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शादी से पहले जरूर कराएं ये 7 मेडिकल टेस्ट्स (7 medical must-do tests before your wedding)
हर समाज की अपनी परिपक्वता और मानसिकता होती है. हम उन्हीं संस्कारों के साथ पले-बढ़े होते हैं और उन्हीं के आधार पर सही-ग़लत का निर्णय भी लेते हैं. लेकिन यह सोच सही नहीं कि हमारे समाज की मानसिकता में बदलावों की ज़रूरत ही नहीं, क्योंकि हमारे सारे संस्कार सही ही होते हैं. समय व व़क्त के साथ सोच भी बदलनी पड़ती है. लेकिन कुछ चीज़ों को लेकर हमारी सोच आज भी वही है. इसी में से एक सोच यह भी है कि शादी से पहले मेडिकल टेस्ट्स भला क्यों करवाएं?
क्यों कतराते हैं लोग?
. हमारे समाज में आज भी प्री-मैरिटल मेडिकल टेस्ट्स का चलन बहुत अधिक नहीं है.
. यदि लड़के या लड़की की तरफ़ से ऐसी डिमांड होती भी है, तो शादी टूटने तक का ख़तरा इससे जुड़ जाता है.
. दोनों ही पक्षों के पैरेंट्स को यह बात और सोच नागवार गुज़रती है.
. वो यह मानकर चलते हैं कि हमारे बच्चों में कोई कमी या शक की बात कैसे कर सकता है.
. उनका यह भी मानना है कि हमने कौन-से टेस्ट्स करवाए थे, लेकिन हमारा तो सब कुछ ठीक-ठाक ही हो गया.
. स़िर्फ पैरेंट्स ही नहीं, लड़के-लड़कियों में भी इतनी परिपक्वता नहीं आई है कि वो इसे सकारात्मक रूप में ले सकें. इसकी मूल वजह है- हमारे समाज की सोच. हम बदलावों को पसंद नहीं करते और न ही उन्हें बहुत जल्द अपनाते हैं. यही वजह है कि इस अच्छी सोच के पीछे भी हमें साज़िश या बुरी नियत ही नज़र आती है.
. सबको लगता है कि कहीं कोई कमी निकल गई, तो बच्चों की शादी नहीं हो पाएगी.
कौन-कौन से टेस्ट्स करवाने चाहिए?
कुछ बीमारियां तो हमें ख़ुद पता होती हैं, लेकिन कुछ के बारे में टेस्ट्स के बाद ही पता चलता है. ऐसे में शादी के बने व टिके रहने के लिए भी ज़रूरी है कि कुछ टेस्ट्स करवाए जाएं, ताकि आप पर भी यह इल्ज़ाम न लगे कि आपने धोखे से शादी की है.
पुरानी गंभीर बीमारी: डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, एनीमिया, हेपाटाइटिस, एपिलेप्सी (मिर्गी), कैंसर के लक्षण, हर्पीस आदि ऐसे रोग हैं, जो गंभीर होने के साथ-साथ आपकी शादीशुदा ज़िंदगी को भी प्रभावित कर सकते हैं. यही नहीं, स्वयं आपके लिए भी यह जानना ज़रूरी है कि आपकी हेल्थ कंडीशन कैसी है, वरना शादी के बाद आपका पार्टनर ख़ुद को ठगा हुआ महसूस करेगा.
एचआईवी/सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज़: आजकल की लाइफस्टाइल में सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़ होने का ख़तरा बढ़ गया है, क्योंकि आज की जनरेशन कैज़ुअल सेक्स में ज़्यादा इंवॉल्व होने लगी है. स़िर्फ सेक्स ही नहीं, ये बीमारियां अन्य तरीक़ों से भी फैल सकती हैं, इसलिए आपकी व आपके होनेवाले पार्टनर की बेहतरी इसी में है कि टेस्ट करवा लें, ताकि वो एक-दूसरे को संक्रमित न करें और उनकी आनेवाली संतान भी संक्रमण का शिकार न हो. वैसे भी एचआईवी का मतलब यह नहीं कि आप शादी नहीं कर सकते, लेकिन ये अब आपकी और आपके होनेवाले पार्टनर की चॉइस पर निर्भर करेगा. आप कंडोम का प्रयोग करके व दवाओं के ज़रिए हेल्दी शादीशुदा ज़िंदगी जी सकते हैं. इसी तरह से सिफिलिस व गनोरिया जैसी बीमारियों का पता चलने पर आप दोनों यह निर्णय ले सकते हैं कि आपको कब कंसीव करना है, क्योंकि ये बीमारियां भी आपके होनेवाले बच्चे को प्रभावित कर सकती हैं.
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ब्लड ग्रुप (आरएच फैक्टर): यह ख़ासतौर से प्रेग्नेंसी के लिए ज़रूरी होता है. यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो रक्त में पाया या नहीं पाया जाता. यदि किसी महिला का आरएच निगेटिव ब्लड ग्रुप आता है और उसके पति का पॉज़िटिव, तो पहली संतान में कोई समस्या नहीं होती है. लेकिन आगे समस्याएं आ सकती हैं. गर्भपात की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. यदि महिला आरएच निगेटिव है और गर्भस्थ शिशु आरएच पॉज़िटिव, तो महिला का शरीर एंटीबॉडीज़ का निर्माण शुरू कर देता है, जिससे बच्चे को समस्या आ सकती है. गंभीर स्थिति में बच्चे को ब्रेन डैमेज या उसकी मृत्यु तक हो सकती है. इसी तरह से कुछ ब्लड ग्रुप्स कंपैटिबल नहीं होते, जिससे कंसीव करने में समस्या आ सकती है. हालांकि यह बात अलग है कि इन आधारों पर रिश्ता टूटता नहीं है, लेकिन आपको भविष्य में आनेवाली चुनौतियों के बारे में पहले से पता चल जाता है और आप उसी आधार पर इलाज व अन्य संभावित सावधानियों पर ध्यान दे सकते हैं.
फर्टिलिटी टेस्ट: शादी का मक़सद एक बेहतर जीवनसाथी पाना तो होता ही है, साथ ही अपना परिवार बनाना व बढ़ाना भी इसका दूसरा मक़सद होता है और कुछ लोग बच्चों से इतना प्यार करते हैं कि वो शादी के सपने के साथ-साथ बच्चों की भी कल्पना मन में संजोए रहते हैं. ऐसे में शादी के 2-3 साल बाद पता चले कि आप इंफर्टाइल हैं, तो आप दोनों के सपने भी टूटेंगे, दूसरे पार्टनर को भी तकलीफ़ होगी. शादी टूटने का डर भी बना रहेगा. बेहतर होगा कि पहले ही यह टेस्ट करवा लिया जाए और होनेवाले पार्टनर के पास चॉइस रहे कि उसे क्या करना है. यदि इसके बाद भी दोनों आगे बढ़ाते हैं अपने रिश्ते को, तो वो और मज़बूत होगा और आपका भविष्य भी बेहतर होगा.
जेनेटिक कॉन्स्टिट्यूशन (जीनोटाइप): कुछ बीमारियां हमारे जीन्स से मिल जाती हैं हमें और ऐसा भी होता है कि हम उस बीमारी के कैरियर होते हैं यानी भले ही हम उस बीमारी से पीड़ित न हों, लेकिन उसके जीन्स हम कैरी करते हैं, जो हमारे बच्चों को हमारे ज़रिए मिलते हैं और उन्हें वो बीमारी होने की पूरी-पूरी आशंका रहती है. ऐसे में इस तरह के टेस्ट्स भविष्य के संभावित ख़तरे के बारे में आगाह करते हैं और उनसे बचने का उपाय भी हम समय रहते कर सकते हैं.
मेंटल हेल्थ: ऑटिज़्म, बायपोलर डिसऑर्डर, सेरिब्रल पाल्सी, स्किज़ोफ्रेनिया या ऐसे ही न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर्स हैं, जो व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं. इनमें से कुछ का पता तो आसानी से चल जाता है, लेकिन कुछ का पता सामान्य अवस्था में नहीं चल पाता. यदि समय रहते पता चल जाए, तो यह भी अंदाज़ा हो जाता है कि कितना समय, कितनी केयर की ज़रूरत होगी पार्टनर को, ताकि वो सामान्य हो सके. यही नहीं, कुछ मेंटल कंडीशन्स तो जीन्स से भी बच्चों तक पहुंच सकती हैं, तो इस लिहाज़ से भी शादी से पहले इनका टेस्ट ज़रूरी है, क्योंकि शादी के लिए इंसान को मानसिक रूप से तैयार व पूरी तरह स्वस्थ होना चाहिए.
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इंपोटेंसी/फ्रिजिडिटी: इस पर लंबे समय से बहस चल रही है कि क्या ये टेस्ट क़ानूनी रूप से ज़रूरी कर देने चाहिए, क्योंकि इनके आधार पर तलाक़ के काफ़ी मामले प्रकाश में आते हैं. यदि पुरुष या महिला में नपुंसकता के लक्षण हैं, तो शादी का पूरा आधार ही ग़लत हो जाएगा और सामनेवाला भी ख़ुद को ठगा हुआ महसूस करेगा, इसके बाद शादी टूटना लाज़िमी है, तो बेहतर होगा कि पहले ही इस विषय को न छिपाया जाए और सही तरी़के से आगे बढ़ा जाए.