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कहानी- स्पर्श की भाषा… १ (Story Series- Sparsh Ki Bhasha… 1)

 

मां ने फोन कब का रख दिया था, लेकिन रेवती के मन में मां के वही भावुक शब्द और आर्द्र स्वर गूंज रहा था. स्वर की आर्द्रता मन के भीतर कुछ पिघला रही थी. रेवती सोच रही थी हर उम्र को स्नेह के आश्वासन की आवश्यकता होती है, जो स्पर्श से बढ़कर कोई नहीं दे सकता. स्पर्श की अपनी एक मौन भाषा होती है. बिना शब्दों के स्पर्श गहरी सांत्वना, अपनेपन का एहसास देता है.

          अंकित के हाथ में टिफिन थमा कर उन्हें रवाना करने के बाद रेवती गुनगुनाती हुई घर के भीतर आई. साढ़े दस बजे थे सुबह के. अंकित कॉलेज से अब साढ़े चार बजे आएंगे और मिष्टी तीन बजे लौटेगी स्कूल से. साढ़े दस से तीन बजे तक का यह समय रेवती का अपना होता है और सप्ताह के पांचों दिन वह इस समय का भरपूर लाभ उठाती है. लिखना, पेंटिंग करना, अच्छी किताबें पढ़ना, घर को अपनी रुचि अनुसार संवारना, ख़ुद को अप टू डेट रखना सभी कुछ इस समय में होता. आज भी वह नहाकर आई और ड्रॉइंगरूम में बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए आज ही आई नई पत्रिका के पन्ने पलट रही थी कि मोबाइल की रिंग बजने लगी. देखा मां का फोन था. उसे आश्चर्य हुआ कल ही तो वह मां से मिलकर आई है. उसने फोन उठाया.     यह भी पढ़ें: बेटी की शादी का ख़र्च बड़ा हो या पढ़ाई का? (Invest More In Your Daughter’s Education Rather Than Her Wedding)   अंकित और मिष्टी के बारे में पूछने और घर के कामों के बारे में औपचारिक बातचीत करने के बाद मां अचानक बोली, "बेटा, कल तुमने घर वापस लौटते हुए मुझे गले लगाया बहुत अच्छा लगा, कलेजे को बड़ी ठंडक मिली. बहुत दिनों बाद अपनेपन और प्यार के एहसास से मन तृप्त हो गया." कहते हुए मां का गला भर आया. फोन पर उनकी आवाज़ भावुक हो गई. रेवती का जी भर आया. समझ नहीं आ रहा था क्या कहे. एक ही शहर में होने के कारण मां के घर आना-जाना लगा ही रहता है, लेकिन रेवती भाभी-भैया, दोनों भतीजों में व्यस्त हो जाती है. मां के पास भी बैठती है, बातें भी करती है, लेकिन अपनी बढ़ती व्यस्तताओं और ख़ुद को परिपक्व व बड़ी उम्र का समझने के कारण उसने कभी भावनात्मक लगाव का प्रदर्शन नहीं किया था, जबकि मां के लिए तो शायद वह आज भी वही छोटी-सी बेटी है, जो हर समय उनसे चिपकी रहती थी. मां आज भी शायद उसी लगाव को खोजती होंगी, तभी तो कल पता नहीं क्यों मां को पलंग पर अंदर अकेले बैठा देख उसे जाने कैसा लगा. छोड़ कर आते हुए उनके एकाकी उदास चेहरे पर छाई उदास-सी, फीकी मुस्कान ने भीतर तक कचोट लिया और अनायास ही रेवती ने विदा लेते हुए आगे बढ़ मां को गले लगा लिया था. मां ने फोन कब का रख दिया था, लेकिन रेवती के मन में मां के वही भावुक शब्द और आर्द्र स्वर गूंज रहा था. स्वर की आर्द्रता मन के भीतर कुछ पिघला रही थी.   यह भी पढ़ें: जीवन में ख़ुशियों के रंग भरें (Live With Full Of Love And Happiness)     रेवती सोच रही थी हर उम्र को स्नेह के आश्वासन की आवश्यकता होती है, जो स्पर्श से बढ़कर कोई नहीं दे सकता. स्पर्श की अपनी एक मौन भाषा होती है. बिना शब्दों के स्पर्श गहरी सांत्वना, अपनेपन का एहसास देता है. हर रिश्ते में स्पर्श का अपना महत्व होता है, हर रिश्ते के स्पर्श की भाषा भिन्न होती है.

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें

Dr. Vinita Rahurikar डॉ. विनीता राहुरीकर           अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES             डाउनलोड करें हमारा मोबाइल एप्लीकेशन https://merisaheli1.page.link/pb5Z और रु. 999 में हमारे सब्सक्रिप्शन प्लान का लाभ उठाएं व पाएं रु. 2600 का फ्री गिफ्ट.

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