Close

कहानी- सती का सच 2 (Story Series- Sati Ka Sach 2)

तभी जैसे कहर टूट पड़ा था. चार दिन पहले ही मेरी प्यारी बहन रत्ना के पति की सांप डसने से तत्काल मृत्यु हो गयी थी और... वह नादान-मासूम अपने पति के साथ चिता पर चढ़ गयी. इस घटना ने आसपास के समूचे इलाके को आंदोलित कर दिया था. मां, पिताजी और भइया रत्ना के ससुराल गये थे आसन्न प्रसवा भाभी को मेरे भरोसे छोड़ कर. पिताजी और मां के चेहरे अनोखे तेज़ से दमक रहे थे. वह पुत्री-दामाद के मरने की ख़बर नहीं थी. पिता के नाम को रोशन कर देने की शुभ सूचना थी.   कभी-कभी अपनी और मां की साड़ी के साथ मेरी स़फेद साड़ी में कलफ़ लगा इस्तरी कर देती. मैं रत्ना को रोकती और तब मां मुझे कुछ न कह कर भी सुलगती नज़रों से घूरती और चीर कर रख देती. मैं अन्दर-ही-अन्दर सिमट कर रह जाती. किसी शुभ कार्य में मैं कभी सामने नहीं पड़ती. मां अपने हाव-भाव से बहुत कुछ कह कर वर्जनाओं की रस्सी से जकड़ जाती थी. रत्ना की विदाई पर मैं उससे लिपट कर रोना चाहती थी, उसके सिर पर अपने अशेष आशीषों से भरा हाथ रखना चाहती थी, मगर मुझे यह छूट नहीं थी. भूखी-प्यासी मैं पकवानों से भरे भंडार में बैठी उसके बिछोह से आकुल-व्याकुल हो रही थी. यह भी पढ़ें: कहीं आपको भी तनाव का संक्रमण तो नहीं हुआ है?  ऐसे व़क़्त में स़िर्फ एक ही अवलम्ब था मेरे पास. पिता के लम्बे-चौड़े मकान में दो कमरों को गांव का पुस्तकालय बनाया गया था. कभी समाप्त न होनेवाले घर के कामों को मैं मशीनी गति से निपटाती और आधी-आधी रात तक दीमक बनी पुस्तकों को चाटती रहती. यही मेरे सूने वीरान जीवन का बसंत था. ज़माने भर की प्रताड़ना, तिरस्कार, अवहेलना मैं निर्विकार रह कर सुन लेती और अपनी अधूरी पुस्तकों के पन्नों में उलझी रहती. मेरी सारी चेतना अन्तर्मुखी हो गयी थी. सत् साहित्य के आस्वादन ने जैसे मेरे दिलो-दिमाग़ के कपाट खोल दिये थे. अपने पर हो रहे अत्याचार के प्रति अब मेरा मन पके फोड़े-सा टीसें मारता. अन्दर की पीड़ा को अंत:स्थल में समाहित करने की मैं आदी हो चुकी थी अब तक. तभी जैसे कहर टूट पड़ा था. चार दिन पहले ही मेरी प्यारी बहन रत्ना के पति की सांप डसने से तत्काल मृत्यु हो गयी थी और... वह नादान-मासूम अपने पति के साथ चिता पर चढ़ गयी. इस घटना ने आसपास के समूचे इलाके को आंदोलित कर दिया था. मां, पिताजी और भइया रत्ना के ससुराल गये थे आसन्न प्रसवा भाभी को मेरे भरोसे छोड़ कर. पिताजी और मां के चेहरे अनोखे तेज़ से दमक रहे थे. वह पुत्री-दामाद के मरने की ख़बर नहीं थी. पिता के नाम को रोशन कर देने की शुभ सूचना थी.

- निर्मला डोसी

अधिक कहानी/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां पर क्लिक करेंSHORT STORIES

Share this article