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कहानी- पतंग 2 (Story Series- Patang 2)

निवेदन दिन-रात अपने प्यार का इज़हार करता रहता और वो उसे ऐसे डांट देती, “मेरा-तेरा मानसिक स्तर नहीं मिलता, अभिरुचि, रहन-सहन, जीवनशैली कुछ भी तो नहीं मिलते.”      “और मैं सोचता था सोणिए कि दिल मिलना चाहिए, रोबोट बुद्धि.” निवेदन की इस बात को निपुणा हंसी में उड़ा देती. समय तेज़ी से बढ़ रहा था. निपुणा ने करियर में तो कामयाबी हासिल कर ही ली थी, अब शुरू हुई जीवनसाथी ढूंढ़ने की शुरुआत. निपुणा को कोई लड़का अपने योग्य ही नहीं लगता. धीरे-धीरे मम्मी-पापा की दबी ज़बान पर निवेदन का नाम आने लगा.  वो कमरे से बाहर निकल गया और निपुणा एक ठंडी सांस लेकर आरामकुर्सी पर पसर गई. कैसे अपनी बात को शब्दों में पिरोएगी, सोचते हुए अतीत के समुद्र में उतरती जा रही थी. उसे कभी पड़ोसी निवेदन का जन्मदिन याद नहीं रहा और वो कभी उसका जन्मदिन भूला नहीं. उसने कभी वो उपहार खोलकर भी नहीं देखा, जो मम्मी उसे देने के लिए थमा देती थीं और वो एक महीने पहले से निपुणा की पसंद का उपहार सोचने और ढू़ंढने की जद्दोज़ेहद करके भी उसे कभी ख़ुश नहीं कर पाया. पहली बार यही कोई सात-आठ साल के रहे होंगे वो, जब रिमोट से उड़नेवाले हवाई जहाज पर वो चिढ़ गई थी, “मुझे नहीं पसंद हैं तू और तेरे ये बचकाने गिफ्ट्स.” मगर निवेदन इतनी आसानी से पीछा छोड़ता न था, “मैं जब पतंग उड़ाने को कहता हूं, तू मना कर देती है कि मांझे से हाथ कट जाएगा. देख ये रिमोट से चलता है. तू ये उड़ाना, मैं पतंग.” “मुझे बख़्श दे. समझने की कोशिश कर. मुझे उड़ाने का नहीं, उड़ने का शौक़ है. मैं पतंग की तरह ऊंचे आकाश में उड़ना चाहती हूं. देखना एक दिन मैं वहां होऊंगी, आकाश पर और तू ज़मीन पर पतंग ही उड़ाता रहेगा, बुद्धू कद्दू.” “कितनी देर आकाश पर रहेगी? लौटकर तो ज़मीन पर ही आना है, रोबोट बुद्धि.” ये कहते हुए एक-दूसरे के सिर पर टीप मारकर वे अपनी राह मुड़ जाते थे. निपुणा उन गिने-चुने व्यक्तियोंे में से थी, जो कभी बच्चे नहीं होते और निवेदन उन लोगों में से जिनमें कभी परिपक्वता नहीं आती. अंतर्मुखी निपुणा का छोटी-सी उम्र में भी हंसने-खेलने को समय का दुरुपयोग मानना उसकी मां की सबसे बड़ी चिंता थी, तो बहिर्मुखी निवेदन को पढ़ने बिठाना, समय का सदुपयोग सिखाना उसकी मां की सबसे बड़ी समस्या. निपुणा का जीवन और दिनचर्या जितनी व्यवस्थित थी, निवेदन की उतनी ही अस्त-व्यस्त. निपुणा पढ़ाई में जितनी मेधावी थी, सभी गतिविधियों और कलाओं में भी उतनी ही प्रतिभाशाली. दूसरी ओर निवेदन पढ़ाई का सबसे बड़ा दुश्मन था. उसकी एक ही प्रतिभा थी, मज़ेदार बातें करके लोगों को हंसाना और उनकी सहायता करना. यह भी पढ़ें: नाम के पहले अक्षर से जानें कितना रोमांटिक है आपका पार्टनर? (First Letter Of Name Tells How Romantic Is Your Partner) निपुणा का तो वो छोटे से छोटा काम करने को आतुर रहता. स्कूल पैदल जाते थे वे. निपुणा का एक बैग तो हमेशा पुस्तकालय से ली किताबों से भरा रहता, जिसे हमेशा निवेदन ही उठाता. सालभर सारे अटपटे, समय गंवानेवाले काम वो करता, लेकिन साल के अंत में जब परीक्षाएं सिर पर आतीं और निवेदन रोना शुरू करता, तो निपुणा उसे एक घुड़की लगाकर पढ़ने बैठाती और इतना घोलकर पिला देती कि वो बस उत्तीर्ण हो जाता. निवेदन दिन-रात अपने प्यार का इज़हार करता रहता और वो उसे ऐसे डांट देती, “मेरा-तेरा मानसिक स्तर नहीं मिलता, अभिरुचि, रहन-सहन, जीवनशैली कुछ भी तो नहीं मिलते.” “और मैं सोचता था सोणिए कि दिल मिलना चाहिए, रोबोट बुद्धि.” निवेदन की इस बात को निपुणा हंसी में उड़ा देती. समय तेज़ी से बढ़ रहा था. निपुणा ने करियर में तो कामयाबी हासिल कर ही ली थी, अब शुरू हुई जीवनसाथी ढूंढ़ने की शुरुआत. निपुणा को कोई लड़का अपने योग्य ही नहीं लगता. धीरे-धीरे मम्मी-पापा की दबी ज़बान पर निवेदन का नाम आने लगा. तभी विवेक से पहचान पसंद में बदली, तो विवेक के प्रस्ताव पर पापा को उनके पापा से बात करने भेज दिया था. पापा उसके पिता की दी दहेज की एक लंबी लिस्ट के साथ लौटे थे. विवेक से बात की, तो उसने बड़ी आसानी से कंधे उचकाए, “अकेली बेटी हो, इतने समय से कमाकर मां-बाप को ही तो दे रही हो. अगर कुछ मेरे मम्मी-पापा ने मांग लिया तो...” उसी शाम बहुत धनाढ्य घर में शादी तय होने की बात गर्व के साथ सुनाते हुए विवेक का फोन आया था और वो चिढ़ उठी थी. इतना गुरूर? ऐसे इंसान को पसंद किया था उसने जीवनसाथी बनाने के लिए? क्या मम्मी ठीक कहती हैं कि उसने किताबी कीड़ा बनकर व्यावहारिक बुद्धि बढ़ाने की ओर कभी ध्यान न देकर कुछ तो ग़लत किया है? निवेदन एक अच्छा इंसान तो है... दुख, ग़ुस्से और अपमान से सुलगी बैठी थी कि निवेदन ने उसे हंसाने की बचकानी कोशिशें शुरू कर दी थीं, “क्या हुआ सोणिए, मैं तो पहले ही कहता था कि सपनों के राजकुमार सपनों में ही होते हैं. असल ज़िंदगी में तो मेरे जैसा टेढ़ा है, पर तेरा है ही मिलते हैं. अब तू इस निवेदन के निवेदन पर विचार कर ही डाल. सुन, तू फ़िलहाल के लिए मुझसे शादी कर ले, जब कोई सपनों का राजकुमार मिल जाए, तो मुझे तलाक़ दे देना.” निपुणा ने आग्नेय नेत्रों से घूरा था उसे, “तेरे लिए तो हर चीज़ बच्चों का खेल है, यहां तक कि शादी भी.” “सोणिए, मैं शादी तो क्या, ज़िंदगी को भी खेल समझता हूं.” कब उसने शादी के लिए हां की, कब तैयारियां हुईं उसे याद नहीं. गीत-संगीत, रस्म और रिवाज़ से गुज़रती जब सुहाग की सेज तक पहुंची, तब जैसे होश आया था. क्यों किया उसने ये सब? और अब उसे ख़ुद को निवेदन के हाथों सौंपना है? bhavana prakash भावना प्रकाश

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