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कहानी- सबसे बड़ी सौग़ात 3 (Story Series- Sabse Badi Saugat 3)

सच पूछिए तो भैया, क़ानून ने स्त्रियों को चाहे जितने अधिकार दिए हों, चाहे वे कितनी ही अत्याधुनिक हों, पर स्त्रियां हमेशा प्यार और स्नेह वश अपना हक़ छोड़ती आई हैं, जिसे कभी उसके कर्त्तव्य का नाम दिया जाता है, कभी उसका धर्म बताया जाता है. फिर भी स्त्रियां सब सहती हैं. कितने ही दुख झेलती हैं, पर अपने प्यार के रिश्तों पर वार नहीं करतीं. भाई का रिश्ता भी तो जन्म से जुड़ा प्यार का रिश्ता ही होता है, फिर भला मैं मरते दम तक यह कैसे चाहूंगी कि मेरे भाई की संपत्ति पर कोई लालच भरी नज़र डाले, चाहे वह मेरा पति और मेरी संतान ही क्यों न हो? जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, भैया की व्यस्तता शादी के कारण बढ़ती जा रही थी, फिर भी मुझे लगता था जैसे भैया मुझसे कुछ कहना चाह रहे थे, पर कह नहीं पा रहे थे. शादी बहुत ही धूमधाम से हुई, पर एक फांस-सी मेरे गले में हमेशा अटकी रही. शादी के बाद सभी रिश्तेदार अपने-अपने घर लौटने लगे, तो मैंने भी लौटने की तैयारी शुरू कर दी. मेरे पति अविनाश और बेटा आदित्य एक दिन में ही बारात अटेंड कर लौट गए थे. मैं हिम्मत कर भैया से बोली, “भैया, मैं कल का टिकट मंगवा रही हूं वापस जाने के लिए.” “इतनी भी क्या जल्दी है, एक-दो दिन और बहू के साथ रह लो.” “सुनिए भैया, मैं जानती हूं आप को मुझसे कुछ कहना है. इस तरह संकोच करेंगे, तो बरसों गुज़र जाएंगे और आप अपनी बातें नहीं कह पाएंगे. जतिन तुम वह फाइल दो, जिसमें भैया ने मुझे संपत्ति से बेदख़ल करने के काग़ज़ात रखे हैं, मैं उस पर हस्ताक्षर कर दूं, ताकि भैया मेरे जाने के बाद निश्‍चिंत रहें.” मेरी बातें सुन भैया जड़ से हो गए. जतिन वह फाइल ले आया, जो भैया के कमरे में रखी हुई थी. “रुको जतिन, निधि तू हस्ताक्षर मत कर. मैं ये विचार छोड़ चुका हूं, वरना तुमसे ज़रूर बात करता.” अचानक भैया के स्वर की आत्मीयता और बेचैनी महसूस कर इतने दिनों से दिल में जमा मलाल पिघलने लगा था. “आपको मेरे हस्ताक्षर नहीं चाहिए, पर मुझे हस्ताक्षर करने हैं. न जाने कब अपने शहर की मिट्टी और उसमें बसे अपने घर व संपत्ति का मोह इतना बढ़ जाए कि वह लालच में बदल जाए और जन्म के रिश्ते, प्यार व विश्‍वास सब शक के घेरे में आ जाएं, जो भाई-बहन के रिश्ते को ही बिखेर दें. यह भी पढ़े: Learn English, Speak English: अंग्रेज़ी होगी शानदार, अगर सीखेंगे ये शब्द व वाक्य (Basic English: Common Phrases That Are Incredibly Useful) सच पूछिए तो भैया, क़ानून ने स्त्रियों को चाहे जितने अधिकार दिए हों, चाहे वे कितनी ही अत्याधुनिक हों, पर स्त्रियां हमेशा प्यार और स्नेह वश अपना हक़ छोड़ती आई हैं, जिसे कभी उसके कर्त्तव्य का नाम दिया जाता है, कभी उसका धर्म बताया जाता है. फिर भी स्त्रियां सब सहती हैं. कितने ही दुख झेलती हैं, पर अपने प्यार के रिश्तों पर वार नहीं करतीं. भाई का रिश्ता भी तो जन्म से जुड़ा प्यार का रिश्ता ही होता है, फिर भला मैं मरते दम तक यह कैसे चाहूंगी कि मेरे भाई की संपत्ति पर कोई लालच भरी नज़र डाले, चाहे वह मेरा पति और मेरी संतान ही क्यों न हो? इसलिए मैं यह हस्ताक्षर ज़रूर करूंगी. बहन का सामर्थ्य भाई के विश्‍वास में होता है, संपत्ति में नहीं. अगर भाई का फ़र्ज़ बहन की स्मिता और सम्मान की रक्षा करना है, तो बहन का भी फ़र्ज़ है भाई के सुख और समृद्धि के लिए हर संभव प्रयत्न करना. उसे छीनना नहीं.” “एक बात और... भले ही बदलते समय के साथ आपका विश्‍वास मुझ पर से डगमगा गया है, पर आज भी मुझे पूरा विश्‍वास है कि मेरे सुख-दुख में आप ही मेरे एकमात्र संबल होंगे. यह विश्‍वास मेरे लिए किसी भी संपत्ति से बड़ा है.” बोलते-बोलते मेरा गला भर आया था और सभी भावुक हो उठे थे. भैया और भाभी की आंखें भर आई थीं. मेरे चुप होते ही, एक गहरा सन्नाटा-सा पसर गया, जिसने सभी को अपने-अपने दायरे में कैद कर दिया था. रिश्तों में अचानक उग आया कैक्टस सब को तकलीफ़ दे रहा था. मैंने बचपन से भैया के प्यार को बहुत ही गहराई से महसूस किया था, जो मुझे अभी तक एक-सा ही लगता था, फिर दोनों भाई-बहन के बीच यह अविश्‍वास कहां से आ गया? शायद संपत्ति के एक टुकड़े ने भाई-बहन के रिश्ते में सेंध लगा दी थी. जिस प्यार, विश्‍वास और अपनेपन को हम बचपन से रिश्तों में महसूस करते हैं, उनके होने का विश्‍वास रखते हैं, अगर हमारा वही विश्‍वास और भ्रम टूटता है, तो स़िर्फ आश्‍चर्य नहीं होता, गहरी पीड़ा की अनुभूति होती है. सभी कुछ समाप्त हो जाने का एहसास होता है. आज मुझे भी कुछ वैसा ही महसूस हो रहा था. दिल का वह कोना, जिसमें मायका बसता था, तिनका-तिनका बिखर गया था. यह दिल का वही सुरक्षित कोना था, जिस पर कभी मुझे बहुत नाज़ था, जो मेरा स्वाभिमान था, जिसके बिना मैं अपने आप को हमेशा आधी-अधूरी समझती थी. तभी भैया अचानक उठे और मेरे पास आकर पहले की तरह ही मेरे सिर पर अपना हाथ रखते हुए बोले, “जो हुआ सो हुआ, तू मन में दुख मत रख. मैं तुझे विश्‍वास दिलाता हूं, जब तक मैं ज़िंदा हूं तुम्हारे प्यार, विश्‍वास और अधिकार को कोई ठेस नहीं पहुंचाएगा यह वादा है मेरा तुझसे.” यह भी पढ़े: लघु उद्योग- इको फ्रेंडली बैग मेकिंग: फ़ायदे का बिज़नेस (Small Scale Industries- Profitable Business: Eco-Friendly Bags) मेरे मुंह से बेसाख़्ता निकल पड़ा, “मुझे स़िर्फ प्यार का अधिकार चाहिए, संपत्ति का नहीं.” मेरे इतना बोलते ही, अचानक सभी की हंसी छूट गई, सभी की खिलखिलाहटों से कमरा गूंज उठा. अब तक बोझिल बना वातावरण काफ़ी हद तक हल्का हो गया था. दूसरे दिन स्टेशन जाने के लिए निकलते समय जब मैं भाभी के पैर छूने के लिए झुकी, तो सीने से लगाते हुए उनकी आंखों से अविरल अश्रुधार बह निकली और अचानक मां की याद ताज़ा हो गई. भैया और जतिन की आंखें भी भर आई थीं. सौम्या ने गले से लिपटते हुए मुझसे फिर से जल्दी आने का आग्रह किया, तो दिल का कोना-कोना प्यार से सराबोर हो गया. मन में जमा अब तक का सारा क्लेश धुल गया. इस भावभीनी विदाई के प्रवाह में सारे गिले-शिकवे मिट गए और रह गया एक सुखद तृप्ति का एहसास, जो मायके की सबसे बड़ी सौग़ात थी. Rita kumari      रीता कुमारी

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