले की झाईजी भी याद आ रही थी, जिनसे वे बचपन में गाहे-बगाहे स्वेटर के डिज़ाइन सीखने के बहाने चली जाती थी. घर क्या था पूरी हवेली थी. भरा-पूरा परिवार था. सास-ससुर, दो देवर, बहुएं आईं, तो देवरानी और बच्चों से परिवार बढ़ गया. समय की गति के साथ बूढे होते सास-ससुर स्वर्गवासी हुए. परिवार विघटन हुआ. सब नए मकानों की दुहाई देकर चलते गए. झाईजी का बेटा भी पढाई के लिए विदेश गया, तो लौट कर नहीं आया.
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एक दिन झाईजी के पति भी किडनी की लंबी बीमारी के बाद चल बसे. कावेरी को ये सब समाचार पीहर से मां के माध्यम से मिलते रहे. वो एक बार पीहर गई, तो झाईजी से मिलने का लोभ संवरण नहीं कर पाई. वो हवेली जो लोगों की आवाज़ से चहकती थी आज बार-बार दरवाज़े पर दस्तक देने पर कोई नहीं आया था. बड़ी देर के बाद झाईजी पैरों को घसीटती हुई मुश्किल से दरवाज़े तक आई थीं.
कावेरी ने देखा चेहरे पर झुर्रियों का इज़ाफा हुआ था. शरीर की हड्डियों ने उन्हें कमर से झुका दिया था. कावेरी झाईजी को गले लग कर मिली, तो उनकी बेकाबू धड़कनों को उसने साफ़ सुना था. झाईजी के पास बैठ कर ख़ूब बातें की थी, पर कावेरी एक प्रश्न कर ही बैठी, “झाईजी, आप भैया के पास क्यों नहीं चले जाते. यूं अकेले...”
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
संगीता सेठी
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