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कहानी- रूम नंबर ट्रिपल नाइन…2 (Story Series- Room Number Triple Nine…2)
‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो? उसे लिफ्ट क्यों नहीं दी? इतनी रात में बेचारी अकेली खड़ी थी.’’ कुछ क्षण समीर ख़ामोश रहा, फिर घबराए स्वर में बोला, ‘‘काव्या, वह लड़की नहीं वरन् कोई चुड़ैल या आत्मा थी.’’
‘‘कैसी बात कर रहे हो समीर? पढ़े-लिखे होकर ऐसी बातों पर यक़ीन करते हो?"
"ठीक कह रहा हूं. वह लड़की मर चुकी है.’’
नैल्सन कंपनी आने पर वह कार से उतर गई. इंटरव्यू में सामने समीर को देख वह सुखद आश्चर्य में डूब गई. इधर-उधर की दो-चार बातों के बाद ही समीर ने उसे सलैक्ट कर लिया था. नई कंपनी में एडजस्ट होने में उसने काव्या की बहुत मदद की. बहुत शीघ्र दोनों में दोस्ती हो गई और एक दिन जब समीर ने उसे प्रपोज़ किया, तो उसने हां कहने में देर नहीं की. ऑफिस के पश्चात दोनों अक्सर साथ घूमते-फिरते. देखते ही देखते दो माह गुज़र गए. एक दिन उसने समीर से कहा, ‘‘समीर, घर में मेरी शादी की बात चल रही है. तुम अपने मम्मी-पापा को लेकर हमारे घर आओ न.’’ ‘‘काव्या, ऐसा होना सम्भव नहीं है. मेरे माता-पिता दोनों इस दुनिया में नहीं हैं. मुझे और मेरी बहन को दूर के चाचा ने पाला है, जो गांव में रहते हैं और बीमार हैं.’’
‘‘ओह, अब क्या होगा? ‘‘
"काव्या, क्यों न हम दोनों मंदिर में शादी करके दो-चार दिन के लिए कहीं चले जाएं. वापस लौटेंगे, तो तुम्हारे घरवालों को हमारी शादी करनी ही पड़ेगी.’’ वह हिचकिचाई. मां-पिता के लाड़-प्यार और घर की इज़्ज़त का ख़्याल आया. किंतु समीर के प्यार के आगे वह कमज़ोर पड़ गई. समीर पर उसे पूरा विश्वास था. उसके कहने पर वह लाॅकर से रुपए और गहने भी निकाल लाई थी.
तभी सड़क पर पड़े एक बड़े से पत्थर की वजह से कार ज़ोर से उछली और वह अतीत से वर्तमान में आ गई. अचानक वह बोली, ‘‘अरे सामने देखो समीर. एक लड़की सड़क के किनारे खड़ी कार रोकने का इशारा कर रही है.’’ समीर ने देखा, सचमुच थोड़ी दूर पर सड़क के किनारे एक लड़की खडी थी.
‘इतनी रात गए सड़क पर लड़की का क्या काम? कोई चोर लुटेरी न हो.’’ समीर ने आशंका जताई.
"कोई मुसीबत की मारी भी तो हो सकती है. तुम रोको तो सही.’’ समीर ने कार रोकी.
लड़की कार के समीप आई. उसका चेहरा शाल से ढका हुआ था. उसने एक झटके से शाल हटाया और बोली, ‘‘प्लीज़, क्या मुझे कुछ दूर के लिए लिफ्ट देंगे?" ज्योंहि समीर की नज़र उस पर पड़ी, एक दबी-घुटी सी चीख उसके मुंह से निकली. भय से उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया. उसने एक्सीलरेटर पर पांव रखा और कार भगा दी.
काव्या अचम्भित हो गई. ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो? उसे लिफ्ट क्यों नहीं दी? इतनी रात में बेचारी अकेली खड़ी थी.’’ कुछ क्षण समीर ख़ामोश रहा, फिर घबराए स्वर में बोला, ‘‘काव्या, वह लड़की नहीं वरन् कोई चुड़ैल या आत्मा थी.’’
‘‘कैसी बात कर रहे हो समीर? पढ़े-लिखे होकर ऐसी बातों पर यक़ीन करते हो?"
"ठीक कह रहा हूं. वह लड़की मर चुकी है.’’
‘‘तुम्हें कैसे पता कि वह मर चुकी है? तुम उस लड़की को जानते थे क्या?" समीर ख़ामोश रहा. काव्या के बार-बार पूछने पर उसने एक गहरी सांस ली, फिर गम्भीर स्वर में बोला, ‘‘हां काव्या, मैं उसे अच्छी तरह जानता था. मेरा और उसका अफेयर था. एक शाम वह मुझसे मिलने आ रही थी, किंतु रास्ते में उसका एक्सीडेंट हो गया और वह...’’ समीर का गला भर आया. कुछ क्षण बाद वह पुनः बोला, ‘‘काव्या, प्लीज़ मुझसे नाराज़ मत होना. मैंने तुम्हें अपने अतीत से अनभिज्ञ रखा. दरअसल, मैं अब अपनी पिछली दुखद ज़िन्दगी के बारे में सोचना भी नहीं चाहता.’’
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‘‘समीर, मुझे तुम्हारे अतीत से कुछ लेना-देना नहीं है. तुम्हारा वर्तमान ही अब मेरी ज़िन्दगी है. इससे आगे मैं कुछ सोचना नहीं चाहती.’’ समीर की आंखों में प्यार का सागर लहराने लगा. इससे पहले कि वह कोई शरारत करने की सोचता, काव्या ने मुस्कुराकर उसे चुपचाप कार चलाने का संकेत किया. कार सड़क से उतरकर कच्चे रास्ते पर दौड़ रही थी. क़रीब दो किलोमीटर आगे जाकर हरे-भरे पेड़ों का एक घना झुरमुठ आया, जिसके बीचोंबीच होटल मिस्ट्री प्वांइट बना हुआ था. कार से उतरकर दोनों रिसेप्शन पर पहुंचे. रुम नंबर ट्रिपल नाइन दोनों के लिए पहले से बुक था. काॅफी पीकर समीर किसी काम से चला गया और काव्या बिस्तर पर लेट गई. रातभर जगी होने के कारण उसकी आंख लग गई.
अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें...
रेनू मंडल
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