जब सपनों को पंख लग जाते हैं, तो आसमान की ऊंचाई मायने नहीं रखती. कुछ दायरों को पार करना इतना सहज भी नहीं होता, लेकिन उनसे परे जाकर, जब सारे जहां को जीतने का जज़्बा दिल में घर कर जाता है, तो हर बंदिश को तोड़ना आसान लगने लगता है. कुछ ऐसी ही बंदिशों को तोड़कर दुनिया को अपने अस्तित्व का लोहा मनवाया है फोगट सिस्टर्स ने. महावीर सिंह फोगट ने अपनी बेटियों को दुनिया से लड़ने का हौसला दिया और उनकी बेटियों ने उनका सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. यही वजह है कि महावीरजी से प्रभावित होकर कुश्ती जैसे विषय पर दंगल फिल्म बन रही है.
पहलवानी एक ऐसा क्षेत्र है, जहां मर्दों का ही दख़ल माना जाता रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में गीता, बबीता, रितु, विनेश से लेकर साक्षी मलिक तक ने पहलवानी के जो दांव दिखाए हैं, उससे दुनिया स्तब्ध है. कुश्ती, पहलवानी, दंगल, महिलाओं का इसमें दख़ल... इन तमाम विषयों पर महावीर फोगट की बेटी रितु फोगट क्या कहती हैं, आइए जानते हैं-
आपके पिताजी पर फिल्म बन रही है, क्या ख़ास व अलग महसूस कर रही हैं? ज़ाहिर है कि अच्छा लग रहा है. हमारे पापा ने हमें बहुत हौसला दिया है. हमारे परिवार को कुश्ती को और ख़ासतौर से लड़कियों को इस क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए जो भी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, उनसे गर्व महसूस होता है. इसके अलावा इस फिल्म में बाप-बेटी के रिश्ते को जिस तरह से दर्शाया जाएगा, वो भी काबिले तारीफ़ है. इससे बेटियों को काफ़ी हौसला भी मिलेगा और हमारे समाज में बेटियों के प्रति जो भी नकारात्मक सोच है, उसमें ज़रूर बदलाव आएगा. हम जैसे स्पोर्ट्स पर्सन के लिए आख़िर दंगल यानी कुश्ती ही पहचान है.
एक लड़की होने के नाते कितना मुश्किल था कुश्ती जैसे प्रोफेशन को अपनाना? सच कहूूं तो मुझे इतनी मुश्किल नहीं हुई, क्योंकि हमारे पापा ने कोई मुश्किल आने ही नहीं दी. अगर समाज व परिवार के तानों की भी बात हो, तो उन्होंने सब कुछ ख़ुद सुना, ख़ुद झेला, ताकि हम पर कोई आंच न आए. सबसे वो ख़ुद लड़े. साथ में मेरी बड़ी बहनें भी थीं, तो उनका भी सपोर्ट था मुझे. अगर बात करें दंगल मूवी की, तो आमिर ख़ान को मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहते हैं, आपके परिवार के साथ उन्होंने किस तरह समय बिताया और उनका कमिटमेंट देखकर आपको कैसा लगा? उनसे पहली बार जब मुलाक़ात हुई, तो यह लगा ही नहीं कि हम इतने बड़े स्टार से मिल रहे हैं. बहुत ही सहज और सिंपल हैं. अपने काम के प्रति ग़ज़ब का समर्पण है उनमें. हालांकि हम तो ज़्यादा नहीं मिले उनसे, पापा के साथ ही अधिक बातचीत होती थी, लेकिन जितनी बार भी मिले, हमें उनकी सहजता ने बहुत प्रभावित किया, क्योंकि हमें वो बेहद कंफर्टेबल महसूस करवाते थे.रेसलिंग जैसे खेल को बतौर प्रोफेशन चुनना कितना टफ होता है और कितने अनुशासन व ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है? ट्रेनिंग व अनुशासन बहुत ही ज़रूरी है और सच कहूं, तो पापा बहुत ही स्ट्रिक्ट होते हैं ट्रेनिंग के टाइम पर. सुबह 3.30 बजे उठना, एक्सरसाइज़ और प्रैक्टिस करना इतना थका देता है कि कभी-कभी उठने की भी हिम्मत नहीं रहती. लेकिन यह ज़रूरी है, ताकि हमें अपना स्टैमिना पता रहे और हम उसे बढ़ा सकें.
डायट और फिटनेस के लिए क्या ख़ास करना पड़ता है? डायट तो नॉर्मल ही रहती है, जैसे- दूध, बादाम, रोटी... लेकिन टूर्नामेंट वगैरह से पहले थोड़ा कंट्रोल करना पड़ता है, जिसमें ऑयली, फैटी व स्वीट्स को अवॉइड करते हैं. अपनी हॉबीज़ के बारे में बताइए? मुझे तो कोई ख़ास शौक़ नहीं है, बस कुश्ती ही मेरा शौक़ भी है और जुनून भी. हां, खाली समय में पंजाबी गाने सुनती हूं या फिर कभी-कभार ताश भी खेल लेती हूं.उन लड़कियों से क्या कुछ कहना चाहेंगी, जो इस क्षेत्र में या अन्य खेलों में अपना भविष्य तलाशने की चाह रखती हैं? चाहे किसी भी क्षेत्र में हों या कोई भी हो, लगन व मेहनत का कोई पर्याय नहीं है. सबमें टैलेंट होता ही है, लेकिन उस टैलेंट को मंज़िल तभी मिलती है, जब आप मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य को पाने में जुटते हैं.
कोई सपना, जो रोज़ देखती हैं या कोई अधूरी ख़्वाहिश? एक ही ख़्वाहिश है- ओलिंपिक्स में गोल्ड! अन्य खेलों के मुकाबले आप रेसलिंग को कहां देखती हैं? यह सही है कि रेसलिंग को अब काफ़ी बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन यदि अन्य खेलों की तरह पहले से ही इसे थोड़ा और गंभीरता से लिया जाता, तो इसमें अपना करियर बनाने की चाह रखनेवाली लड़कियों को काफ़ी प्रोत्साहन मिलता. लेकिन देर आए, दुरुस्त आए.आपकी बहनें आपको किस तरह से इंस्पायर करती हैं? क्या आप सबके बीच आपस में कोई कॉम्पटीशन की भावना है या इतने सारे स्टार्स एक ही परिवार में हैं, तो अपनी अलग पहचान बनाना चुनौतीपूर्ण लगता है? जी नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. मेरे पापा और सिस्टर्स ने हमेशा मुझे सपोर्ट किया है, उन्हीं को देखकर सीखा है सब. हम सब एक दूसरे का सपोर्ट सिस्टम हैं, परिवार से ही तो हौसला मिलता है.
- गीता शर्मा