नवाज़ुद्दीन के पिता एक किसान थे और वो कुल आठ भाई-बहन थे, जिसके चलते परिवार का खर्च उठाना उनके पिता के लिए किसी चुनौती से कम नहीं था. लिहाजा ख़राब आर्थिक स्थिति के चलते नवाज़ ने छोटी सी उम्र से ही नौकरी करना शुरू कर दिया. साइंस में ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद वो दिल्ली आ गए, जहां दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए उन्होंने चौकीदारी की नौकरी भी की.
बताया जाता है कि नवाज के गांव में एक भी थिएटर नहीं था इसलिए उन्हें फिल्म देखने के लिए 45 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. आपको जानकर हैरानी होगी कि फिल्मों में आने से पहले उन्होंने सिर्फ़ 5 फिल्में ही देखी है. हालांकि उन्हें एक्टिंग का शौक तो था लेकिन गरीबी उनके सपनों के बीच दीवार बनकर खड़ी थी, लेकिन वो रोज़ाना शीशे के सामने खड़े होकर एक्टिंग की रिहर्सल करते थे. इतना ही नहीं दिल्ली में चौकीदारी की नौकरी करने के साथ-साथ उन्होंने वहां थिएटर में दाखिल भी ले लिया था.
आख़िरकार वो दिन आ ही गया जब नवाज़ुद्दीन को पहली बार पेप्सी के कैंपेन विज्ञापन में काम करने का मौका मिला. इसके लिए उन्हें 500 रुपए फीस के तौर पर दिए गए थे, लेकिन फिल्मों में अपनी पहचान बनाने के लिए उन्हें 12 साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी. उन्हें पहली बार आमिर की फिल्म 'सरफरोश' में एक छोटा सा किरदार निभाने का मौका मिला, लेकिन 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में फैज़ल का किरदार निभाकर नवाज़ुद्दीन ने ख़ूब नाम कमाया. इस फिल्म के बाद से नवाज़ के पास फिल्मों की झड़ी लगने लगी और वो एक चौकीदार से दमदार कलाकार बन गए. अब बॉलीवुड का यह दमदार कलाकार एक फिल्म के लिए 6 करोड़ रुपए बतौर फीस लेते हैं.
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