"आप तो बड़े स्वीट हो क्या नाम है आपका?"
"मिट्ठू" पीहू का दिल एक बार को जैसे थम गया. प्रसून और उसने यही नाम तो सोचा था. भविष्य में कभी बेटा होगा, तो मिट्ठू और बेटी होगी तो चिया. प्रसून ने तो घर में भी सब को बता दिया था. उसने झटके से ख़ुद को यादों से वापस खींचा.
"यह तो बहुत अच्छा है, पर पीहू तैयार कैसे होगी?" "यह सब मुझ पर छोड़िए पापा. प्रखर का नाम लूंगी, तो पीहू मना नहीं कर पाएगी. प्रखर ख़ुद ही आ कर पीहू से कह देंगे, तो उसके ना कहने का सवाल ही नहीं. हुआ भी वही, प्रखर ने सविनम्र निवेदन किया, तो नंदोई के सम्मान की ख़ातिर पीहू को मानना ही पड़ा. फ्लाइट दो बजे दोपहर की थी. तीनों समय से निकलकर एयरपोर्ट पहुंच गए. चेक इन के बाद कुहू और प्रखर प्रसाधन की ओर बढ़ गए, तो पीहू वही चेयर्स रो में किनारे बैठ गई. अचानक उसके हाथ पर एक छिपकली आ गिरी. "उईईई" उसने डर से हाथ झटका था. तो बगल में खड़ा छह-सात साल का लड़का ताली बजाकर हंंसने लगा. वह असली छिपकली नहीं थी, बल्कि रबर की थी. उसके मज़ाक पर पीहू हल्के से मुस्कुरा दी और रबर की छिपकली उठाकर उसे वापस करने लगी. "थैंक्यू आंटी." "ऐसे करते हैं कहीं अच्छे बच्चे?.. इन्हें सॉरी बोलो पहले..." एक सजीला-सा स्मार्ट दिखनेवाला नौजवान बच्चे को झुककर डांंटने लगा. "कोई बात नहीं... मेरे लिए भी यह फ़न था." कहते हुए पीहू ने उसे देखा था. नीली टी-शर्ट और जींस में वह 30- 32 साल से अधिक का नहीं लग रहा था. बच्चा मुंह बिसूर कर रोने ही वाला था कि पीहू ने बढ़कर उसे थाम लिया. "कोई बात नहीं. यह सब तो दोस्तों में चलता है. आप आज से मेरे दोस्त हो ना?" "हूं..." बच्चे ने अपना सिर हिलाया. उस गोलमटोल बच्चे से पीहू ने फिर पूछा, "आप तो बड़े स्वीट हो क्या नाम है आपका?" "मिट्ठू" पीहू का दिल एक बार को जैसे थम गया. प्रसून और उसने यही नाम तो सोचा था. भविष्य में कभी बेटा होगा, तो मिट्ठू और बेटी होगी तो चिया. प्रसून ने तो घर में भी सब को बता दिया था. उसने झटके से ख़ुद को यादों से वापस खींचा. "... और मेरे पापा का नाम मिलिंद." उसे चुप देखकर मिट्ठू बोल पड़ा. एक बार फिर पीहू की आंखें मिलिंद से टकरा गई. मिलिंद बच्चे की बेबाक़ी से झेंप गया. "चलो मिट्ठू अंदर चलने का टाइम हो गया." वह मिट्ठू को लेकर बढ़ा, तो पीहू ने देखा कुहू और प्रखर भी वापस आ गए थे. "आओ अब अंदर चलते हैं पीहू." कुहू ने जान-बूझकर भाभी कहना छोड़ दिया था कि वह बार-बार उसे भाई की याद नहीं दिलाना चाहती. प्लेन के अंदर आते ही प्रखर और कुहू को साथ की सीटें मिल गई थी और पीहू को तीन में विंडोवाली. पर उस सीट पर तो जनाब मिट्ठूजी विराजमान थे. मिलिंद उसे बीच में खिसकने की ज़िद कर रहा था. "आंटी प्लीज़, आप साइडवाली सीट पर चले जाओ ना, मुझे विंडो भी चाहिए और पापा भी..." "नो प्रॉब्लम." कहकर पीहू मुस्कुराई. मिलिंद के पास बीच में बैठने के अलावा कोई चारा न था. यह भी पढ़ें: कोरोना काल के लॉकडाउन के दौरान बच्चों का ध्यान कैसे रखें? (How You Can Take Care Of Children During Lockdown) "सॉरी" उसने बच्चे की ज़िद के लिए सॉरी बोला और बीच में बैठ गया. पीहू साइड में बैठ गई. "पीहू मैं उधर आ जाता हूं, तुम कुहू के पास आ जाओ." प्रखर ने इशारा करते हुए धीमे से कहा. "नो नो.. मैं ठीक हूं. एंजॉय योर जर्नी... कुहू को बड़ी मुश्किल से आपका साथ मिलता है." पीहू ने मुस्कुराते हुए कहा। 'पर मुझे तो अब प्रसून का साथ मुश्किल से भी नहीं मिल सकता' वह वीरान आंखों से खिड़की के बाहर देखने लगी. जाने क्यों मिलिन्द को भी अपनी पत्नी मिताली का साथ याद हो आया. आज से 6 साल साल पहले मिट्ठू के जन्म के एक साल बाद ही उसे छोड़कर दुनिया से चली गई. दोनों ने साथ-साथ बीएससी किया था, फिर एमबीए और फिर साथ ही एक प्राइवेट सेक्टर में नौकरी शुरू की. लव मैरिज थी उनकी, पर मैरिज के बाद बस सालभर ही तो साथ रहा. वह हमेशा के लिए दूर चली गई. अपने नन्हे मिट्ठू को भी छोड़कर. "ओह नहीं..." उसके मुंह से निकल गया था. "कुछ कहा आपने..." "ऊं.. नहीं तो..." वह चौंका था. *एक्सक्यूज़ मी मैडम, आपके बेटे का खिलौना नीचे गिरा है." दिखाते हुए एयरहोस्टेस मुस्कुराकर आगे बढ़ गई थी. पीहू और मिलिन्द एक साथ झुके, तो दोनों के सिर टकरा गए. "साॅरी" दोनों के मुंह से एक साथ निकला था. पीहू ने खिलौना उठाकर मिट्ठू को दे दिया... अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... डाॅ. नीरजा श्रीवास्तव 'नीरू' अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIES
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