- अक्सर लोगों का आर्थिक सूत्र होता है आमदनी-ख़र्च=बचत, जबकि होना चाहिए आमदनी-बचत=ख़र्च. अर्थात् एक महीने की आमदनी में से आपके लिए अधिक से अधिक जितनी बचत करना संभव है, उतनी रक़म निकालकर रखें और बाकी बची हुए रक़म से सारे ख़र्च चलाएं. यदि आपकी सैलरी बैंक में आती है, तो ख़र्चे की रक़म निकालकर घर लाएं, बचत बैंक में ही रहने दें.
- कई बार घर के सारे ख़र्चे पूरे होने के बाद पैसे नहीं बचते और बचत का सपना अधूरा रह जाता है. इसका भी उपाय है- बैंक या पोस्ट ऑफिस में रिकरिंग डिपॉज़िट खाता या म्यूच्युल फंड (सिस्टमिक इन्वेस्टमेंट प्लान) खाता खोलें. दूसरे बैंक में खाता खोलकर शली(इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम) करवाएं. आपकी सैलरी के आते ही बैंक आपके द्वारा बताई गई बचत की रक़म, हर माह इन खातों में जमा कर देता है. आपकी बचत ऐसे खातों में डाली जानी चाहिए, जहां आसानी से उसे निकाला न जा सके. इसीलिए कंपनियों और ऑफिसों मेंें हर महीने कर्मचारी की तनख़्वाह में से एक निश्चित रक़म पी.एफ. अकाउंट में डाली जाती है और कंपनी की तरफ़ से भी उतनी ही रक़म जमा की जाती है. यह रक़म समय के साथ बढ़ती रहती है और व्यक्ति के रिटायर होने पर उसे मिलती है. अति आवश्यक परिस्थिति में इसमें से एक तिहाई रक़म रिटारयमेंट से पहले निकालने की अनुमति होती है.
- सबसे पहले अपनी आमदनी के अनुसार बजट बनाएं. इसमें निश्चित करें कि अपने कपड़े, यात्रा, राशन एवं मनोरंजन पर आप कितने पैसे ख़र्च करेंगे और उसका पालन करें. पुराने समय में लिफ़ाफ़ा तरीक़ा इस्तेमाल किया जाता था. हर महीने अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में रक़म रखकर बिजली बिल, बच्चों की फीस, राशन, शादी एवं इमर्जेंसी ख़र्च लिखा जाता था. इमर्जेंसी ख़र्च की रक़म दवाइयों, अचानक आई आपत्तियों या रिश्तेदारों व घरेलू शादी-समारोहों के काम आती थी. चाहें तो आप भी यह तरीक़ा इस्तेमाल कर सकते हैं.
- घर ख़र्च के लिए डायरी मेंटेन करें, जिसमें हर छोटे से छोटा ख़र्च भी लिखें. इससे फिज़ूल ख़र्चों का पता चल जाएगा, जिसे अगले महीने में सुधारा जा सकेगा.
- आजकल अक्सर लोग समय बिताने के लिए शॉपिंग मॉल चले जाते हैं. घूमते-घूमते बहुत-सी चीज़ें पसंद आ जाती हैं. पसंद आते ही वो चीज़ ख़रीदनी ही है, ऐसा न सोचें. महीने के अंत तक रुकें, तब आपको पता चल जाएगा कि वह चीज़ आपके लिए आवश्यक है या नहीं या ऐसे ही आप दूसरों की देखा-देखी या इच्छा होने पर ख़रीद रहे हैं.
- उदाहरण के तौर पर, आप सैंडविच मेकर ख़रीदना चाह रही हैं, क्योंकि वह आपकी सहेली के पास है. मगर आपके घर में सैंडविच पसंद नहीं किए जाते, तो ख़रीदना बेकार है. कभी-कभार के लिए सैंडविच तवे पर भी बनाई जा सकती है. यह आपकी ज़रूरत नहीं है, आपकी सहेली से स्पर्धा की इच्छा आपको सैंडविच मेकर ख़रीदने के लिए बाध्य कर रही है.
- आजकल प्लास्टिक मनी (डेबिट व क्रेडिट कार्ड) से ही ज़्यादातर ख़रीददारी की जाती है, क्योंकि पैसों की अपेक्षा इसे संभालना आसान होता है. कभी आपने सोचा है इन कार्ड्स के चक्कर में आप बेकार की ढेर सारी चीज़ें ख़रीद लाते हैं, जिनका दाम यदि कैश में चुकाना पड़ता, तो आप शायद कभी नहीं लेते.
- मॉल/दुकानों में कार्ड से पेमेंट करते समय हमें सीक्रेट पिन दबाना पड़ता है. लोगों की भीड़ में यह पिन सीक्रेट नहीं रह पाता, जो थोड़ा रिस्की है. भीड़भाड़ और जल्दबाज़ी की वजह से कई बार कार्ड काउंटर पर ही रह जाता है, जिसका दुरुपयोग हो सकता है. इसीलिए इसे हमेशा अपने पर्स या जेब में लेकर घूमना ख़तरे से खाली नहीं है. इन्हें घर में सुरक्षित जगह पर रखें. बहुत आवश्यक होने पर ही इससे पेमेंट करें.
- करियर के आरंभ में सैलरी कम होती है. ख़र्चे अधिक होने से बहुत छोटी रक़म ही बचती है, जो हमें लगता है बचत के लिए काफ़ी नहीं है. हताश ना हों. रक़म चाहे 500 हो या 1000, बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, यह कहावत याद रखें. इस रक़म को लंबे समय के लिए इन्वेस्ट करें. साथ ही ऐसी जगह इन्वेस्ट करें, जहां ब्याज़ ठीक-ठाक मिलता हो. ब्याज के चलते भी परिपक्व होने पर राशि ज़्यादा होगी. बीच-बीच में इस तरह के इन्वेस्टमेंट्स करते रहें.
- रेकरिंग डिपॉज़िट या म्यूच्युल फंड के डखझ में इन्वेस्ट करें. जितनी राशि से आप खाता खोलेंगे, उतनी राशि आपको हर माह डालनी होगी. किसी माह में ज़्यादा पैसे बच जाएं, तो उसे बैंक के फिक्स्ड डिपॉज़िट में डाल दें. उसे रिन्यू करवाते जाएं, इससे लंबा समय बीतने पर आकर्षक बचत आपके हाथ में होगी.
- आजकल अक्सर युवा अपने दोस्तों के बहकावे में आकर अंधाधुंध ख़र्च करते हैं. ध्यान रहे, हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति दूसरे से भिन्न होती है और ख़र्च करने की क्षमता भी. यदि आपके दोस्त हर महीने ख़रीददारी करते हैं, तो ज़रूरी नहीं कि आप भी करें. कुछ भी ख़रीदने से पहले अच्छी तरह रिसर्च करें कि क्या यह अतिरिक्त ख़र्च वहन करने की क्षमता आपमें है?
- अगर आपके दोस्तों के पास कार है और आप भी ख़रीदने के इच्छुक हैं, तो कार ख़रीदने के कुछ नियम हैं, उन्हें ध्यान में रखें- कार की कुल क़ीमत आपकी आमदनी के 60% से ज़्यादा ना हो. इसी तरह कार की मासिक किश्त मासिक आमदनी के 15% से ज़्यादा और आपके मासिक ख़र्च के बाद बची रक़म का 30% हो. पहले सोचें कि कार, फ्लैट, स्मार्टफोन- इनमें से क्या आपकी ज़रूरत है और निर्णय लें. पीयर प्रेशर में ना आएं.
- डॉ. सुषमा श्रीराव
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