छोटी उम्र में बच्चों की परवरिश में थोड़ी सी भी लापरवाही उन्हें लापरवाह बना सकती है. इसलिए ज़रूरी है कि छोटी उम्र से ही बच्चों को ज़िम्मेदारी का पाठ सिखाएं. कैसे? आइए जानते हैं.  
“हे भगवान इस लड़के का मैं क्या करूं? कोई भी चीज़ जगह पर नहीं रखता. स्कूल से आते ही खेलने निकल जाता है. न तो खाने का ख़्याल है और न ही पढ़ने का. कब सुधरेगा ये?” 8 साल की राज की मां की ही तरह अगर आप भी अपने लाड़ले/लाड़ली के इस तरह के व्यवहार से परेशान हैं तो संभल जाइए, क्योंकि ये आदतें आपके बच्चे को गैर ज़िम्मेदार बना सकती है. छोटी उम्र में बच्चों का ज़िद करना लाज़मी है. कुछ हद तक उनकी लापरवाही भी क्षम्य है, लेकिन उम्र के बढ़ने के साथ अगर आपका बच्चा इन आदतों को नहीं बदल पाता, तो फिर आप संभल जाइए, क्योंकि यही व्यवहार आगे चलकर आपके बच्चे को केयरलेस बनाता है. कैसे जानें कि आपका बच्चा लापरवाह है? कैसे सिखाएं अपने बच्चों को ज़िम्मेदारी का पाठ? आइए जानते हैं.

क्या है कारण?
सबसे पहले तो ये जानना ज़रूरी है कि आपका बच्चा केयरलेस क्यों है और क्यों वो ज़िम्मेदार नहीं बन पा रहा है.
- कई बार पैरेंट्स का इग्नोरेंस ही बच्चों को केयरलेस बना देता है.
- बहुत ज़्यादा लाड़-प्यार मिलने पर भी बच्चा केयरलेस हो जाता है.
- कई बार बच्चा छोटी-छोटी बातों को ध्यान में नहीं रख पाता. वो चीज़ों को भूल जाता है और पैरेंट्स इसे उसकी लापरवाही मान लेते हैं. उदाहरण के लिए स्कूल से आने के तुरंत बाद बच्चे का होमवर्क न करना, आपके द्वारा किसी काम को समय से न कर पाना आदि.
- अपने दोस्तों से भी बच्चा बहुत कुछ सीखता है. ऐसे में कई बार उसकी लापरवाही का कारण उसके दोस्त भी होते हैं.
- लापरवाही की एक वजह बच्चों में तनाव का होना भी है. किसी बात से परेशान होने पर भी बच्चा कुछ करने में दिलचस्पी नहीं दिखाता.
कैसे जानें कि आपका बच्चा लापरवाह है?
- अगर आपका बच्चा आपकी हर बात को अनसुना कर रहा है या फिर हर बात का जवाब दे रहा है, तो समझ जाइए कि वो केयरलेस हो रहा है.
- किसी बात के पूछने पर चिढ़कर बोलना.
- आपकी हर बात का बुरा मानना.
- आपके बनाए हर नियम को तोड़ना.
- दोस्तों के सामने आपकी बातों को अनसुना करना.
- बात-बात पर ख़ुद को नुकसान पहुंचाने की बात करना.
- अपनी हर बात मनवाने की ज़िद करना और ख़ुद को ही सही समझना.
- घर देरी से आने पर जब आपके पूछने पर सही जवाब न दें.
- एक ही ग़लती बार-बार दोहराना.
- ङ्गअब मैं बड़ा हो गया हूं.फ बार-बार इस तरह की बातें करना.
क्या करें?

सफाई से करें शुरुआत
बच्चों में छोटी उम्र से ही सफाई की आदत डालें. उन्हें समझाएं कि स्वच्छता कितनी ज़रूरी है. उन्हें पर्सनल हाइजीन के बारे में बताएं और बचपन में ही बेसिक हाइजीन की ट्रेनिंग दें. इससे बड़े होने पर वो सफाई को अपनी ज़िम्मेदारी समझने लगेंगे.
नो लेक्चर प्लीज़
हर बात पर टोकना बच्चों को चिड़चिड़ा बना देता है. बच्चों की ज़रा सी ग़लती पर पैरेंट्स उन्हें नॉन-स्टॉप उपदेश देना शुरू कर देते हैं. आपकी इस आदत से बच्चा कुछ सीखने की बजाय उसे अनसुना करना शुरू कर देता है. उम्र के शुरुआती दौर से ही बच्चों को छोटी-छोटी बातों, जैसे- चॉकलेट खाकर उसका रैपर डस्टबिन में डालना, अपने खिलौनों को समेटना आदि सिखाएं. उसे सिखाएं कि जिसे चीज़ को जहां से लेता है, उसे इस्तेमाल के बदाद वहीं वापस रख दे. जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसे उसका छोटा-मोटा काम करना सिखाएं. इस तरह से बच्चा ख़ुद-ब-ख़ुद अपने काम करना सीख जाता है.
सुबह खुद उठने की आदत डालें
बच्चों को बार-बार न उठाएं. उन्हें एक आवाज़ दें और इसके बाद खुद उठने को कहें. इससे वह अपने कामों के प्रति और ज़िम्मेदार बनेगा.
बच्चों के सारे काम खुद ही न करें
बच्चों को उनके कुछ काम उन्हें ही करने दें. उन पर प्यार लुटाने के चक्कर में आप खुद ही उनके सारे काम न करने लग जाएं. उन्हें अपना स्कूल बैग खुद सेट करने दें. सुबह के लिए अपनी यूनिफॉर्म वे खुद ही निकालें. इसी तरह खाने के बाद अपनी प्लेट सिंक में डालना, अपने सामान खुद समेटना जैसी आदतें उन्हें बचपन से ही ज़िम्मेदार बनाएंगी.
अपनी चीज़ों का ध्यान खुद रहना सिखाएं
बच्चों को ये आदत ज़रूर सिखाएं कि वो जहां कहीं भी हों, उन्हें अपनी चीज़ों का ध्यान रखने आना चाहिए. उनके कपड़े, खिलौने, किताबें आद को संभालने की ज़िम्मेदारी उनकी खुद की होनी चाहिए. ऐसा करने से वे ज़िम्मेदार बनेंगे.
नज़रअंदाज़ ना करें
कानपुर की मिसेज़ शालिनी से जब मैंने उनके 10 साल के बेटे कार्तिक की लापरवाही के बारे में बताया, तो उनकी प्रतिक्रिया सुनकर मैं दंग रह गई. शालिनी ने कहा, “बच्चा है. इस उम्र में लापरवाही नहीं करेगा, तो कब करेगा? बड़ा होकर अपने आप सुधर जाएगा.” अगर आप भी शालिनी की ही तरह अपने बच्चे की छोटी-मोटी लापरवाही को नज़रअंदाज़ कर रही हैं, तो संभल जाइए. आगे चलकर यही लापरवाही आपको बहुत महंगी पड़ सकती है.
अचानक मना न करें
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, ख़ुद को समझदार समझने लगता है. ऐसे में आपके बार-बार किसी बात पर मना करने पर उसे बुरा लगता है. उदाहरण के लिए अगर आपका लाड़ला/लाड़ली मोबाइल पर गेम खेल रहे हैं और आप उसे तुरंत बंद करने को कहते हैं, तो उन्हें बुरा लगता है और वो चिढ़ जाते हैैं. इसलिए जब भी आप उन्हें किसी बात के लिए मना करें, तो थोड़ा समय ज़रूर दें. जैसे- रोहन अब बस बेटा अगले 5 मिनट में आप मोबाइल छोड़कर पढ़ने बैठ जाएंगे या फिर अगले दिन बच्चे को उसी बात के लिए प्यार से समझाएं.
ख़ुद में सुधार
कई बार बच्चे जिस तरह से आपको देखते हैं वैसा ही व्यवहार करते हैं, जैसे- कई घरों में घर के सभी काम के अलावा पति का सारा काम भी पत्नी को करना पड़ता है. ऐसे में जब आप अपने बच्चे को उसका काम ख़ुद करना सिखाते हैं, तो वो ये कहते हुए इंकार कर देता है कि पापा भी तो अपनी चद्दर तह नहीं करते या फिर खाने की प्लेट किचन में नहीं रखते. इसलिए पति-पत्नी दोनों को बड़ी ही समझदारी से बच्चे के सामने पेश आना चाहिए और उसे कुछ सिखाने या कहने से पहले ख़ुद में सुधार करना चाहिए.
कुछ भी न थोपें
बच्चे को कुछ नया सिखाने के लिए बहुत ज़रूरी है कि आप संयम से काम लें. दूसरों के कहने पर या फिर अपनी मर्ज़ी चलाते हुए कुछ भी उन पर थोपने से बचें. पैरेंट्स होने के नाते आपको बड़ी ही समझदारी से काम लेना चाहिए. आपके एक ग़लत क़दम से आपका बच्चा बिगड़ सकता है. इसलिए जितना ज़रूरी हो, उतना ही उनको बोलें.
बाउंड्री लाइन सेट करें
बढ़ती उम्र के साथ बच्चा धीरे-धीरे पैरेंट्स की हर बात का जवाब देने लगता है. ऐसे में उससे हर बात पर बहस करने की बजाय शांत रहें. भागलपुर के 35 साल के आनंद का कहना है, “मेरी 12 साल की बेटी है. अब ज़माना इतना बदल चुका है कि कई बार चाहकर भी मैं उसे किसी चीज़ के लिए मना नहीं कर पाता. जैसे-जैसे वो बड़ी हो रही है, मेरी ज़िम्मेदारी बढ़ती जा रही है. कई बार ऐसा होता है कि वो किसी बात को सुनने और मानने की बजाय मुझसे बहस करने लगती है. ऐसे में मैं ख़ुद ही शांत हो जाता हूं. इस तरह से एक प्वाइंट पर वो भी शांत हो जाती है और दोबारा उस बात पर कभी बहस नहीं करती. मेरा मानना है कि बच्चों से बहस करने की बजाय हमें अपने और उनके बीच एक बाउंड्री लाइन तय करनी चाहिए.”
