Close

कहानी- पतंग 3 (Story Series- Patang 3)

“मैं जानता था कि तुम बैंगलुरू आकाश के साथ के लिए जाना चाहती थी. देख नहीं रहा हूं कि जब से वो तुम्हारी ज़िंदगी में आया है तब से तुम हंसना सीख गई हो. सजने-संवरने का मन करने लगा है तुम्हारा. उसने चंद महीनों में वो कर दिखाया, जो मैं इतने सालों की शिद्दत से की कोशिशों से भी नहीं कर पाया. उसने तुम्हें कंप्यूटर से इंसान बना दिया है, सोणिए! ज़िंदगी जीना सिखा दिया है. है न?” निपुणा की आंखों में आंसू आ गए. “मैं... मैं... आई एम सॉरी, मैं नहीं जानती ये सब कब और कैसे... मगर मेरे संस्कार मुझे सीमा-रेखा तोड़ने से रोकते रहे... मैं थक गई हूं, मैं क्या करूं?” फिर जैसे अचकचाहट में भीगी पलकों पर रखे भावों ने करवट बदली. शादी की थी, तो समर्पण भी ज़रूरी रस्म थी. इसे भी तो निभाना होगा. लेकिन उस रात निवेदन का एक ऐसा रूप देखा था, जिसके बारे में उसने कभी सोचा ही नहीं था. कमरे में आते ही बिना किसी भूमिका के उसे एक ज़ेवर का डिब्बा पकड़ाते हुए बोला था वो, “ये तो तू जानती ही है कि मैं तुझे प्यार करता हूं और मैं जानता हूं कि तू मुझे प्यार नहीं करती. आज इतना बताना चाहता हूं कि मेरे लिए प्यार का मतलब तुझे पाना नहीं, ख़ुश देखना है और समझना चाहता हूं कि तेरे लिए प्यार का मतलब क्या है? कैसे मैं तेरे लायक बनने की कोशिश कर सकता हूं? जब तुझे लगे कि ये समझौता करके तूने कोई ग़लती नहीं की है, तो मेरा उपहार पहन लेना. मैं इसे तेरे क़रीब आने की इजाज़त समझूंगा.” बड़ी मुश्किल से समझाया था दिल को, पर डिब्बा खोलते ही खिन्नता और बढ़ गई थी. उ़फ्! इतना मंहगा पर इतना बचकाना? पर जैसा भी था, पहनना तो था ही. “लो, तुम्हारा तोहफ़ा आ गया.”  निवेदन का उत्साहित स्वर सुनकर निपुणा जैसे सोते से जगी. अपनी ही कशमकश कम थी, जो इसके बचकाने गिफ्ट को... लिफ़ाफ़ा एक तरफ़ रखते हुए वो बोली, “सुनो निवेदन, मुझे तुमसे कुछ कहना है. नहीं मांगना है, नहीं समझाना है, नहीं...” और निपुणा के शब्द फिर गले में अटक गए, पर आज निवेदन अपनी आदतानुसार ठहाका मारकर हंसा नहीं, आंखों में आंखें डालकर प्यार से बोला, “ओए सोणिए! पहले तू तय कर ले कि तुझे करना क्या है? न हो तो पहले गिफ्ट खोलकर देख ही ले, क्या पता वही हो जो तुझे मांगना हो.” निपुणा ने शायद ज़िंदगी में पहली बार निवेदन के चेहरे पर संजीदगी के भाव देखे. यह भी पढ़ें: हेमा मालिनी- “मैंने ज़िंदगी में बहुत एडजस्टमेंट्स किए हैं” (Hema Malini- “I Have Made A Lot Of Adjustments In Life”) लिफ़ाफ़ा आगे बढ़ाते समय उसके हाथ कांप गए, तो निपुणा की उत्सुकता जगी. मगर खोलकर पढ़ा, तो जैसे व़क्त थम गया, धड़कन रुक गई, निगाहें निवेदन की निगाहों से जा टकराईं, तो देखा उनमें ओस की बूंद से दो आंसू ठहरे थे, पर होंठों पर गर्वमयी मुस्कान, “यही चाहती थी न तू? अब ख़ुश?” निपुणा जैसे जड़-सी हो गई. कभी निवेदन के हस्ताक्षरों के साथ तलाक़ के उन काग़ज़ों को, कभी प्यार के उस सागर को निरखती जा रही थी, “और तुम्हारा प्यार? तुम भी तो मुझे प्यार करते हो.” आख़िर कुछ शब्द हिचकिचाहट का बांध तोड़कर बाहर आए. “बिल्कुल करता हूं, पर प्यार कोई ज़ंजीर थोड़े ही है, जो अपने प्यार को जकड़कर घायल कर दे. इंसान का मन पतंग है और प्यार उस मांझे की तरह है, जो अपने प्यार को उन्मुक्त हवा में लहराते देखकर ख़ुश होता है. उसका सहारा बनता है. वो उसे खींचता नहीं, क्योंकि जानता है इससे पतंग टूट जाएगी. वो तो बस, उसे हवाओं में छोड़कर उसके साथ बना रहता है, ताकि जब हवाएं थम जाएं या पतंग थक जाए, तो उसे वापस ला सके. मैं जानता था कि तुम बैंगलुरू आकाश के साथ के लिए जाना चाहती थी. देख नहीं रहा हूं कि जब से वो तुम्हारी ज़िंदगी में आया है तब से तुम हंसना सीख गई हो. सजने-संवरने का मन करने लगा है तुम्हारा. उसने चंद महीनों में वो कर दिखाया, जो मैं इतने सालों की शिद्दत से की कोशिशों से भी नहीं कर पाया. उसने तुम्हें कंप्यूटर से इंसान बना दिया है, सोणिए! ज़िंदगी जीना सिखा दिया है. है न?” निपुणा की आंखों में आंसू आ गए. “मैं... मैं... आई एम सॉरी, मैं नहीं जानती ये सब कब और कैसे... मगर मेरे संस्कार मुझे सीमा-रेखा तोड़ने से रोकते रहे... मैं थक गई हूं, मैं क्या करूं?” फिर जैसे अचकचाहट में भीगी पलकों पर रखे भावों ने करवट बदली. “तुम सब जानते थे. तुम मुझसे भी पहले जान गए थे कि... तुमने मुझे रोका क्यों नहीं? मुझे डांटते, बुरा-भला कहते, अब भी कह सकते हो. हक़ है तुम्हारा, मुझे चाहे कुछ कह लो. हो सके तो मेरे मन को रोक लो, निवेदन, उसे बांध लो. मैं तो अपने मन को बहुत डांटती हूं, बहुत समझाती हूं, मगर मेरा कहा मानता ही नहीं, बिल्कुल बच्चों की तरह...” “बस, यही तो ग़लती करती हो तुम. मन कोई परिंदा थोड़े ही है, जो पकड़ा और पिंजरे में बंद कर दिया. ये ग़ुलाम नहीं, राजा है और वो भी दुनिया का सबसे तानाशाह राजा. ये तो वो नदी है, जिस पर जितने बांध बनाओगी, इसका वेग उतना ही बलवान होता जाएगा. तुम तो वैज्ञानिक हो, जानती हो कि प्रकृति के नियमों को बदला नहीं जा सकता. अगर मेरी क़िस्मत में तुम्हारा प्यार होगा, तो मुझसे दूर होने के बाद तुम्हें मेरे प्यार का एहसास हो जाएगा और नहीं होगा तो मेरी बांहों में होकर भी तुम्हारी पलकों में किसी और के सपने होंगे.” निवेदन बोल रहा था और निपुणा के ज़ेहन में एक बिंब बनता जा रहा था. एक मस्ती से भरी पतंग आकाश में उड़ रही है. वो ऊंचे और ऊंचे जाना चाहती है. नीले आकाश को छूना चाहती है, लेकिन गले में अटका मांझा उसे रोक रहा है. bhavana prakash भावना प्रकाश

अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES

Share this article