क्या आपको भी डर लगता है खो जाने का?.. पीछे छूट जाने का?.. यह डर किसी मेले या स्टेशन में पीछे छूट जाने का नहीं है, बल्कि यह डर है अपनी पहचान, अपना व्यक्तित्व या समाज में अपनी उपस्थिति के खो जाने का. इस भय, इस डर को और भयावह बना देता है सोशल मीडिया. दोस्त, परिवार या समाज में पीछे छूट जाने या खो जाने के इस डर को फोमो (FOMO) कहते हैं. इसका अर्थ है फियर ऑफ मिसिंग आउट.
यह डर अपने आपमें कोई बड़ी मानसिक बीमारी तो नहीं है, पर यह एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जो अधिक समय रहने पर डिप्रेशन, निराशा, बेचैनी या ओसीडी में परिवर्तित हो सकती है.
यह एक प्रकार के तनाव की स्थिति है, जिसके दलदल में हम कब फंस जाते हैं पता ही नहीं चलता. इस स्थिति में व्यक्ति हर समय हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज़ करना चाहता है. हर स्थान पर चाहे वह किसी के भी साथ हो, अपना महत्व जताने में लगा रहता है.
फोमो से ग्रसित व्यक्ति की सारी जद्दोज़ेहद बस अपने होने का एहसास दिलाने के लिए होती है. इसके लिए वह सोशल मीडिया या व्हाट्सअप पर ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय हो जाता है या बिना वजह अपने आपको अकेला महसूस करने लगता है.
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पिछले तीन सालों में फोमो से ग्रसित होनेवालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और इसका मुख्य कारण कोविडकाल में हुई सामजिक दूरी है. चाहे यह कोई बीमारी ना हो, पर इससे छुटकारा पाना आवश्यक है. आत्मविश्लेषण, अनुशासन और काउंसलिंग से इसका इलाज किया जा सकता है, पर अगर लक्षण अधिक समय तक रहें और बढ़ने लगें, तो मनोचिकित्सक से परामर्श अनिवार्य है.
क्या है फोमो?
फोमों अर्थात दुनिया की दौड़ में पीछे रह जाने का डर. यह सुनने में चाहे सरल लगे, पर इसे समझना और इसका पता लगाना उतना ही जटिल है. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि फोमो आपके दिमाग़ में बहुत धीरे-धीरे अपनी जगह बनाता है. इसके लक्षण इतने सामान्य होते हैं कि जल्दी पकड़ में नहीं आते, जैसे- आपको लगता है कि आपका जीवन बहुत ही बोझिल हो गया है और वहीं आपके रिश्तेदार और दोस्त बहुत मज़े में जी रहे हैं… तो यह बात देखने में चाहे समान्य लगे, पर यह फोमो का ही एक लक्षण हो सकता है. इसके अलावा बार-बार सोशल मीडिया में अपने प्रियजनों के एकाउंट्स में ताका-झांकी करना, गूगल पर हमेशा कुछ नया खोजते रहना, हर मिनट-दो मिनट में अपना चैट बॉक्स देखते रहना या बेचैनी और घबराहट महसूस करना, और फिर इस बेचैनी को कम करने के लिए एक के बाद एक घंटों रील्स और वीडियो देखते रहना… यह सभी एक सीमा के बाद फोमो में परिवर्तित हो सकते हैं.
इस स्थिति में आपका दिमाग़ अधिक से अधिक सूचनाएं प्राप्त करना चाहता है… और अगर आपको यह सूचनाएं प्राप्त नहीं होतीं, तो आप में निराशा का भाव उत्पन्न होने लगता है. फोमो से ग्रसित लोग अक्सर ही सेंटर ऑफ दि अट्रैक्शन बनकर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करते हैं. ऐसे व्यक्ति को हमेशा यह डर सताता रहता है कि उससे कहीं कुछ छूट ना जाए. किसी एक जगह पर होते हुए किसी दूसरी जगह पर ना हो पाने का डर उसे परेशान करता रहता है.
फोमो के लक्षण
चाहे यह मानसिक स्थिति चोरी-छुपे आए, पर इसके कुछ लक्षण हैं, जिन्हें आप अगर समय रहते पहचान लें, तो फोमो से निजात पाना आसान हो जाता है.
फोमो शॉपिंग
शॉपिंग अमूमन सभी महिलाओं की पसंद होती है, पर ख़तरे की घंटी तब बजती है, जब शॉपिंग, शॉपिंग ना रहकर जूनून बन जाए. फोमो से पीड़ित व्यक्ति अक्सर अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए शॉपिंग का सहारा लेता है, फिर वह स्त्री हो या पुरुष. वह शॉपिंग अपनी ज़रूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि अपनी बेचैनी के हिसाब से करता है.
फोमो शॉपिंग दूसरों से आगे रहने के उद्देश्य से की जाती है. इसका मतलब है कि आप बाज़ार मे आई कोई नई वस्तु सिर्फ़ इसलिए ख़रीदते हैं, क्योंकि आप उस वस्तु को अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से पहले ख़रीदना चाहते हैं. अगर आपको भी किसी वस्तु को ना ख़रीद पाने से अपने दोस्तों से पीछे रह जाने का डर लगता है, तो यह निश्चित तौर पर फोमो हो सकता है. फोमो में ऑनलाइन शॉपिंग की लत लग सकती है.
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बिन सूचना सब सूना
यह फोमो का बहुत बड़ा लक्षण है. अगर मान लीजिए, किसी दिन आपको आपके मित्रों या संबंधियों से किसी प्रकार की कोई सूचना प्राप्त ना हो, ना उस दिन आपको कोई फोन करता है और ना ही आपका फोन कोई उठाता है… और आप इन सबसे बहुत ज़्यादा बेचैन हो जाते हैं. आपका मूड ख़राब हो जाता है. अगर आपको स़िर्फ इस कारण यह लगने लगे कि आपकी आपके दोस्तों के जीवन में कोई अहमियत नहीं रही या आपको लगता है कि आपके दोस्त या रिश्तेदार आपका फोन जान-बूझकर नहीं उठा रहे, ताकि आपको उनके बारे मे कुछ पता ना चल सके, तो यह फोमो के लक्षण हो सकते हैं.
हर समय हर जगह रहने की इच्छा
आप किसी भी समारोह, प्रतियोगिता, किसी भी कार्यक्रम को छोड़ना नहीं चाहते. यह ख़्याल आपको बहुत परेशान कर देता है कि आप हर कार्यक्रम का हिस्सा नहीं हो सकते. फोमो आपको मजबूर कर देता है कि आप हर कार्यक्रम में शामिल हों. फिर चाहे वह काम आपकी रुचि का हो या ना हो.
कई बार तो फोमो ग्रसित व्यक्ति अपनी योग्यता से बाहर के काम भी करने लगता है, जिससे उसे निराशा और अवसाद का सामना भी करना पड़ता है. फोमो ग्रसित व्यक्ति हर तरह का अनुभव कर लेना चाहता है, फिर चाहे वह उसके काम का हो या ना हो. ऐसा व्यक्ति एक ही समय में ऑफिस की किसी मीटिंग में भी रहना चाहता है, और उसी समय घर के किसी शादी समारोह में भी उपस्थित रहने से चूकना नहीं चाहता.
इंकार ना कर पाना
जब आप किसी भी चीज़ को खोना नहीं चाहते, हर समय हर जगह उपस्थित रहना चाहते हैं, तो स्वाभाविक तौर पर आप किसी से ना नहीं कह पाएंगे. अपनी इस आदत के चलते फोमो ग्रसित व्यक्ति मानसिक और शारीरिक तनाव और थकान का अनुभव करने लगता है. हर किसी को हां में जवाब देना उनके लिए अनिवार्य हो जाता है. हमेशा किसी व्यक्ति या अवसर को खो देने के डर से वह किसी भी वस्तु के लिए मना नहीं कर पाते.
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फोमो से होनेवाली परेशानियां
मानसिक और शारीरिक थकान
सिरदर्द
उत्साह की कमी
परफार्मेंस प्रेशर
अकेलापन महसूस होना
नकारात्मक सोच
क्या करें जब हो फोमो की आहट?
अगर फोमो का प्रभाव कम है और इससे लंबे समय तक कोई मानसिक स्थिति या विकार नहीं बन रहा हो, तब इसके बारे में ज़्यादा विचार करने की आवश्यकता नहीं है. पर दूसरी तरफ़ अगर आपको ऐसा लग रहा हो कि आप फोमो के चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं, तो निम्न उपाय करें.
* सोशल मीडिया को करें विदा. आवश्यकता से अधिक सोशल मीडिया का उपयोग फोमो को बढ़ावा देता है. तो सबसे अच्छा और पहला उपाय है कि आप सभी प्रकार के सोशल मीडिया से कुछ समय के लिए ब्रेक ले लें.
* रोज़ जर्नलिंग करें. आपके साथ दिनभर में क्या-क्या अच्छा हुआ, आपकी आज के दिन की उपलब्धियां क्या थीं आदि सकारात्मक चीज़ें लिखें.
* कुछ समय तक अनावश्यक शॉपिंग ना करें.
* अपनी हॉबीज़ को समय दें.
* कुछ नया सीखें, जैसे- कोई नई भाषा, गायन, नृत्य या कुछ और, जिसमें रुचि हो.
* एक्सरसाइज़ करें.
* प्राणायाम के माध्यम से अपनी सांसों पर काम करें. यह आपको शांत रखेगा.
* ख़ुद पर नियंत्रण बनाए रखें. जब भी ख़ुद को अकेला या खोया हुआ महसूस करें, उसी पल अपने विचारों पर लगाम लगाएं.
- माधवी निबंधे