समाज और क़ानून प्रसव को ममता का प्रथम मापदंड मानता है. हम चाहे जितना भी यशोदा का गुणगान कर लें, वास्तव में कृष्ण देवकी को ही प्राप्त होता है. यशोदाओं की गोद को निर्ममता से रिक्त कर देने को न्याय माना जाता है. चंद प्रशंसा के टुकड़े और कुछ वाहवाही के छंद पढ़कर समाज अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है. मैंने भी वही किया.
मिलन की मां के साथ मेरा संबंध कभी सामान्य नहीं हो पाया. वास्तविक जीवन कोई फिल्म तो नहीं, जहां अंत में सभी का हृदय परिवर्तन हो जाता है. सो वह बदली तो नहीं, पर वर्तमान स्थिति को स्वीकार अवश्य कर लिया. अतीत की कटुता को भूल मैं भी आगे बढ़ गई. हम दोनों को अपनी नौकरी और रिश्ते को समय देना था. अतः कुछ वर्षों के लिए साहिल को मम्मी के पास ही छोड़ने का निर्णय लिया. हम दोनों बीच-बीच में पटना आते और महंगे-महंगे खिलौनों, गैजेट्स आदि देकर अपने माता-पिता होने के कर्तव्य की पूर्ति कर लेते. जब साहिल के स्कूल की छुट्टियां होतीं, तो वो मम्मी-पापा के साथ मुंबई आ जाता. हमारे कृत्रिम जीवन के इस कृत्रिम संबंध की प्रमाणिकता को न मैं देख पाई और न समझ पाई. देखते ही देखते दस वर्ष बीत गए. इस मध्य मैंने और मिलन ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में एक अच्छा स्थान बना लिया. हमने साहिल को अपने पास मुंबई लाने का निर्णय लिया और पटना आ गए. समाज और क़ानून प्रसव को ममता का प्रथम मापदंड मानता है. हम चाहे जितना भी यशोदा का गुणगान कर लें, वास्तव में कृष्ण देवकी को ही प्राप्त होता है. यशोदाओं की गोद को निर्ममता से रिक्त कर देने को न्याय माना जाता है. चंद प्रशंसा के टुकड़े और कुछ वाहवाही के छंद पढ़कर समाज अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है. मैंने भी वही किया. यह भी पढ़ें: बढ़ते बच्चे बिगड़ते रिश्ते (How Parent-Child Relations Have Changed) मैंने जब मम्मी के गले लगकर साहिल को ले जाने की बात तो कही, तब मैं उनकी बनावटी हंसी के पीछे छुपी यंत्रणा को नहीं देख पाई. मां मौन रहीं, लेकिन साहिल मौन नहीं रहा. वो चीखा.. वो चिल्लाया... “मुझे आपके साथ कहीं नहीं जाना! आप चली जाओ!” जब मैं फिर भी नहीं मानी, तो चिरौरी करने लगा, “मम्मी, मुझे कोई वीडियो गेम नहीं चाहिए. मुझे डिज़्नीलैंड नहीं देखना. आप मुझे मेरे मां-पापा के पास रहने दीजिए!” मैंने अत्यंत शुष्क स्वर में उत्तर दिया था, “साहिल! डिसीजन हो चुका है. तुम देखना, तुम्हें मुंबई बहुत अच्छा लगेगा.” इतना कहकर ज्यों ही मैं उसे गले लगाने के लिए आगे बढ़ी, उसने मेरा हाथ झटक दिया और तेज आवाज़ में चीखा, “मम्मी, आप गंदी हो. आई हेट यू!” अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... पल्लवी पुंडीर अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIE यह भी पढ़ें: बच्चे भी होते हैं डिप्रेशन का शिकार… (Depression In Children)
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