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कहानी- उनसठ बरस का कुंवारा बसंत…1 (Story Series- Unasath Baras Ka Kunwara Basant…1)

सामनेवाले सोफे पर बैठी मीरा थोड़ी असहज थी. श्रीनाथजी से कोई आत्मीय परिचय नहीं था उसका. सीढ़ियों पर अथवा परिसर में नमस्कार का आदान-प्रदान भर हुआ था. उसने तो यूं ही चाय का पूछ लिया. अब मीरा क्या बातें करें उनसे कि तभी श्रीनाथजी ने स्वयं ही उसे ऊहापोहवाली असहज स्थिति से उबार लिया.

      टैक्सी से उतरकर मीरा ने सामान के थैले बाहर निकाले और उसे किराया दिया. जब उसने गेट की तरफ़ देखा, तो गार्ड नदारद था. 'ना जाने कहां चला गया.' दो मिनट मीरा ने राह देखी, फिर थैले उठाकर बिल्डिंग की तरफ़ चल दी. आज परिसर में भी कोई नहीं था. लिफ्ट तक पहुंची, तो देखा वह बंद थी. "उफ़्फ़! अब इसे क्या हुआ." मीरा खीज गई. अब यह दो भारी थैले लेकर दो मंज़िल चढ़े तो कैसे. दो घंटे से घर से निकली थी, तो प्यास भी लग आई और चाय की तलब भी. गहरी सांस लेकर मीरा ने हिम्मत जुटाई और थैले उठाकर सीढ़ियां चढ़ने लगी. जैसे-तैसे सात-आठ सीढ़ियां चढ़ी होगी कि सांस फूल गई और दोनों थैले रखकर वह खड़ी हो गई. हालांकि वह कम-से-कम सामान ही लेती है, जो बहुत ज़रूरी हो, तब भी चाहे व्यक्ति अकेला ही क्यों ना हो गृहस्थी में क्या कुछ नहीं लगता. अभी वह सोच ही रही थी कुछ सीढ़ियां और चढ़ने की कि तभी अचानक पीछे से कोई तेजी से आया और "लाइए मैं ले चलता हूं." कहकर इससे पहले कि मीरा कुछ समझ पाती दोनों थैले उठाकर सीढ़ियां चढ़ने लगा. मीरा ने देखा वह श्रीनाथजी थे, जो चौथी मंज़िल पर रहते थे. "अरे एक थैला तो मुझे दे दीजिए." पीछे से सीढ़ियां चढ़ती मीरा ने संकोच से कहा. "मुझे आदत है आप ज़रा भी संकोच ना करिए." और श्रीनाथजी ने दो मंज़िल ऊपर मीरा के फ्लैट के सामने दोनों थैले रख दिए. तब तक मीरा भी पहुंच गई. "बहुत-बहुत धन्यवाद आपका. लिफ्ट भी ख़राब थी. मेरी तो हालत ही ख़राब हो गई. आप ना आते तो..." मीरा ने आभार प्रकट किया. यह भी पढ़ें: नई पीढ़ी को लेकर बुज़ुर्गों की सोच (The Perception Of Elderly People About The Contemporary Generation) "इसमें धन्यवाद की क्या बात है, यह तो मेरा कर्तव्य है." श्रीनाथजी ने विनम्रता से कहा. "आइए ना एक कप चाय पीते जाइए." मीरा ने शिष्टाचारवश कहा. क्षण भर सोचने के बाद वे सहर्ष तैयार हो गए और पुनः थैले उठा लिए. मीरा ने ताला खोला और अंदर आ गई. श्रीनाथजी ने थैले लाकर अंदर डाइनिंग टेबल पर रख दिए. मीरा उन्हें बैठने का कहकर चाय बनाने रसोईघर में चली गई. दो कप चाय और एक प्लेट में कुछ नमकीन तथा बिस्किट लेकर वह ड्राॅइंगरूम में आई, तो देखा श्रीनाथजी एक पुस्तक पढ़ने में मगन थे. मीरा की आहट पर उन्होंने सिर उठाया और मुस्कुराकर ट्रे से चाय का एक कप उठा लिया. सामने वाले सोफे पर बैठी मीरा थोड़ी असहज थी. श्रीनाथजी से कोई आत्मीय परिचय नहीं था उसका. सीढ़ियों पर अथवा परिसर में नमस्कार का आदान-प्रदान भर हुआ था. उसने तो यूं ही चाय का पूछ लिया. अब मीरा क्या बातें करें उनसे कि तभी श्रीनाथजी ने स्वयं ही उसे ऊहापोहवाली असहज स्थिति से उबार लिया. "आपको भी पढ़ने का ख़ासा शौक लगता है. बहुत अच्छा कलेक्शन है." श्रीनाथजी ने सामने शेल्फ पर करीने से रखी पुस्तकों को देखते हुए कहा. "हां बचपन से ही है. आपको भी पुस्तकें पढ़ना पसंद है क्या?" मीरा ने पूछा. अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें... Dr. Vinita Rahurikar डॉ. विनीता राहुरीकर     अधिक शॉर्ट स्टोरीज के लिए यहाँ क्लिक करें – SHORT STORIE

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