नूपुर ने उससे अपने दिल के सारे राज़ शेयर किए हुए थे. अपनी सीक्रेट सेविंग के बारे में भी बताया हुआ था. सुगंधा ने उत्साहित होकर कहा था, “तू घबरा मत, तेरे पास इतना पैसा है और दिल्ली जैसी जगह में प्रॉपर्टी भी है, तो कुछ-न-कुछ नई शुरुआत हो ही जाएगी. तू यहां मेरे पास आ जा, फिर देखते हैं, क्या कर सकते हैं.” वह एक अंतिम आशा बची थी, मगर नूपुर का तो सारी दुनिया पर से विश्वास ही उठ चुका था. क्या पता वह भी मेरी सेविंग का सुनकर ही मुझे बुला रही हो. जब सगी बहन ने रंग बदल लिए, फिर पुरानी सहेली क्या चीज़ है...
“हम तो हालात के मारे थे दी, चोरी तो आपने की है इतने साल. क्या जीजाजी को पता है, आप इतने सालों से उनकी जेब काटकर यहां पैसे भेज रही थीं और जहां तक घर की बात है, आप अगर कोर्ट चली गईं, तो भी यह घर नहीं ले पाएंगी, क्योंकि हम यहां सालों से रहकर इसका टैक्स भर रहे हैं.”
“बस करो!” नुपुर ने कानों पर हाथ रख लिया और कुछ सुनने या कहने की शक्ति नहीं बची थी उसमें. उस घर की दीवारें, आंगन अब उसे तीर की तरह चुभ रहे थे, उस हवा में ली जा रही सांसें ज़हरीली लग रही थीं. उसने तुरंत सामान बांधा और रोते हुए अपने मायके की चौखट लांघ गई. हर बार रुकने का अनुग्रह करनेवाली बहन ने इस बार उसे पलटकर भी नहीं देखा.
नूपुर ने एक दिन दिल्ली के एक होटल में गुज़ारा. आगे क्या करेगी, कहां जाएगी कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने हफ़्तेभर बाद की दून शताब्दी की टिकट कराई हुई थी. देहरादून उसकी एक पुरानी कॉलेज फ्रेंड सुगंधा रहती थी. अमेरिका से उससे फोन पर बातें होती रहती थीं. सोचा था कुछ दिन बहन के पास रुक आगे की योजना बनाकर, सुगंधा से पर्सनली जाकर मिलेगी. उसके पति एक रोड एक्सीडेंट में काफ़ी पहले ही गुज़र चुके थे. वह सालों से अपनी बेटी और ख़ुद को अकेले ही संभाल रही थी. वह हर बार नूपुर को अपने पास आने के लिए कहती, मगर नंदिनी उसे छोड़ती ही नहीं थी.
नूपुर ने उससे अपने दिल के सारे राज़ शेयर किए हुए थे. अपनी सीक्रेट सेविंग के बारे में भी बताया हुआ था. सुगंधा ने उत्साहित होकर कहा था, “तू घबरा मत, तेरे पास इतना पैसा है और दिल्ली जैसी जगह में प्रॉपर्टी भी है, तो कुछ-न-कुछ नई शुरुआत हो ही जाएगी. तू यहां मेरे पास आ जा, फिर देखते हैं, क्या कर सकते हैं.” वह एक अंतिम आशा बची थी, मगर नूपुर का तो सारी दुनिया पर से विश्वास ही उठ चुका था. क्या पता वह भी मेरी सेविंग का सुनकर ही मुझे बुला रही हो. जब सगी बहन ने रंग बदल लिए, फिर पुरानी सहेली क्या चीज़ है... चलो, उसके रंग भी देख लूं. ताबूत में ये आख़िरी कील भी सही और उसने अगले दिन की तत्काल टिकट करा ली.
“एक्सक्यूज़ मी, ज़रा साइड देंगी प्लीज़.” एक मीठे अनुग्रह से विचारों में खोई नूपुर झटके से वापस लौटी. सामने बैठी लड़कियां ऊपर से अपना सामान उतारने की कोशिश कर रही थीं.
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ट्रेन गंतव्य पर पहुंच चुकी थी. नूपुर ने उतरकर ऑटो किया और सुगंधा के घर की ओर चल पड़ी. सुगंधा का एक मध्यमवर्गीय कॉलोनी में छोटा-सा घर था. घर के बाहर गणित व संस्कृत क्लासेज़ का बोर्ड लगा था. उसने अपनी सहेली का गले मिलकर स्वागत किया और अपनी बेटी निधि से उसका परिचय मौसी के रूप में कराया.
थोड़ी-बहुत बातचीत के बाद सुगंधा दोनों के लिए चाय ले आई. “बड़ी बुझी-बुझी-सी लग रही है. सब ख़ैरियत? तेरा अचानक प्रोग्राम प्री प्लान कैसे हुआ?”
रास्तेभर बमुश्किल बांधकर रखा आंसुओं का सैलाब यकायक बह चला. नूपुर ने सारी आपबीती सुना दी. सुगंधा सब शांति से सुन रही थी. सैलाब थमा, तो सुगंधा ने पूछा, “तो अब आगे क्या करने का सोचा है?”
“कुछ नहीं सोचा.” नूपुर अभी भी सुबक रही थी.
“अच्छी बात है.” सुगंधा ने कहा, तो नूपुर ने उसे घूरा.
“इसमें कौन-सी अच्छी बात है?”
“यही कि तूने कुछ नहीं सोचा, इसलिए कुछ नए सिरे से सोचने और करने का पूरा-पूरा स्कोप है.” सुगंधा चहकते हुए बोली.
“मेरी हालत ख़राब है और तू ख़ुश हो रही है?”
“ख़ुश तो हूं और ऊपरवाले का शुक्र भी मना रही हूं कि तू इतने बड़े झटके के बाद भी ज़िंदा बच गई. तुझे कुछ हार्टअटैक वगैरह नहीं आया.” नूपुर ने उसे पुनः खा जानेवाली नज़रों से देखा. “तुझे पता है जब यहां नोटबंदी हुई थी, तो कितनी औरतों की सीक्रेट सेविंग पर रातोंरात पानी फिर गया था. बैंक में रखते नहीं बनता था, पति को बता नहीं सकते थे. ये सदमा कुछ के लिए तो जानलेवा तक साबित हुआ था. तू तो फिर भी भाग्यशाली निकली. सब एक साथ उड़ जाने के बाद भी सही सलामत है.” नूपुर को सुगंधा पर इतना ग़ुस्सा आ रहा था कि मन किया कुछ उठाकर उस पर फेंक मारे, मगर वह उसी के घर शरणार्थी थी, सो कुछ नहीं कह सकी.
दीप्ति मित्तल