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आंखों की रोशनी से जुड़े 10 मिथक और उनकी सच्चाई (10 Common Myths About Eyes and Vision )
आंखें कुदरत का सबसे अनमोल और क़ीमती तोहफ़ा मानी जाती हैं इसलिए हम सभी इसकी देखभाल में किसी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहते, लेकिन ज़्यादा देखभाल के चक्कर में कई बार हम सुनी-सुनाई बातों में आकर जाने-अनजाने में अपनी आंखों के साथ खिलवा़ड करने लगते हैं. इसी समस्या के समाधान के लिए हम आपको आंखों की रौशनी से जुड़े कुछ प्रचलित मिथक और उनके पीछे की सच्चाई (Common Myths About Eyes and Vision) बता रहे हैं.
मिथकः गाजर खाने से आंखों की रौशनी बढ़ती है.
सच्चाईः यह सच है कि गाजर में भरपूर मात्रा में विटामिन ए व बीटा कैरोटिन पाया जाता है, जो आंखों की रौशनी के लिए ज़रूरी होता है, लेकिन आप चाहे जितना भी गाजर खा लें, इससे आपकी आंखों रौशनी तेज़ नहीं होगी. आंखों को सेहतमंद रखने के लिए गाजर के साथ-साथ दूध, चीज़, अंडे की ज़र्दी का सेवन भी करना चाहिए.
मिथकः बहुत पास से टीवी देखने से आंखें ख़राब हो जाती हैं.
सच्चाईः ज़्यादा पास से टीवी देखने से सिरदर्द की समस्या हो सकती है, लेकिन इससे आंखों की रौशनी पर कोई असर नहीं पड़ता. जो लोग बहुत पास से टीवी देखते हैं, ख़ासतौर पर बच्चे, उनकी पास की नज़र कमज़ोर होती है. अगर आपका बच्चा भी बहुत पास से टीवी देखता है, उसका आई टेस्ट कराएं.
मिथकः कम रौशनी व अंधेरे में पढ़ने से आंखों की रौशनी कम होती है.
सच्चाईः बहुत पास से टीवी देखने की तरह ही अंधकार या कम रौशनी में पढ़ने से आंखों पर ज़ोर पड़ता है, जिससे सिरदर्द की समस्या हो सकती है. पर ऐसा करने से आंखों की रौशनी कम नहीं होती.
मिथकः हर व़क्त चश्मा पहनकर नहीं रहना चाहिए. आंखों को आराम देने के लिए बीच-बीच में चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस निकालना चाहिए.
सच्चाईः अगर आपकी दूर या पास की नज़र कमज़ोर है और आपको चश्मा लगा हुआ है तो चश्मे का इस्तेमाल करें. बिना चश्मा लगाए पढ़ने से आंखों पर दबाव पड़ेगा और वे थक जाएंगी. हमेशा चश्मा पहनने से न तो आंखें ख़राब होती हैं, और न ही आंखों की बीमारी होती है.
मिथकः उम्र के साथ आंखों की रौशनी कम होती ही है, इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता.
सच्चाईः इस कथन में थोड़ी सच्चाई है. उम्र के साथ आंखों की रौशनी कम होती जाती है और वह पहले जैसी तेज़ नहीं रहती. लेकिन हम खानपान पर ध्यान रखकर, घूप में बाहर निकलते समय चश्मे का इस्तेमाल करके और नियमित अंतराल पर आई चेकअप करवाकर रौशनी घटने की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं.
मिथकः कंप्यूटर पर लगातार घूरने से आंखें कमज़ोर होती हैं.
सच्चाईः लगातार कंप्यूटर पर काम करने से आंखों पर ज़ोर पड़ता है, लेकिन इससे रौशनी कम नहीं होती. एक बात का ध्यान रखें कि लाइटिंग आपके स्क्रीन पर ग्लेयर क्रिएट न करे. अगर आपको बहुत समय तक कंप्यूटर पर काम करना पड़ता है तो बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें और आंखों को थोड़ा आराम देकर उनकी थकावट कम करने की कोशिश करें. बीच-बीच में पलकें झपकाना न भूलें. आंखों को स्वस्थ रखने के लिए उनका ल्यूब्रिकेटेड रहना ज़रूरी है.
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मिथकः अगर आपने धूप का चश्मा पहना है तो सूरज को डायरेक्टली देख सकते हैं.
सच्चाईः सूरज की ओर घूरना बिल्कुल भी सही नहीं होता. सूरज की रौशनी से अल्ट्रा वायलेट किरणें निकलती हैं तो आपके आंखों की कॉर्निया, रेटिना व लेंस को क्षतिग्रस्त कर सकती हैं. यहां तक की बेहतरीन सनग्लास भी यूवी रेज़ को 100 फ़ीसदी ब्लॉक नहीं कर सकता.
मिथकः आई चेकअप तभी करना चाहिए, जो आंखों में कोई समस्या हो.
सच्चाईः चाहे आपकी आंखें स्वस्थ ही क्यों न हों, नियमित अंतराल पर आई चेकअप कराना बहुत ज़रूरी होता है. नियमित रूप से आई चेकअप करवाने से आप आंखों की बीमारी व उससे जड़ी अन्य समस्याओं से बच सकते हैं.
मिथकः अगर आपके अभिभावक की आंखें कमज़ोर हैं तो आपकी भी होगीं.
सच्चाईः यह ज़रूरी नहीं है. यह सच है कि आंखों से संबंधित कुछ बीमारियां, जैसे ग्लुकोमा व मस्कुलर डिस्ऑर्डर आनुवांशिक होती हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है तो आपके मम्मी या पापा को चश्मा है तो आपको भी लगेगा ही. यह काफ़ी हद तक आपके खानपान, लाइफ़स्टाइल व आदतों पर निर्भर करता है.
मिथकः दूसरों का चश्मा पहनना ख़तरनाक होता है.
सच्चाईः अगर आप थोड़ी देर के लिए दूसरे का चश्मा पहनेंगे तो आपकी आंखों पर कुछ ख़ास प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन बहुत ज़्यादा देर तक पहनने से आंख संबंधी दूसरी समस्याएं हो सकती हैं.
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