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ससुर दामाद का भी होता है ख़ूबसूरत रिश्ता… (When Father-in-law And Son-in-law Share Wonderful Times Together…)

Father-in-law And Son-in-law

जी हां सही पढ़ा आपने अक्सर सभी रिश्तों की बात की जाती है, जैसे- माता-पिता, भाई-बहन, बेटी-बहू आदि. लेकिन ससुर-दामाद का रिश्ता ऐसा है, जिस पर बहुत कम बातें होती हैं. शायद इसकी अहमियत को समझ नहीं पाए हम लोग. दरअसल, ससुर-दामाद का भी उतना ही ख़ूबसूरत रिश्ता होता है, जितना पिता-पुत्र का होता है. बस, ज़रूरत है इसे समझने और जानने की.
"पापा को कहो कि वे हमारे साथ रहें. उनकी उदासी, दुख मुझसे देखा नहीं जाता…" जब अमित ने रोमा को ऐसा कहा, तो आंखें भर आई रोमा की. उसकी मां का हाल ही में देहांत हुआ था. रोमा अपने माता-पिता की इकलौती बेटी है. उसे अपने पैरेंट्स की हमेशा चिंता लगी रहती है. यह रोमा की ख़ुशक़िस्मती थी कि ससुराल अच्छा मिला था और उसके पति भी उतने ही समझदार और सुलझे विचारोंवाले थे. अमित की भी अपने इन लाॅ से बहुत मधुर संबंध है. सास के जाने के बाद ससुरजी की उदासी और एकाकीपन उनसे देखा नहीं गया.. और उन्होंने रोमा से पापा को साथ रहने की बात कही.
कहीं ना कहीं वर्षों से चली आ रही परंपराओं के वशीभूत ससुर व दामाद वो प्यार और सहजता नहीं दिखा पाते, जो बेटे-बेटी, सास-बहू या अन्य रिश्तों में देखने को मिलती है. अमूनन लड़कों की बचपन से ही कुछ इस तरह परवरिश की जाती है कि बेटे, भाई ही नहीं, बल्कि दामाद के रूप में भी वे विशेष हैं. उस पर समाज में दामाद की छवि को भी महिमामंडित किया जाता रहा है. इससे दामाद को लगता है कि वो बेहद महत्वपूर्ण हस्ती है. दामाद यानी ख़ास, ससुराल पक्ष के लिए सर्वेसर्वा.
लेकिन वक़्त बदला, हालात बदले, साथ ही लोगों की सोच में भी परिवर्तन आया. अब हर रिश्ते में एक नया एहसास और सुखद बदलाव होने लगा है. और ससुर-दामाद के रिश्ते में भी नई ख़ूबसूरती दिखने लगी है. अब दोनों के बीच रिश्तेदारी कम दोस्ती ने अधिक जगह बना ली है. ससुर पिता की तरह नहीं एक दोस्त की तरह दामाद से मिलते हैं. बातचीत करते हैं. कई बार तो यह भी देखा गया है कि ससुर-दामाद कितने ही राज़ की बातें भी आपस में शेयर करते हैं…
कई मौक़ों पर इस रिश्ते में अधिक गहराई और अपनापन भी विकसित हुआ है. अब दामाद पहले की तरह ससुर के साथ चुपचाप बैठे नहीं रहते. वे खुलकर अपनी बात रखते हैं. ससुराल में भी सास और ससुर उनकी बातों, भावनाओं को समझते हैं. इसीलिए तो ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां पर बेटियां इकलौती होती हैं, शादी के बाद उनकी भी इच्छा रहती है कि वह भी अपने माता-पिता की सेवा कर सके. ऐसे में जो दामाद समझदार होते हैं, बहुत मदद करते हैं. कई बार तो यह भी देखने मिलता है कि दामाद ने अपने अकेले रह रहे ससुर को अपने साथ ही रहने की गुज़ारिश की. क्योंकि जहां इकलौती बेटियां होती हैं और माता-पिता उम्र के तीसरे पड़ाव पर संघर्ष कर रहे होते हैं या कोई बीमारी या तकलीफ़ या मां का देहांत और तन्हा पिता के लिए बेटी का दर्द बढ़ता जाता हैं. ऐसे में समझदार दामाद आगे बढ़ ससुर का हमदर्द बन रहे हैं. उनके जीवन में ख़ुशियां भरने की कोशिश करते हैं. कई मौक़े ऐसे आते हैं कि कहीं जाना हुआ, विदेश में घूमना-फिरना, तो अब परिवार के साथ ससुरालवालों भी शामिल हो जाते हैं. इन यादगार लम्हों में ससुर-दामाद ख़ुशी के कई अनकहे एहसास को संजोते हैं.

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नहीं रही संकोच की दीवार…
ऐसा भी वक़्त था जब दामाद और ससुर में एक संकोच रहता था. लेकिन लोगों की सोच और व्यवहार में बदलाव आ रहे हैं. अब ऐसी बात नहीं है. आज इस रिश्ते में संकोच और दूरी की जगह ट्रांसपेरेंसी आ गई है.. दोस्ताना व्यवहार पैर पसारने लगा है. इसके कई उदाहरण देखने को मिलते है.
फिल्मी सितारों में भी ससुर-दामाद के मधुर एहसास से भरे कई बेहतरीन उदाहरण देखने को मिलते हैं. इसमें सबसे ऊपर था ऋषि कपूर का अपनी बेटी रिद्धिमा कपूर साहनी के पति भारत साहनी से ससुर-दामाद का प्यारभरा रिश्ता. दोनों की बॉन्डिंग इतनी ख़ूबसूरत थी कि जब ऋषि कपूर का देहांत हुआ था, तब उनके दामाद ने कई इमोशनल नोट सोशल मीडिया पर शेयर किए थे. तब लोगों को पता चला था कि दोनों ससुर-दामाद से बढ़कर एक अच्छे दोस्त थे. उन भावपूर्ण लम्हों को याद करते हुए ऋषि के दामाद की आंखें भर आई थीं. इसी तरह फिल्म इंडस्ट्री के कई ससुर-दामाद की मशहूर जोड़िया रही हैं. रजनीकांत के दामाद धनुष की अपने फादर इन लॉ से बड़ी लविंग बॉन्डिंग है. अभिनेता शरमन जोशी भी अपने ससुर प्रेम चोपड़ा के लाडले हैं.
आज की पीढ़ी अपने पिता के समकक्ष अपने ससुर को भी रखती है. वह उन्हें उतने ही प्यार-सम्मान देते हैं, जो अपने पिता को देते हैं, पर इन दिनों सम्मान के अलावा उनके प्रति एक दोस्ताना व्यवहार भी ख़ूब विकसित होता जा रहा है. ऐसे कई उदाहरण देखने मिलते हैं जैसे कि टंडनजी की फैमिली में हुआ. जब उनके दामाद को घर ख़रीदने के लिए पैसों की ज़रूरत थी, तब स्वाभिमानी दामाद को ससुर ने मनाते हुए ना केवल आर्थिक मदद की, बल्कि उसे एहसास कराया कि यदि उनके ख़ुद के बेटे को सहायता की आवश्यकता होती तो क्या वे नहीं करते. वे उन्हें अपना ससुर नहीं बल्कि दोस्त समझे, जिससे वो अपनी हर बात, परेशानी खुलकर कह सकते हैं.

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ऐसा है अब ये रिश्ता…
अब दामाद वह होता है, जो ससुर से संकोच व हिचकिचाहट नहीं रखता.
वो अपनी हर बात खुलकर कहता है उनसे.
दोस्ताना व्यवहार रखता है.
ससुर-दामाद अब काफ़ी सुलझे विचारों के हो गए हैं. दामाद अपने ससुर के दर्द को जानने लगा है कि उन्होंने अपनी बेटी की नहीं, बल्कि जिगर का टुकड़ा दिया है.
वो उनकी भावनाओं की कद्र करता है.
सुख में ही नहीं दुख में भी ससुर और ससुरालवालों का साथ देता है.
दामाद का प्यार भरा ख़ूबसूरत रिश्ता बन गया है ससुर से.
आज जहां दामाद ससुर के लिए बेटे का फर्ज़ अदा कर रहा है, वहीं ससुर भी उस पर अपना स्नेह और प्यार उड़ेल रहे हैं. साथ ही इस रिश्ते के प्रति लोगों का नज़रिया भी बदलने लगा है. अब वह पहले जैसी हिचक-दूरियां नहीं रही, सच बहुत ख़ूबसूरत है यह रिश्ता भी.

- ऊषा गुप्ता

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