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कहानी- अपनी इमेज का क़ैदी 6 (Story Series- Apni Image Ka Qaidi 6)

 

माना मैं अच्छा पति हूं, मगर दिल अभी भी फिसल जाता है... अच्छा बॉस हूं, सिलि मिस्टेक्स के बावजूद जूनियर्स पर नहीं चिल्लाता, मगर जो ग़ुस्सा भीतर फूटता है और हाई ब्लड प्रेशर बन मेरी नसों में दौड़ता रहता है, उसका क्या? मैं सबकी मदद करता हूं जानते हुए कि मेरा फ़ायदा उठाया जा रहा है, फिर भी ना नहीं कह पाता... कितनी झल्लाहट, छटपटाहट महसूस होती है अपनी इस कमज़ोरी पर... मैंने ज़िंदगी में कभी अपने मन की ही कहां है, हमेशा वही करता आया हूं, जो दूसरे चाहते हैं... वही कहता आया हूं, जो दूसरे सुनना चाहते हैं...

        ... मुझे देखते ही दोनों खड़े हो गए. सुगंधा ने उसका परिचय कराते हुए बड़े उत्साह से कहा, “देखो ना, उस दिन कैसे कह रही थी, कोई मिला नहीं... आज पूरा ज़िंदा इंसान साथ ले आई. ये कैप्टन मिश्रा हैं, दीया के मंगेतर...” मुझे ज़ोर का झटका लगा, इतना ज़ोर से कि सारा नशा तुरंत काफ़ूर हो गया. मैं छटपटाकर रह गया. वो तिलिस्म जो अपने इर्दगिर्द खड़ा पाता था, यकायक भरभराकर गिर पड़ा. बमुश्किल ख़ुद को संभाला और जैसे-तैसे मुस्कुराकर उसे "हैलो..." किया फिर चेंज करने के बहाने अंदर चला गया. ये अभी जो बाहर हुआ, ये क्या था... दीया ओलरेडी इंगेंजड है... फिर मुझे यूं बहलाने का क्या मतलब? तभी कुछ चटका मन में... मैं भी तो शादीशुदा हूं, मैं कैसे बहल गया? बाहर जाकर दीया का सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. कमरे से ही कान बाहर चल रही बातों पर लग गए. “मैम, मैं तो कब से इसके पीछे पड़ा था कि शादी कर लो, मगर मान ही नहीं रही थी... एक्च्युली इसके पैरेंट्स के डायवोर्स के बाद इसका शादी से विश्वास ही उठ गया था. वो तो सर और आपको देखकर इसे लगा कि सारी शादियां एक सी नहीं होती, ना ही सारे मर्द एक से होते हैं, तब जाकर इसने हां की... इसलिए मैं सबसे पहले आप दोनों को ही थैंक्स बोलने चला आया.” उसका मंगेतर हंस-हंसकर आपबीती सुना रहा था.   यह भी पढ़ें: अलग-अलग संस्कृतियों में मनाया जानेवाला पर्व मकर संक्रांति (Happy Makar Sankranti)   दीया बीच में बोली, “देखो अभी सिर्फ़ हां की है, शादी नहीं... शादी तभी होगी, जब तुम कुछ दिन सर की शार्गिदी में रहकर उनकी तरह अच्छे पति बनने के गुण सीख लो... बॉयफ्रेंड कैसा भी चलेगा, लेकिन पति मुझे सर जैसा ही चाहिए...” सुनकर भीतर कुछ चटक गया. कैसे मैंने उसकी आंखों में वो सब पढ़ लिया, जो मेरे लिए लिखा ही नहीं था. आज यक़ीन हो गया था आंखें मन का आईना नहीं होती, दरअसल मन आंखों का मालिक होता है. हमारा मन हमें वहीं दिखाता है, जो हम देखना चाहते, हैं ना कि वह, जो हक़ीक़त होती है. दीया मुझे नहीं ‘मेरे जैसा’ चाहती थी… वो मेरी इमेज को पसंद करती थी मुझे नहीं... मगर मुझमें और मेरी इमेज में तो फ़र्क़ है ना... माना मैं अच्छा पति हूं, मगर दिल अभी भी फिसल जाता है... अच्छा बॉस हूं, सिलि मिस्टेक्स के बावजूद जूनियर्स पर नहीं चिल्लाता, मगर जो ग़ुस्सा भीतर फूटता है और हाई ब्लड प्रेशर बन मेरी नसों में दौड़ता रहता है, उसका क्या? मैं सबकी मदद करता हूं जानते हुए कि मेरा फ़ायदा उठाया जा रहा है, फिर भी ना नहीं कह पाता... कितनी झल्लाहट, छटपटाहट महसूस होती है अपनी इस कमज़ोरी पर... मैंने ज़िंदगी में कभी अपने मन की ही कहां है, हमेशा वही करता आया हूं, जो दूसरे चाहते हैं... वही कहता आया हूं, जो दूसरे सुनना चाहते हैं... एक्च्युअली मैं अपनी इमेज का क़ैदी हूं जैसे कोकून में बंधा रेशमी कीड़ा... जो कभी उससे बाहर नहीं निकल सकता...   यह भी पढ़ें: दिल को रखना है फिट, तो करें ये मुद्रा और योगासन (12 Effective Yoga And Mudras For Your Healthy Heart)   बाहर से सुंगधा चाय के लिए आवाज़ दे रही थी, जानता था वे सब मेरा नहीं, एक ऐसे ज़हीन इंसान का इंतज़ार कर रहे हैं, जो अच्छा पति, अच्छा पिता और अच्छा बॉस है... एक बेहद परफेक्ट इंसान... भले ही उस इंसान में मैं हूं या नहीं, इससे किसी को क्या फ़र्क़ पड़ता है? तो चलो, उन्हें वहीं दिखाते हैं, जो वो देखना चाहते हैं... शायद इसी में सबकी भलाई है... मैंने अपनी गुडी गुडी इमेज ओढ़ी और उसमें एक और स्टार जड़ने बाहर चल पड़ा. Deepti Mittal दीप्ति मित्तल       अधिक कहानियां/शॉर्ट स्टोरीज़ के लिए यहां क्लिक करें – SHORT STORIES

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