''मेडलिस्ट पेड़ पर नहीं उगते, उन्हें बनाना पड़ता है...प्यार से, मेहनत से, लगन से….'' बस कुछ इसी डायलॉग की तरह दंगल को भी बनाया गया है, प्यार से, मेहनत से और लगन से. ये मेहनत आपको पर्दे पर नज़र भी आएगी. ये फिल्म आपको पलकें झपकाने का भी मौक़ा नहीं देगी. आइए, जानते हैं कि क्यों दंगल जैसी फिल्म आपको देखनी ज़रूरी है.
कहानी
म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के? इसी कॉन्सेप्ट पर है ये फिल्म. हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट के जीवन पर आधारित है दंगल. गोल्ड मेडल न जीत पाने का अधूरा सपना अपने बेटे में देखने वाले महावीर सिंह फोगट (आमिर खान) बेटे के इंतज़ार में चार बेटियों के पिता बन जाते हैं. उन्हें गोल्ड पाने का सपना अब धुंधला होता नज़र आने लगता है, लेकिन तभी उनकी रुकी ज़िंदगी में आता है एक बड़ा बदलाव, जब उनकी बेटियां गीता (ज़ायरा वसीम) और बबीता (सुहानी भटनागर) एक लड़के को पीट देती हैं. इसके बाद ही महावीर सिंह अपनी बेटियों को कुश्ती के गुर सिखाकर उन्हें रेसलिंग के रिंग में उतारते हैं और गोल्ड का सपना पूरा होता है.
फिल्म की यूएसपी
फिल्म की यूएसपी की बात करें, तो एक्सप्रेशन से लेकर डायलॉग्स और गानों से लेकर हर सीन तक सब कुछ परफेक्ट है. इस फिल्म से आप ख़ुद को कनेक्ट कर पाएंगे. फिल्म के कुछ सीन्स, ख़ासकर कुश्ती के कई सीन्स तो ऐसे हैं, जो कुछ सेकंड के लिए आपकी सांसें रोक देंगे.
दूसरी ख़ास बात ये है कि जिन दर्शकों को कुश्ती के दांव-पेंच और रूल्स नहीं पता हैं, उनके लिए डायरेक्टर ने फिल्म में कुछ प्वॉइंट्स क्लियर कर दिए हैं, ताकि फिल्म में दिखाई गई कुश्ती के अहम् दृश्यों को वो सही ढंग से समझ सकें.
दमदार ऐक्टिंग
हर एक किरदार फिल्म में अपनी ऐक्टिंग के साथ न्याय करता नज़र आएगा. सबसे पहले बात आमिर खान की. आमिर क्यों मिस्टर परफेक्शनिस्ट हैं इसका जवाब आपको मिलेगा इस फिल्म में. पहलवान महावीर सिंह फोगट के रोल में आमिर कमाल के लग रहे हैं. आमिर का बढ़ा हुआ वज़न देखकर और उनकी बोली सुनकर आप कुछ देर के लिए भूल जाएंगे कि ये आमिर हैं, आपको लगेगा आप वाकई हरियाणा के किसी पहलवान को देख रहे हैं.
गीता और बबीता के बचपन के रोल में ज़ायरा वसीम और सुहानी भटनागर, तो वहीं बड़े होने के बाद के रोल में फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा ने ज़बरदस्त काम किया है और अपने धाकड़ अंदाज़ से लोगों का दिल जीत लिया है.
साक्षी तंवर अच्छी ऐक्ट्रेस हैं, ये हर कोई जानता है और इस फिल्म में भी उन्होंने ये साबित कर दिया है.
क्यों देखने जाएं फिल्म?
दंगल फिल्म के लिए ये सवाल बनता ही नहीं है कि क्यों देखने जाएं फिल्म, क्योंकि इस फिल्म को देखे बगैर साल 2016 को बाय-बाय कहना सही नहीं होगा. साल 2016 की अच्छी यादों में इस फिल्म को ज़रूर शामिल करिए. दंगल न सिर्फ़ एक अच्छा मैसेज देगी, बल्कि आपकी सोच को पॉज़िटिव बना कर कभी हार न मानने का जज़्बा भी देगी.
- प्रियंका सिंह
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