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कहानी- याद न जाए… 1 (Story Series- Yaad Na Jaye… 1)

धीरे-धीरे दोनों की अंतरंगता इतनी बढ़ गई कि यह दोस्ती, प्यार में बदल गई. अपने प्यार की दुनिया में ऊंची उड़ान भरते नवीन को नलिनी के सिवा कुछ नहीं सूझता. दिनभर लाइब्रेरी की खाक छानकर नोट्स बनाता, पर पढ़ती नलिनी. वह अपनी पढ़ाई से ज़्यादा नलिनी की पढ़ाई के लिए परेशान रहता. मां की सशंकित दृष्टि ने जल्द ही उसके इस आत्मघाती प्यार का पता लगा लिया था. तब मां ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की थी.

      समय की अपनी ही गति होती है, जिसे थामना किसी के वश में नहीं होता. अपने कुछ अनमोल पलों को सहेज कर रखने के लिए चाहे हम कितनी ही कोशिशें क्यों न कर लें, पर हम कुछ भी सहेज नहीं पाते. सुख-दुख सब को समेटे समय भागते ही रहता है. हां, कुछ निशान अवश्य दिल पर रह जातें हैं, जो बरसों हमें उन पलों की याद दिलाते रहतें हैं. जब से नवीन की शादी हुई थी, भले ही उसकी दुनिया अपनी पत्नी सरला के आसपास सिमट कर रह गई थी, पर दिल पर छपे नलिनी के प्यार के निशान कभी भी अतीत को गौण नहीे होने देता. उसे याद दिलाते रहता कि जैसा वह चाहा ज़िंदगी में वैसा कुछ भी नहीं हुआ. काश! वह उन प्यार के पलों को पंक्षी की तरह पिंजरे में क़ैद कर सकता. कभी नलिनी से वह कितना प्यार करता था. वह उसकी ज़िंदगी के शायद सब से अच्छे दिन थे. नलिनी उसे काॅलेज में मिली थी. दोनो बाॅटनी से बीएएससी कर रहे थे. नलिनी के पिताजी, एक पुलिस अधिकारी थे, जो जमशेदपुर से ट्रांसफर होकर पटना आए थे. तीखे नैन-नक्श और लंबे कद-काठी की नलिनी जितनी सुंदर थी, उतने ही आत्मविश्वास से भरी हुई. जमशेदपुर के एक प्रतिष्ठित काॅन्वेंट से पढ़ी नलिनी अपने तेज-तर्रार और हंसमुख स्वभाव के कारण जल्द ही काॅलेज में काफ़ी लोकप्रिय हो गई थी. जब कभी वह काॅलेज के किसी फंक्शन में मंच संभालती, उसके बोलने की अद्भुत क्षमता स्वभाव की उन्मुक्तता को देख काॅलेज की लड़कियां, उससे इतनी प्रभावित थी कि उसे अपना रोल माॅडल मानने लगी थीं. क्लास के सभी लड़के उस पर मरते, लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती. पर आश्चर्य, उसने दोस्ती का हाथ बढ़ाया भी तो सीधे-सादे, सरल और साधारण शक्लो सूरतवाले नवीन की तरफ़. नवीन एक मेधावी छात्र ज़रूर था, पर जितना सिंपल स्वभाव का वह ख़ुद था, उतने ही सिंपल उसके कपड़े भी होते, जोे नलिनी के मॅार्डन कपड़ों के सामने कही नहीं टिकते।श. जहां काॅलेज की दूसरी लड़कियां, उसे पोंगा पंडित बुलाती थीं. यह भी पढ़ें: रिश्तों के डूज़ एंड डोंट्स: क्या करें, क्या न करें ताकि रिश्ता बना रहे… (Relationship Ideas: Do’s & Don’ts For A Happy-Successful Marriage) इसलिए नलिनी की दोस्ती नवीन के लिए फ़क्र की बात थी. धीरे-धीरे दोनों की अंतरंगता इतनी बढ़ गई कि यह दोस्ती, प्यार में बदल गई. अपने प्यार की दुनिया में ऊंची उड़ान भरते नवीन को नलिनी के सिवा कुछ नहीं सूझता. दिनभर लाइब्रेरी की खाक छानकर नोट्स बनाता, पर पढ़ती नलिनी. वह अपनी पढ़ाई से ज़्यादा नलिनी की पढ़ाई के लिए परेशान रहता. मां की सशंकित दृष्टि ने जल्द ही उसके इस आत्मघाती प्यार का पता लगा लिया था. तब मां ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की थी. ‘‘क्यों रे नवीन, प्यार में पड़ते ही तुम लड़कों के अक्ल क्या घास चरने चली जाती है? अपने विषय में सोचना ही छोड़ देते हो. इन प्यार-व्यार का चक्कर छोड़ो और अपने करियर पर ध्यान दो, वरना बाद में यह लड़की भी तुम्हे घास नहीं डालेगी.’’ लेकिन अब मां की बातें उसकी समझ में कहां आती थी. जो मम्मी कभी उसकी सबसे अच्छी दोस्त हुआ करती थी, उसी मम्मी के बोल अब उसे नीम चढे करेले से भी कड़वे लगते. वह उसके प्यार की सबसे बड़ी दुश्मन नज़र आती और बहन सबसे बड़ी जासूस. परिणाम यह हुआ कि फाइनल एक्जाम में हमेशा टाॅपर रहनेवाले नवीन किसी तरह फर्स्ट क्लास में पास हो पाया. जबकी नलिनी के नंबर काफ़ी अच्छे थे. नवीन के नंबर भले ही पहले की अपेक्षा काफ़ी कम थे, पर प्यार की पिंगे इतनी बढ़ा लिया था कि उसके दोस्त सब उसे मजनूं कहते.

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