- आप 'मेट्रो... इन दिनों' फिल्म में रिश्ते और इमोशन के मकड़जाल को देखेंगे. इसमें कोई दो राय नहीं कि अनुराग बसु भावनाओं के जादूगर हैं, वे अपने कलाकारों से बड़ी सहजता से काम करवा लेते हैं.

मेरी फिल्म 'तन्वी द ग्रेट' एक ऐसा जज़्बा है, जो आज की तारीख़ में थोड़ा फैशनेबल नहीं है. फिल्म अच्छाई के बारे में है. अपने और कुछ दोस्तों (जिनका फिल्मों से कोई लेना-देना नहीं है) के बलबूते पर बनाई है. उनका विश्वास नहीं तोड़ना चाहता! एक ख़ुद्दारी ही तो है मेरे पास. यही तो है मेरी ताक़त.

- मुझे बायलॉजिकल चाइल्ड न होने का दुख है. मैं भी आम पैरेंट्स की तरह अपने बच्चे को बड़े होते देखना चाहता था, जो हो न सका. पैरेंटिंग चुनौती है, पर अपने बच्चे को क्वालिटी टाइम देने के साथ प्रॉपर अटेंशन भी दें. जब भी आप उसके साथ हों तो फोन व टीवी को दरकिनार कर उसकी बातों को सुनें और अटेंशन दें.
- संघर्ष के दिनों में मैं लगभग मुंबई छोड़कर चला गया था. उस दौरान मेरे दादाजी ने मुझे पत्र लिखा- भीगा हुआ आदमी बारिश से नहीं डरता. वेे मुझे ज़िंदगी में आगे बढ़ने व कभी न डरने की सलाह देते थे.

- मेरे पिता पुष्कर जी के मार्गदर्शन ने मुझे कठिन परिस्थितियों से निपटने में मदद की. उन्होंने जीवन में असफलताओं का जश्न मनाने के महत्व को भी समझाया. मुझे याद है किस तरह दसवीं में फेल होने पर भी वे हमें बाहर खिलाने ले गए.
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- फिल्म इंडस्ट्री में 40 साल बिताने के बावजूद मैं आज भी किराए के घर में रहता हूं. मुझे कभी भी अपने लिए घर ख़रीदने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. मैं घर का मालिक होने से अधिक दान व विरासत को महत्व देता हूं.
- कुछ साल पहले मैंने मां दुलारी को चिढ़ाते हुए कहा था कि मैं बड़ा स्टार हूं, बताएं उन्हें क्या चाहिए. मैंने सोचा वे कुछ नहीं चाहिए कहेंगी, पर उन्होंने झट से कहा कि मुझे शिमला में घर चाहिए. दरअसल, पिता के जाने के बाद हम तो वहां उतना नहीं रहे, पर वे उम्रभर किराए के मकान में रहीं, इस कारण वे अपना घर चाहती थीं. तब उन्हें शिमला में आलीशन मकान दिलवाया.

- महेश भट्ट के साथ बहुत सारी फिल्में की हैं. वे मेरे गुरु हैं. पहले हर फिल्म के बाद गुरु दक्षिणा देता था, पर अब तो हर इवेंट व मीटिंग पर गुरु दक्षिणा सामने से मांग लेते हैं. वो बिल्कुल मेरे पिता की तरह हैं. भगवान ने बहुत कुछ दिया है. आज जो भी हूं, भट्ट साहब की वजह से हूं.
- मेरी क़रीब साढ़े पांच सौ फिल्मों में पांच सौ बिना स्क्रिप्ट की रही हैं. पहले मात्र कहानी सुनाई जाती थी. डेविड धवन की तो ऐसी 11 फिल्में की हैं, जो सभी सुपरहिट रहीं. उनका अंदाज़ ही अलग था, वे सेट पर ही बताते थे कि क्या करना है.

- मैं और किरण खेर बहुत अच्छे दोस्त थे. मैं 1974 में चंडीगढ़ के इंडियन थिएटर में एक्टिंग सीखने गया था और वो एक साल पहले पासआउट कर चुकी थीं. शादी के बाद वो बॉम्बे चली गईं और मैं दिल्ली ड्रामा स्कूल. और जब मैं मुंबई आया, तब उन दिनों उनकी शादी में प्रॉब्लम आ रही थी और वे एक ख़राब रिलेशनशिप से गुज़र रही थीं. मुझे भी एक लड़की ने छोड़ दिया था. दोस्त के रूप में हम एक-दूसरे का सहारा बने. फिर प्यार हुआ और हमने शादी कर ली थी.

- ज़िंदगी में एक बेबाक़पन होना बहुत ज़रूरी होता है. आपको आज़ाद महसूस कराता है. ये बांवरा और बिंदास मिज़ाज आपको मुंबई की सड़कों और समंदर के किनारे आम इंसानों के बीच बहुत देखने को मिलता है. तो जब कभी एक घुटन सी महसूस करता हूं तो निकल पड़ता हूं खुली हवा में!
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- भारत मेरे लिए एक मां की तरह है. देश के हर सुख-दुख को मैं व्यक्तिगत रूप से महसूस करता हूं. मैं भारत के 78 साल के सफ़र में अपने 70 साल के सफ़र को एक साथ देखता हूं. मुझे भारत के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए दुख है, जो भारत के बारे में ख़राब बातें करते हैं. हमारा भारत हमेशा आगे बढ़ेगा और एक बेहतर देश बनेगा.
- ऊषा गुप्ता

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