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कहानी- तेरा साथ है कितना प्यारा… 1 (Story Series- Tera Saath Hai Kitna Pyara… 1)

"अरे.. अरे बच्चा है या रोबोट? कैसे करेगा बेचारा इतना सब कुछ?" एक लंबी-सी अंगड़ाई लेते हुए प्रशांत ने बीच में ही टोक दिया था. "सॉरी, मेरी वजह से तुम्हारी नींद पूरी नहीं हो पाई. तुम चाहो तो वापस सो जाओ." लेकिन प्रशांत ने उठकर पर्दा खींच दिया था. "वाह, तुम्हारी बदौलत इतना सुंदर दृश्य देखने को मिला. इससे पूर्व कि तुम्हें मॉर्निंग सिकनेस शुरू हो मैं हम दोनों के लिए कॉफी और बिस्किट लेकर आता हूं." "सो स्वीट! तुम्हारे इसी केयरिंग स्वभाव की वजह से मैंने तुम्हें बहुत मिस किया." "मैंने भी. एक बात बताऊं, ख़ूबी और ख़ामी हर इंसान में होती है. फर्क़ बस इतना है कि जो तराशता है, उसे ख़ूबी नज़र आती है और जो तलाशता है उसे ख़ामी नज़र आती है."

        "नहीं..." एक ज़ोर की चीख मारकर नव्या उठ बैठी, तो पास ही गहरी नींद में सोए पति प्रशांत भी हड़बड़ा कर उठ गए. "क्या हुआ कहीं दर्द है? कोई बुरा सपना देखा?" "वह... मैंने देखा कि मैंने हाड़-मांस के बच्चे की बजाय एक रोबोट को जन्म दिया है." "क्या?" प्रशांत ठट्ठा कर हंस पड़ा. "तुम भी ना जाने क्या-क्या कल्पना कर लेती हो? इसलिए कहता हूं अभी अच्छा सोचो, अच्छा पढ़ो और अच्छा देखो. ज़रूर दीदी के यहां कोई ऐसी-वैसी मूवी देखी होगी." "बिल्कुल नहीं, दीदी ने मेरे खाने-पीने, पढ़ने-देखने हर चीज़ का तुमसे भी ज़्यादा ख़्याल रखा. मैंने कहा भी मैं कोई छोटी बच्ची थोडे़ ही हूं. आप तो मुझे चीकू की तरह ट्रीट कर रही है." "चीकू भी अब कहां बच्चा रहा है. नौ-दस साल का हो गया होगा. अपना ख़्याल ख़ुद रख सकता है." "नहीं तुम ग़लत हो. ख़ुद मैं भी कहां सही थी. मैं भी तुम्हारी ही तरह सोचती थी कि शुरू के दो-तीन साल या फिर उसके स्कूल जाने तक बच्चे को संभालना होता है. फिर तो सब आसान हो जाता होगा, पर हक़ीक़त में ऐसा नहीं है. कच्ची पौध की तरह उसे कदम-कदम पर कभी छांव, तो कभी धूप मुहैया करानी होती है. मैं तो यह देखकर हैरान रह गई थी कि दीदी जीजाजी की पूरी दिनचर्या ही चीकू के इर्दगिर्द घूमती है. एक न एक हर वक़्त चीकू के आसपास बना रहे, इसलिए दीदी ने डे शिफ्ट ले रखी है, तो जीजाजी ने नाइट शिफ्ट. पूरा दिन जीजाजी चीकू को एक क्लास से दूसरे क्लास में लिए घूमते हैं. सवेरे स्विमिंग, फिर इंग्लिश स्पीकिंग, दिन में स्कूल, शाम को ताइक्वांडो, वीकेंड में पियानो..."   यह भी पढ़ें: जानें बच्चों की पढ़ाई के लिए कैसे और कहां करें निवेश? (How And Where To Invest For Your Children’s Education?)     "अरे.. अरे बच्चा है या रोबोट? कैसे करेगा बेचारा इतना सब कुछ?" एक लंबी-सी अंगड़ाई लेते हुए प्रशांत ने बीच में ही टोक दिया था. "सॉरी, मेरी वजह से तुम्हारी नींद पूरी नहीं हो पाई. तुम चाहो तो वापस सो जाओ." लेकिन प्रशांत ने उठकर पर्दा खींच दिया था. "वाह, तुम्हारी बदौलत इतना सुंदर दृश्य देखने को मिला. इससे पूर्व कि तुम्हें मॉर्निंग सिकनेस शुरू हो मैं हम दोनों के लिए कॉफी और बिस्किट लेकर आता हूं." "सो स्वीट! तुम्हारे इसी केयरिंग स्वभाव की वजह से मैंने तुम्हें बहुत मिस किया." "मैंने भी. एक बात बताऊं, ख़ूबी और ख़ामी हर इंसान में होती है. फर्क़ बस इतना है कि जो तराशता है, उसे ख़ूबी नज़र आती है और जो तलाशता है उसे ख़ामी नज़र आती है." ऑफिस के आवश्यक कार्य की वजह से प्रशांत को लगभग पूरा सप्ताह ही शहर से बाहर रहना पड़ा था. नव्या की स्थिति को देखते हुए उसने उसे उसकी बड़ी बहन के यहां शिफ्ट कर दिया था. कल शाम ही वह टूर से लौटा था. दीदी के यहां डिनर कर दोनों रात में अपने घर लौट आए थे. कॉफी के साथ बिस्किट खा कर नव्या काफ़ी बेहतर महसूस करने लगी थी. प्रशांत के पास तो बताने लायक कुछ था नहीं, इसलिए नव्या ही चहक-चहक कर दीदी के साथ बिताए समय के बारे में बताने लगी. थमकर रह जाती है ज़िंदगी, जब जमकर बरसती हैं पुरानी यादें.   यह भी पढ़ें: उत्तम संतान के लिए माता-पिता करें इन मंत्रों का जाप (Chanting Of These Mantras Can Make Your Child Intelligent And Spiritual)     "हम बहनों ने बचपन में साथ बिताया समय बहुत मिस किया. कैसे कह दूं कि अब बचपन याद नहीं आता. क्या करूं, बड़े होने के बाद भी बच्चा मुझमें से नहीं जाता..."

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शैली माथुर           अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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