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फिल्म समीक्षाः जातिवाद, प्यार, राजनीति के तिकड़म के बीच पनाह मांगती सी ‘धड़क 2’ (Movie Review: Dhadak 2)

इन दिनों संदेश देने के साथ-साथ फिल्मों में कुछ अलग देने की कोशिश भले ही चल रही हो, पर रीमेक से भी बाज़ नहीं आ रहे फिल्ममेकर. समझ में यह नहीं आ रहा कि फिल्म निर्माता-निर्देशक आख़िर चाहते क्या हैं? ऐसी क्या बात है, जो उन्हें कुछ नया और बढ़िया करने से रोकती रहती है. रीमेक पर रीमेक... क्या वाकई कहानियों का अकाल सा पड़ गया है? उस पर सीक्वल की बाढ़ अलग से.

सिद्धांत चतुर्वेदी और तृप्ति डिमरी अभिनीत ‘धड़क 2’ देखते हुए कभी दुख, अफ़सोस, नाराज़गी होती है तो कभी चेहरे पर मुस्कान भी आ जाती है, लेकिन बहुत कम समय के लिए. शाजिया इकबाल ने अपने डेब्यू डायरेक्शन में जात-पात, आरक्षण, ऊंच-नीच जैसे गंभीर मुद्दे को अपनी सराहनीय निर्देशन से सही दिशा देने की पूरी कोशिश की है.

नीलेश, सिद्धांत चतुर्वेदी निम्न जाति का है. ख़ुद पर हुए अत्याचार और मां के साथ हुए अन्याय को देख वकील बनने का ठान लेता है, ताकि अपने लोगों को न्याय दिला सके, उनके लिए लड़ सके. कोटे के ज़रिए लॉ कॉलेज में दाखिला भी हो जाता है. इसे लेकर कदम कदम पर उसे ताने-उलाहने और कटाक्ष भी मारे जाते हैं.

साथ क़ानून की पढ़ाई करते-करते विधि, तृप्ति डिमरी और नीलेश के बीच दोस्ती फिर प्यार हो जाता है. भारद्वाज परिवार की तृप्ति की तीन पीढ़ी एडवोकेट रही है, इस कारण उसके साथ चचेरा भाई रॉनी भी वकालत कर रहा है. कॉलेज में पढ़ाई कम ऊंच-नीच जाति के दांवपेच, शोषण, नारे बाज़ी, आंदोलन, स्टूडेंट्स का कैंटीन में खाना-पीना अधिक होता रहता है.

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अंग्रेज़ी को लेकर भी कटाक्ष किया गया है. हमारे यहां पढ़ाई को लेकर इंग्लिश का बोझ कब तक और कहां तक रहेगा, यह विचारणीय है. नीलेश-विधि की नज़दीकियां विधि के परिवारवालों को रास नहीं आती. नतीज़ा नीलेश की जान पर बन आती है. नीलेश को कई लड़ाइयों से गुज़रना पड़ता है. पिता भी नौंटकियों में नारी बनकर भौंडा डांस करते हैं, जो उसे शर्मिंदगी का एहसास कराता है. मां अधिकारों के लिए बोलती है, तो उसके साथ भी दुर्व्यवहार किया जाता है. प्रेमिका के पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए उससे दूरियां बनाने पर ख़ुद की धड़कनें मानो कमज़ोर सी होती जा रही है. फिल्म में कई ट्विस्ट हैं.

सिद्धांत चतुर्वेदी, तृप्ति डिमरी से लेकर साद बिलग्रामी, अनुभा फतेहपुरा, विपिन शर्मा, सौरभ सचदेवा, मंजरी पुपला, आदित्य ठाकरे, हरीश खन्ना, अभय जोशी, जाकिर हुसैन व प्रियांक तिवारी सभी ने अपने क़िरदारों के साथ न्याय किया है. निर्देशिका शाजिया और राहुल बडवेलकर ने मिलकर कहानी पर काम किया है.

फिल्म को ‘धड़क’ का सीक्वल क्यों कहा गया वो समझ से परे है. जबकि इसे तमिल की सफल फिल्म ‘परियेरुम पेरुमल’ का रीमेक भी बताया जा रहा है. निमार्ता की तो पूरी फौज है- करण जौहर, अपूर्व मेहता, सोमेन मिश्रा, प्रगति देशमुख, आदार पूनावाला, मीनू अरोड़ा व उमेश कुमार बंसल.

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सिलवेस्टर फोनसेका की सिनेमैटोग्राफी स्तरीय है. तनुज टीकू, तनिष्क बागची के गीत-संगीत ठीकठाक हैं. ढाई घंटे की इस फिल्म को थोड़ा एडिट किया जा सकता था. ज़ी स्टूडियो, धर्मा प्रोडक्शन और क्लाउड 9 पिक्चर्स के बैनर तले बनी ‘धड़क 2’ दर्शकों के उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है यह तो आनेवाले कुछ दिनों में पता ही चल जाएगा.

- ऊषा गुप्ता

Photo Courtesy: Social Media

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