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कहानी- उनके झूठ का सच… (Short Story- Unke Jhooth Ka Sach)

कविता राय

तभी घंटी बजी और उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा. उसने एक-दो गहरी सांसें भी लीं. उसे डर लग रहा था कि कहीं अभय को उसकी धड़कन सुनाई न पड़ जाए. उम्र के इस पड़ाव पर भी उसकी हालत बिल्कुल नवयौवना जैसी हो रही थी और एहसास प्रथम मिलन जैसा था.

अवंतिका को पलंग के सिरहाने पर सिर टिकाकर सिसकते हुए ना जाने कितनी देर हो गई थी. वो लगातार आंसू बहाकर शांत होती, पर फिर कुछ ही देर में उसकी देह थर्राने लगती और आंखों से जार-जार आंसू बहने लगते थे.

उसके मन में बार-बार ये प्रश्‍न उठ रहा था कि अभय ऐसा कैसे कर सकते हैं? 20 साल की शादी का ये परिणाम है! मैंने कहां कमी की? बच्चे, घर-परिवार और नाते-रिश्तेदार सब तो पूरी तरह निभाया है. स्वयं कष्ट झेले, पर किसी को शिकायत का एक मौक़ा तक नहीं दिया. और... और आज जब बच्चे बड़े होकर अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गए हैं और मेरी गृहस्थी स्थिर हो गई, तो फिर मेरे जीवन में ये भूचाल क्यों? मेरे पत्नी धर्म निभाने में कहां कमी रह गई थी कि अभय को इस उम्र में...

छीः! उसे तो सोचकर भी घृणा आ रही थी, पर... पर उसने सब अपनी आंखों से देखा था. आंखों देखा तो ग़लत नहीं हो सकता ना!

फिर उसे लगता नहीं... नहीं... अभय ऐसा नहीं कर सकते, वो तो मुझसे बेहद प्यार करते हैं. लेकिन बार-बार वो दृश्य उसकी आंखों के सामने घूमने लगता था और फिर नीलू की वो झुकती पलकें और कपोलों की लाली सामने दिखाई देने लगती, तो एकबारगी अपमान और ग़ुस्से से उसकी देह थरथराने लगती थी.

नीलू की याद आते ही ना चाहते हुए भी वो वर्तमान से अतीत में चली गई. उसने नीलू को पहली बार कॉलेज के कंपाउंड में देखा था. साधारण नैन-नक्श, दबी हुई रंगत, तेल लगे हुए बालों को कसकर चोटी में समेटे और पुराने स्टाइल का सलवार-कमीज़ पहने हुए सीनियर्स के बीच रुआंसी खड़ी रैगिंग करवा रही थी. उसकी कंपकंपाती देह और बेबस आंखों ने अवंतिका के अंदर जाने कैसी भावना जगाई कि वह उस दिन ख़ुद को रोक नहीं पाई और ढाल बनकर नीलू के सामने आकर खड़ी हो गई थी. अनजान होते हुए भी ना जाने कौन से विश्‍वास के साथ वो भी उससे लिपट गई थी मानो उनका जन्मों का रिश्ता हो.

उस दिन अंकुरित हुई अवंतिका और नीलू की दोस्ती धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगी. सभी उन्हें सहेलियां नहीं, बहनें ही समझती थीं. जहां नीलू साधारण शक्ल-सूरत की निम्न परिवार से थी, वहीं अवंतिका का परिवार धनाढ्य था. पर ये अंतर कभी भी उन दोनों की दोस्ती के बीच नहीं आया, बल्कि अवंतिका के साथ ने नीलू को ग्रूम करके निखार दिया था.

समय आने पर दोनों की शादियां अच्छे घरों में हो गईं, पर शादी के बाद की व्यस्तता का भी उन दोनों की दोस्ती पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. उनकी दोस्ती हर बीतते दिन के साथ और गहरी होती गई. दोनों एक-दूसरे की सुख-दुख की साथी थीं. पर आज पहली बार अवंतिका को लगा कि सब छलावा था, वो ठगी गई. उसने जिन पर स्वयं से ज़्यादा भरोसा किया, उन सभी ने मिलकर उसके विश्‍वास की हत्या की थी.

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लेकिन क्या वो नीलू जिसे कपड़े पहनने और बाल बनाने का भी सलीका नहीं था, वो नीलू जिसकी रंगत और उसकी ख़ुद की रंगत के बीच रात-दिन का अंतर है, उसके साथ अभय! नहीं... नहीं... उसने कड़वाहट के साथ विचार अधूरा ही छोड़ दिया और उठकर बेडरूम में लगे आदमकद दर्पण में ख़ुद को देखने लगी. वो स्वयं को हर कोने से देख रही थी- रेशमी और घने बालों का स्थान रूखे और बिखरे बालों ने ले लिया था. कांतिहीन और मुरझाया हुआ चेहरा अपनी गाथा ख़ुद कह रहा था. धंसी हुई आंखें और उनके नीचे के गड्ढे ये आभास भी नहीं दे रहे थे कि कभी वो आंखें अभय के लिए गहरी झील थीं, जिसमें वो अक्सर खो जाते थे. माथे और गले की लकीरें उम्र क ी गिनती बता रही थीं. उस पर मुड़ी और बदरंग हो गई साड़ी तो उम्र से दस-पंद्रह वर्ष अधिक दिखने के लिए काफ़ी थे. आज जाने कितने दिन बाद उसने स्वयं को आईने में देखा था.

“ये मैं हूं...” ख़ुद से वितृष्णा हो आई उसे.

तभी सहसा उसकी सोच में नीलू का अक्स उभरकर उसके साथ दर्पण के सामने खड़ा हो गया और अनजाने ही वो अपनी तुलना उससे करने लगी. नीलू के बाल एक ऊंची पोनी में बंधे थे और बालों से हल्की सी मादक सुगंध आ रही थी.

आंखों में चमक थी, जिसमें जीवन की सुरभि चमक रही थी और रंगत उम्र के साथ सांवली से गंदुमी हो गई थी. वो एक सादा सा गुलाबी सलवार-कमीज़ पहने थी, जिसका रंग उसके शर्माते हुए गालों में अपना रंग भर रहा था.

पर ये... ये तो वही गुलाबी सलवार-कमीज़ है, जो नीलू उस दिन... ये ध्यान में आते ही वो वर्तमान में लौट आई और क्रोध से उसके आंसू निकल पड़े. वो सिसक ही रही थी कि सामने मेज़ पर रखा मोबाइल घनघनाने लगा.

“पता नहीं अब इस भरी दोपहरी में कौन है?..” वो बड़बड़ाती हुई उठी तो दर्द की एक तेज़ लहर उसके मस्तक में दौड़ गई. उसने घबराकर पलंग का किनारा पकड़ लिया और आवाज़ लगाई, “राधा... अरे राधा, कहां है तू?”

“आई दीदी. आप ठीक तो हो ना!” राधा ने दर्द के कारण उसके चेहरे पर घिर आई कालिमा को देखते हुए पूछा.

इससे पहले कि अवंतिका कोई जवाब देती, मोबाइल फिर से बजने लगा, “अरे देख तो कौन है?”

“नीलू दीदी हैं.”

“बजने दे. तू जाकर तेल गर्म करके ले आ और मेरे बालों में लगा दे, शायद दर्द थोड़ा कम हो जाए और सुन थोड़ी मेहंदी भी भिगो देना.”

“पर वो नीलू दीदी...”

“तू छोड़ उसे और जो कहा है वो कर.” अवंतिका का लहजा सख़्त था.

मुझे अभय वापिस चाहिए. मैं हारूंगी नहीं! और वो भी नीलू से, कभी नहीं...

राधा तेल और फिर मेहंदी लगाकर चली गई और अपने पुराने रूप को याद करते हुए अनायास ही उसके हाथ मेहंदी ठीक करने के लिए उठे, पर दर्द के कारण ज़्यादा देर बालों में नहीं रह पाए. वो आंखें बंद करके वहीं पलंग के किनारे पर बैठ गई, तो उसे आभास हुआ कि उसकी पूरी देह दर्द से सराबोर थी. सहसा उसे ध्यान आया कि ऐसा तो कई महीनों से हो रहा है और वो इसके लिए अक्सर दर्द निवारक गोलियों का सहारा लेती है.

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मुझे ऐसा क्या हुआ है कि मुझे हर समय दर्द बना रहता है और मेरा शरीर समय से पहले मेरा साथ छोड़ रहा है... कहीं अभय इसी कारण... इस विचार ने उसके अंदर खलबली मचा दी.

उसने बिना समय गवाएं तुरंत मीरा को फोन लगाया. मीरा, उसकी स्कूल की सखी और शहर की नामी डॉक्टर थी. उसे ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा. मीरा ने दो ही घंटी में फोन उठा लिया और हमेशा की तरह खनखनाती

आवाज़ में कहा, “बोल ब्यूटी क्वीन, आज कैसे याद किया?”

“याद तो तुम्हें रोज़ ही करती हूं, पर फोन आज काम से मिलाया है.”

“बताओ जी. मैं नाचीज़ आपके किस काम आ सकती हूं.” मीरा का स्कूल वाला नाटकीय अंदाज़ अभी तक कायम था.

“मेरी तबियत कई दिनों से ठीक नहीं है, तो सोचा कुछ बेसिक चेकअप करवा लूं.”

मीरा ने विस्तार से उसकी द़िक्क़तों के बारे में पूछा और फिर कुछ जांच करवाने के बाद रिपोर्ट भेजने के लिए कहा. उसके बाद तो दोनों स्कूल की यादों में खो गईं. हिंदी की टीचर मिल्टन मैडम और फिर स्कूल भर में फैले अवंतिका की सुंदरता के क़िस्से और उन क़िस्सों के मजनुओं को याद करके दोनों बहुत देर तक हंसती रहीं.

मीरा से बातें करके उसे बहुत हल्का लग रहा था. आज वो कई दिन बाद खुलकर हंसी थी. फोन रखने के बाद काफ़ी देर तक उसे स्कूल के क़िस्से याद आते रहे और उनमें से कुछ तो आज भी उसकी रंगत को सुर्ख़ कर रहे थे. ऐसा ही एक क़िस्सा सोचकर वो मुस्कुरा रही थी कि राधा मेहंदी का कटोरा लेकर आ गई और वो बालों में मेहंदी लगवाकर अपनी पुरानी यादों में खोई हुई सी उठकर बाहर गार्डन में जाकर बैठ गई.

मौसम बहुत अच्छा था और हल्की फुहार पड़ रही थी. ये फुहारें उसे शादी के बाद के दिनों में ले गईं, जब वो और अभय दोनों साथ में भीगते थे. फिर एक गुलाब उसके गालों और होंठों को सहलाते हुए उसकी गहन केशराशि में पिरो दिया करते थे और उस समय के उनके आंखों के मौन निमंत्रण को याद कर उसकी पलकें झुक गईं. फिर उसने उन लम्हों की ख़ुमारी के साथ गुलाब की क्यारियों की तरफ़ देखा, तो उसका दिल धक् से रह गया. वो सारी क्यारियां लगभग सूख गई थीं और सारे पौधे ठूंठ से खड़े थे. अपने फूलों की ऐसी हालत देखकर अवंतिका ग़ुस्से से भर गई. फिर तो उसने आव देखा न ताव, अपने दर्द की परवाह किए बिना अपना पल्लू कमर में खोंसकर पौधों की खुदाई और कांट-छांट में जुट गई. बीच-बीच में दर्द की तेज़ लहरें उठती थीं, पर अभय और नीलू के वो दृश्य याद आते ही क्रोध व नफ़रत दर्द पर हावी हो जाते थे.

गार्डन की सफ़ाई करते और नहा-धोकर सब निपटाने तक शाम हो गई. घड़ी की ओर देखते हुए बालों से तौलिया निकालकर उन्हें झटकते हुए दर्पण के सामने खड़ी हुई, तो ख़ुद में आये परिवर्तन से हैरान थी. बाल तेल और मेहंदी लगने से नरम और जीवनयुक्त लग रहे थे. चेहरा गार्डन में की गई मेहनत से खिल गया था और गालों पर हल्की सी लालिमा झलक रही थी. वो मुस्कुरा दी और चाय लेकर झूले पर बैठ गई. उसका शरीर और मन आज दोनों ही शांत व हल्के थे, पर बीच-बीच में अभय और नीलू याद आते तो मन कसैला हो जाता था.

वो अपने वर्तमान और अतीत के बीच सामंजस्य बैठा ही रही थी कि राधा खाना लेकर आ गई. खाने में स़िर्फ खिचड़ी ही थी, पर आज कई दिन बाद उसे खाने में स्वाद आ रहा था. अगले दिन उसकी नींद जल्दी ही खुल गई. उसने खिड़कियों से भरे परदे हटाए और चाय का कप लिए गुनगुनाते हुए मोबाइल खोला, तो पहला संदेश मीरा का ही था कि सभी रिपोर्ट्स ठीक हैं. बस कुछ सप्लीमेंट्स की ज़रूरत हैं, जिनके नाम वो भेज रही है. मीरा को धन्यवाद का संदेश भेजकर उसने दवाइयां मंगवाईर्ं और फिर चेहरे पर उबटन लगाकर नहाने चली गई. नहाने के बाद जब सूती आसमानी साड़ी में ख़ुद को सजाकर दर्पण में देखा, तो उसके मुंह से अनायास निकल गया, “वो मेरी बराबरी करेगी!”

उसका आत्मविश्‍वास लौट आया था.

उसने अपनी दिनचर्या पूरी तरह बदल डाली और अपना पूरा समय अपने और अपने घर के रख-रखाव में विभाजित कर दिया. उसी की तरह घर को भी केवल उसी की ज़रूरत थी और दोनों को जब वो मिलने लगा, तो दोनों की रंगत बदल गई.

आज अभय 15 दिन बाद लौटने वाले थे. अवंतिका का दिल सुबह से ही तेज़ धड़क रहा था. ऐसा लग रहा था कि उसकी किसी परीक्षा का परिणाम आने वाला है. वो सुबह जल्दी ही उठ गई थी. उसने बाल धोकर सुखाए और फिर उन्हें ढीले से जूड़े में समेट लिया. माथे पर छोटी सी लाल बिंदिया और कानों में छोटे-छोटे झुमके और आंखों में काजल की रेखा खींचकर पलकों को झपकाया. फिर एक बार ख़ुद को दर्पण में निहारा, “नॉट बैड! ठीक ही लग रही हो अवन्ति.” वो मुस्कुराते हुए स्वयं से कह रही थी.

“मेकअप तो हो गया, ज़रा कपड़े भी चुन लूं.” मन ही मन ये बोलते हुए उसने एक धानी रंग की साड़ी निकाली और उसे अपने कंधे पर रखकर देखने लगी कि उसे आईने में अपने साथ नीलू का अक्स उभरता दिखाई देने लगा. उसका उस गुलाबी सलवार-कमीज़ में गुलाब सा सुर्ख़ हुआ चेहरा उसे अंदर तक छलनी कर गया. उसे याद आया कि उसने कितने प्यार से वो एक जैसे दो गुलाबी सलवार-कमीज़ ख़रीदे थे. उसने कुछ सोच कर वो साड़ी वापस रख दी और अपने लिए भी वैसा ही गुलाबी सलवार-कमीज़ निकाल लिया. फिर एक बार पूरी तरह तैयार होकर गुलाबी दुपट्टे को कंधे पर लपेटा, तो उसका गुलाबी रंग उसके चेहरे के साथ एकरूप सा लगने लगा. वो स्वयं को देखकर हैरान थी. केवल एक पखवाड़े की नियमित देखभाल ने उसका रंग-रूप बदल दिया था.

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तभी घंटी बजी और उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा. उसने एक-दो गहरी सांसें भी लीं. उसे डर लग रहा था कि कहीं अभय को उसकी धड़कन सुनाई न पड़ जाए. उम्र के इस पड़ाव पर भी उसकी हालत

बिल्कुल नवयौवना जैसी हो रही थी और एहसास प्रथम मिलन जैसा था.

उधर सीढ़ियों पर चढ़ते अभय के कदमों की आहट अब उसे सुनाई पड़ने लगी थी और वो बहुत बुझी हुई और बोझिल प्रतीत हो रही थी. पर वो जानती थी कि आज अगर उसका परीक्षा परिणाम अनुकूल रहा तो स्थिति बदल जाएगी.

अभय जब कमरे में आए, तो उनकी तरफ़ अवंतिका की पीठ थी.

“अब तबियत कैसी है तुम्हारी?” अभय ने थकी हुई आवाज़ में पूछा.

“अब पहले से ठीक हूं और वैसे तुम्हारे बिना जैसी होनी चाहिए वैसी है.” उसने अभय के गले में बांहें डालते हुए कहा.

अभय का मुंह खुला रह गया और हाथ से ब्रीफकेस छूट गया. पहले ख़ुद को और फिर अवंतिका के गालों पर बिखर आई लटों को संभालते हुए बोले, “लग रहा कि आज तो मैं हमेशा के लिए इन आंखों में डूब जाऊंगा.”

अवंतिका समझ गई कि वो परीक्षा में पास हो गई है और वो भी अव्वल दर्जे में.

उसने अभय के कंधों पर सिर रखकर आंखें मूंद लीं. कुछ देर इस एहसास को अंदर तक महसूस करती रही, फिर धीरे से बोली, “उस दिन तो ये डूबने का प्रोग्राम कहीं और ही बन रहा था.”

“किस दिन और कब?” अभय ने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा.

“उस दिन जब नीलू के सामने घुटनों पर थे...” अवंतिका ने अपनी आवाज़ और शब्दों दोनों ही को कम न करते हुए कहा. इससे पहले कि अभय कुछ उत्तर देते, नीलू ने दरवाज़े पर दस्तक देतेे हुए बाहर से ही कहा, “उस दिन घुटनों पर अभय नहीं ललित थे.”

“ललित थे! नहीं, मैंने अपनी आंखों से देखा था. अभय ने उस दिन जो शर्ट...” अवंतिका का वाक्य अधूरा रह गया.

अब ललित भी नीलू के पीछे आकर खड़े हो गए.

“उस दिन आपने स़िर्फ शर्ट देखी थी और ये वही शर्ट है न. मुझे पसंद थी, इसलिए अभय ने अपने जैसी मुझे गिफ्ट की थी.” ललित वही शर्ट पहने मुस्कुरा रहे थे.

“ये सारा ड्रामा मेरा है और ये अभय को तुमसे चुराने का नहीं, बल्कि अपनी पुरानी अवंतिका को वापिस पाने का था. उस दिन जिसे तुमने घुटनों पर मेरे साथ देखा, वो ललित थे. और हां, तुम स़िर्फ स्टेज पर अभिनय कर सकती हो, पर मैं यथार्थ जीवन में भी इस कला में चैंपियन हूं.” नीलू ने आंख मारते हुए कहा.

अब तक अवंतिका को सारा खेल समझ में आ गया था और उसने शरमाते हुए अभय के सीने में मुंह छिपा लिया और अभय ने भी उसे बांहों में समेटते हुए कहा, “नीलू-ललित दरवाज़ा बंद करते हुए जाना.”

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