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हॉकी टीम की कैप्टन रानी रामपाल यूं ही नहीं पहुंची इस मुकाम पर, स्ट्रगल की कहानी सुन आंखों में आंसू आ जाएंगे आपके (How The Captain Of Hockey Team, Rani Rampal Reached This Point, You Will Have Tears In Your Eyes After Hearing The Story Of The Struggle)

"हॉकी फील्ड में हर रोज 500 ml दूध ले जाना कंपलसरी था, लेकिन मेरे मां-बाप सिर्फ 200 ml ही अफोर्ड कर सकते थे. ऐसे में बिनी किसी को बताए मैं उसमें पानी मिला लिया करती थी, जिससे की मेरी प्रैक्टिस रुके नहीं. मेरे घर में समय देखने के लिए घड़ी नहीं थी, सुबह टाइम पर ट्रेनिंग के लिए जाना होता था, तो मां सवेरे उठकर तारे देखती थी, जिससे कि मैं टाइम पर ट्रेनिंग के पहुंच सकुं" रानी रामपाल (Rani Rampal) की बातें उनके संघर्ष को साफ तौर पर बयां करते हैं. उनके जगह पर कोई दूसरा होता तो शायद ये सपना देखने की भी नहीं सोचता, लेकिन रानी ने ना सिर्फ सपने देखे, बल्कि उसे हर हाल में पूरा भी किया. आइये जानते हैं रानी रामपाल (Rani Rampal) के जुनूनी सफर के संघर्ष की सच्ची दास्तां.

Rani Rampal
फोटो सौजन्य - इंस्टाग्राम

रानी रामपाल (Rani Rampal) आज के समय में कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं. आज वो टोक्यो ओलंपिक्स में भारतीय महिला हॉकी टीम की कैप्टन हैं. रानी ने वर्ल्ड 'गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर' पुरस्कार अपने नाम किया है. महिला हॉकी टीम की क्वीन रानी ने अपने लीडरशिप का लोहा मनवाया है. रानी ने न सिर्फ अपने सपनों के रास्ते में आने वाली हर मुश्किल को चैलेंज समझकर एक्सेप्ट किया, बल्कि उस पर फतह भी हासिल की. लेकिन कम लोग ही इस बात को जानते हैं, कि रानी का इस मंजिल तक पहुंचने का सफर कितना दर्दनाक रहा है. 

Rani Rampal
फोटो सौजन्य - इंस्टाग्राम

रानी जब महज 6 साल की थीं, तभी उन्होंने हॉकी खेलने की शुरुआत कर दी थी. बेहद गरीब परिवार में पैदा हुई रानी के पिता रेहड़ी लगाते थे, उनके दिनभर की कमाई मुश्किल से 80 रुपए होती थी. रानी की मां दूसरों के घरों में काम किया करती थी. गरीबी का आलम ये था, कि उनके घर रौशनी के लिए लाइट नहीं रहती थी. बरसात के दिनों में बाढ़ की वजह से उनका घर बह जाया करता था. घर में समय देखने के लिए घड़ी खरीदने तक के पैसे नहीं थे उनके पास. गरीबी के दलदल से रानी अपने परिवार को बाहर निकालना चाहती थीं, लेकिन रास्ता दिख नहीं रहा था.

Rani Rampal
फोटो सौजन्य - इंस्टाग्राम

 रानी के घर के पास ही हॉकी अकादमी हुआ करता था, जहां वो हर रोज प्लेयर्स को प्रैक्टिस करते देखती थी और खुद भी वहां पहुंचने के सपने संजोती थी. एक दिन वो काफी  हिम्मत जुटा कर सीधे कोच के पास जा पहुंची. लेकिन रानी को कोच ने ये कहकर रिजेक्ट कर दिया कि वो कुपोषित है. कोच को लगा कि रानी में खेलने का स्टैमिना नहीं है. रानी को उसी अकादमी में एक फेकी हुई हॉकी स्टिक मिली, जो कि टूटी हुई थी. रानी ने उसे उठा लिया और उसे किसी तरह जोड़कर उसी से प्रैक्टिस करने की शुरुआत कर दी. 

Rani Rampal
फोटो सौजन्य - इंस्टाग्राम

रानी के जिद और जुनून के आगे कोच ने अपने घुटने टेक दिए और रानी को वो अपनी निगरानी में प्रैक्टिस करवाने लगे. लेकिन रानी के सामने परेशानियों का सबब इतना ही नहीं था. वो जिस माहौल में पल बढ़ रही थी, वहां महिलाओं को घर के अलावा अन्य काम करने की इजाजत नहीं थी. पहले तो उसके पापा ने भी हॉकी खेलने से उसे मना कर दिया ये कहकर कि वो घर के कामों के अलावा दूसरा कुछ नहीं कर सकती. यहां तक कि रिश्तेदारों ने भी कहा कि वो हॉकी खेलकर क्या करेगी? लेकिन जब रानी ने इस खेल में खुद को समर्पित किया और आगे बढ़कर खेलने लगी तो हर किसी ने उसे हौसला दिया.

Rani Rampal
फोटो सौजन्य - इंस्टाग्राम

रानी को मदद का हाथ सबसे पहले उसके कोच ने बढ़ाया. उन्होंने ना सिर्फ रानी को हॉकी किट खरीद कर दिया, बल्कि उसको अपने घर में रख कर उसके खान-पान का भी पूरा ध्यान रखा. रानी ने भी इतने बड़े मौके को गवाया नहीं. उसने सफलता हासिल करने में जी जान लगा दी. 

Rani Rampal
फोटो सौजन्य - इंस्टाग्राम

रानी का सबसे पहला सबसे बड़ा सपना था, देश के लिए मेडल जीतना और दूसरा था अपने परिवार के लिए घर बनवाना. रानी ने अपने इस सपने को साल 2017 में पूरा किया. रानी आज भी अपने उन दिनों को भूल नहीं पाई हैं, जब उनके कच्चे घर में पानी भर जाया करता था और वो अपने भाइयों के साथ बारिश रुकने की प्रार्थना किया करती थीं.

Rani Rampal
फोटो सौजन्य - इंस्टाग्राम

जब रानी ने देश को गौरवान्वित किया और अपने सपनों को पूरा करने में जुट गईं, आज जब हर ओर रानी की सराहना हो रही है, तब उनके हर रिश्तेदार से लेकर समाज के दूसरे लोग भी अपने बच्चों को रानी जैसा बनने की प्रेरणा देता है. रानी के संघर्ष की कहानी इस कहावत को साबित करती है, कि होनहार बिरवान के होत चिकने पात. आपको रानी की इस सच्ची कहानी से क्या सीख मिलती है, हमें कमेंट कर जरुर बताएं. 

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